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Saturday, August 30, 2008

रानी समारिस वेताल के प्रेम में (प्रत्यक्षा जी के अनुरोध पर विशेष प्रस्तुति - जादूगरनी का शाप)

एच. राइडर हगार्ड का उपन्यास "शी" सन १८८७ में प्रकाशित हुआ था और तुंरत ही प्रसिद्धि की ऊंचाइयों पर पहुँच गया. उपन्यास इतना बड़ा हिट हुआ कि हगार्ड ने इसके कई सिक्वल और प्रिक्वल लिखे जो लगभग उतने ही पसंद किए गए. इन सभी के रिप्रिन्ट्स भी लगातार मांग में बने रहे और अभी भी छप रहे हैं. यह उपन्यास कल्पनाशील साहित्य का एक बड़ा क्लासिक उदाहरण माना जाता है.

"शी" से प्रेरित होकर कई लेखकों ने कहानियाँ लिखीं और अन्य कलात्मक विधाओं में कार्य किया. अनेक उपन्यासों के पात्रों में इस उपन्यास के पात्र झलकते हैं. ली फाक ने सन १९६१ की अपनी सन्डे स्ट्रिप "क्वीन समारिस द ट्वेल्थ" में भी एक ऐसी ही स्त्री पात्र को केन्द्रीय भूमिका में रखकर कहानी की रचना की. यही कथा इंद्रजाल कॉमिक्स में सबसे पहले १९६५ में "जादूगरनी का शाप" के नाम से प्रकाशित हुई. बाद में १९८४ में यही कहानी एक बार फ़िर प्रकाशित की गयी.

"शी" की कहानी (हगार्ड का उपन्यास)
कहानी है इंग्लेंड में केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर होरेस हॉली और उनके दत्तक पुत्र लियो विन्सी की. एक दिन लियो को उसके असली पिता/Biological father का मिट्टी के पात्र के एक टूटे हुए टुकड़े पर उकेरा हुआ संदेश मिलता है जिसमें उन्हें अफ्रीका के गहन जंगल में जाने के लिए कहा जाता है. प्रोफेसर हॉली और लियो अफ्रीका पहुँचते हैं जहाँ उनकी मुलाकात एक पुराने कबीले की रूपसी रानी आयशा से होती है. आयशा ने किसी वरदान से अपने आप को एक अग्नि स्तम्भ की लपटों में जलाकर अमर कर लिया है. वह एक परम शक्तिशाली महिला है जो लोगों की हसरतों का केन्द्र भी है और भय की वजह भी. वह एक ऐसी अद्भुत सुन्दरी मगर क्रूर स्त्री है जो उसे नाराज करने वाले या उसकी राह में आने वाले किसी भी व्यक्ति की जान लेने में  किंचित मात्र भी नहीं हिचकिचाती. यात्रियों को पता चलता है कि आयशा २००० वर्षों से अपने दिवंगत प्रेमी कलिक्रेट्स के पुनर्जन्म का इन्तजार कर रही है. वह समझती है कि लियो ही उसका वह खोया हुआ प्रेमी है.

कहानी का अंत कुछ यूँ होता है कि आयशा दोनों पुरुषों को उस अग्नि स्तम्भ को दिखाने के लिए ले जाती है. वह चाहती है कि लियो भी अपने आप को उन लपटों में समर्पित कर अमरत्व को प्राप्त हो जाए ताकि वे दोनों हमेशा के लिए एक-दूसरे के साथी बन जाएँ. लियो को इसमें संशय है और वह आग की लपटों में उतरने की कल्पना से भी भयभीत है. उसके भय को दूर करने के लिए आयशा एक बार फ़िर से उस अग्नि स्तम्भ में उतरती है. लेकिन इस बार आग में जाने पर उसका वरदान समाप्त हो जाता है और वह अपनी सही उम्र को प्राप्त होकर तुंरत ख़त्म हो जाती है.

ली फाक की कहानी "जादूगरनी का शाप"
अपने राज्य की एक जादूगरनी की बदौलत रानी समारिस ने मृत्यु पर विजय पा ली है. उसकी उम्र बीस वर्ष पर स्थिर है. उसकी प्रजा इस बात पर आश्चर्य करती है कि उनकी रानी सदा जवान कैसे बनी रहती है. समारिस एक नाटक रचती है और इस बात का प्रचार करती है कि उसकी एक बेटी है जो कहीं सुदूर विदेश में पढ़ाई कर रही है. एक दिन वह अपनी बेटी से मिलने विदेश जाती है और वहाँ से ख़बर आती है कि रानी समारिस की मृत्यु हो गयी और अब उसकी जगह उसकी बेटी नयी रानी बनेगी. इस तरह समारिस अपनी बेटी के रूप में वापस आती है. तीन सौ वर्षों से यही नाटक बार-बार दुहराया जाता रहा है. मगर अपने बारहवें रोल में समारिस की मुलाकात जंगल में वेताल से हो जाती है. जादूगरनी की चेतावनी की अवहेलना करते हुए रानी वेताल पर मुग्ध हो जाती है और उससे प्रेम निवेदन करती है. परिणाम यह होता है कि समारिस तुंरत ही अपनी असली उम्र की हो जाती है और राख के ढेर में बदल जाती है.

इस कॉमिक्स के स्केन्स 'अनुराग दीक्षित' के हैं. अनुराग इंद्रजाल कॉमिक्स के बड़े शौकीनों में से हैं और उनके पास पुरानी से पुरानी इंद्रजाल कॉमिक्स का विशाल संग्रह है.

अनुराग के स्केन्स को मैंने फोटोशॉप में कुछ चमकाया है और रंगों को थोड़ा ज्यादा उकेरा है. रिसोल्यूशन को भी एडजस्ट किया है जिससे फाइल का आकार नियंत्रित रखा जा सके.

और अब कुछ छिटपुटियाँ
१. इंद्रजाल कॉमिक्स में प्रकाशित वेताल की ली फाक की ओरिजिनल संडे या डेली स्ट्रिप में ये एकमात्र कहानी है जिसकी ड्राइंग्स बिल लिग्नेंट ने बनाई थीं. बाकी सभी कॉमिक्स (ली फाक ओरिजिनल) के ड्राइंग आर्टिस्ट तीन अन्य जबरदस्त कलाकार मूर, मेकॉय एवं बैरी हैं.
२. वेताल कथाओं के ७० वर्ष के इतिहास में हमेशा वेताल की आँखें नकाब से ढँकी दिखाई जाती रही हैं. मगर इस कहानी के एक पेनल में लिग्नेंट ने वेताल की नकाब से झांकती आँखें दर्शाईं. ली फाक ने इसपर अपनी अप्रसन्नता जाहिर की. कुछ लोग ऐसा भी मानते हैं कि इसी वजह से बिल लिंग्नेंट को आइन्दा वेताल कथाओं पर काम करने का अवसर नहीं दिया गया.

आप आनंद उठाइए इस शानदार इंद्रजाल कॉमिक्स का.
इंद्रजाल कॉमिक्स नंबर १३ (सन् १९६५)

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