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Saturday, July 10, 2010

गार्थ की अपनी कहानी (साथ में इंद्रजाल कॉमिक्स से गार्थ की एक लाजवाब कथा भी)

The Daily Mirror Book of Garth - 1975
आप में से कई पाठकों ने इंद्रजाल कॉमिक्स में गार्थ की कथाओं का आनन्द लिया ही होगा. अस्सी के दशक के प्रारम्भ में इंद्रजाल ने जिन नए नायकों को प्रस्तुत किया, गार्थ उनमें से एक था, पर हिन्दुस्तानी पाठकों के लिए वह इतना अनजाना भी नहीं था. हिंदी और अंग्रेजी हिन्दुस्तान दैनिक समाचार पत्रों में वह काफी पहले से छपता आ रहा था. आज हम गार्थ के चरित्र के कुछ कम जाने पहचाने पहलुओं की चर्चा करेंगे.

गार्थ की कहानियों की शुरुआत सन १९४३ में हुई जब इंग्लैंड के प्रसिद्ध समाचार-पत्र डेली मिरर (Daily Mirror) ने एक नये चरित्र को कॉमिक स्ट्रिप के रूप में प्रस्तुत करने का निर्णय लिया. स्टीफ़न डोलिंग (Stephen Dowling) को, जो कि उस समय के प्रसिद्ध और व्यस्त कथा लेखक और कलाकार थे, इस नये चरित्र को अमली जामा पहनाने और संवारने हेतु चुना गया. उन्होंने अपने रचे इस चरित्र को जब अंतिम स्पर्श दिया, तब गार्थ उस रूप में हमारे सामने आया, जैसा कि अब हम उसे पहचानते हैं.

गार्थ की कहानी

पहले दिन की गार्थ स्ट्रिप का दृश्य
यूरोप में स्कॉटलैण्ड के उत्तरी तट से और भी उत्तर की ओर तकरीबन १०० छोटे द्वीपों का एक समूह है. आर्कटिक वृत्त में स्थित इन टापुओं को शेटलैण्ड (Shetlands) कहा जाता है. काफ़ी समय हुआ, एक छोटी सी नौका पर बहता हुआ एक बहुत छोटा बच्चा न जाने कहां से इन्हीं में से एक टापू पर किनारे आ लगा. उस टापू पर बसने वाले एक बुजुर्ग दम्पत्ति की नजर उस पर पड़ी और उन्होंने प्रेम के वशीभूत होकर उस निराश्रित बालक को अपना लिया. इस प्रकार किस्मत के सहारे उस अनाथ बालक के पालन-पोषण का प्रबंध हो जाता है. बड़ा होने पर यही बच्चा गार्थ बनता है और असीम बलशाली युवा के रूप में पहचान बनाता है.

गाला को बेहोश गार्थ मिलता है. वह उसकी देखभाल करती है.
आगे चलकर वह समुद्री सेना में शामिल होता है और अपने पराक्रम से द्रुत प्रगति करता हुआ कैप्टेन की रैंक तक पहुंचता है. एक युद्ध के दौरान उसके शिप को टॉरपीडो से नुकसान होता है और डूबते जहाज से वह एक लकड़ी के लठ्ठे पर तैरता हुआ एक टापू पर किनारे जा लगता है. (कहानी में इस टापू को ’तिब्बत’ में कहीं स्थित बताया गया था. लेकिन यहां कहानीकार की गलती पकड़ में आती है क्योंकि तिब्बत चारों ओर से भूमि से घिरा हुआ प्रदेश है. उसकी सीमा कहीं भी समुद्र से नहीं लगती). किसी चोट की वजह से वह स्मृतिलोप का शिकार हो चुका है और अपने बारे में सबकुछ भूल चुका है. वहां के कबीले की एक लड़की ’गाला’ उसे देख लेती है और उसकी देखभाल करती है. गाला की स्नेहमयी सहायता गार्थ को जल्द ही चलने-फ़िरने में समर्थ बना देती है और वह अपनी शारीरिक शक्ति को पुनः प्राप्त कर लेता है. लेकिन अब भी गार्थ को अपने पूर्व जीवन की कोई भी स्मृति नहीं है.

आस्ट्रा गार्थ की प्रेमिका है.
बाद में उसके मित्र प्रोफ़ेसर लुमियर गार्थ का मनोविश्लेषण द्वारा इलाज करते हैं और एक विकिरण गन की मदद से उसकी विलोपित स्मृति को लौटाने में सफ़ल होते हैं. इस बीच गार्थ के सम्पर्क में ’आस्ट्रा’ नामक देवी भी आती है जो गार्थ के प्रेम में पड़ जाती है. आस्ट्रा गार्थ की तब-तब सहायता करती है, जब भी वह किसी बड़ी कठिनाई में पड़ता है. (आस्ट्रा सौंदर्य की देवी वीनस का ही एक अन्य नाम है, जिसका कि जिक्र ग्रीक मिथकों में आता है.)

सन १९७१ में प्रकाशित कहानी "जर्नी इन्टू फ़ीयर" (Journey into fear) में गार्थ की पृष्ठभूमि पर एक नया एंगल डाला गया. इस कहानी के अनुसार गार्थ के एक पूर्वज धरती से परे सैटर्निस (Saturnis) नामक ग्रह के वासी थे जो एक वैज्ञानिक सर्वेक्षण के सिलसिले में पृथ्वी पर आये थे. उन्हें यहां किसी कन्या से प्रेम हो जाता है और इस युग्म द्वारा जिस सन्तान को जन्म दिया जाता है वही आगे चलकर गार्थ की पीढ़ी का जनक होता है. शायद गार्थ के असीम शक्तिवान होने की छवि को एक ठोस आधार देने के लिये इस प्रकार की कल्पना की गयी होगी.

अपनी बहादुरी और साहस के जलवे दिखाता गार्थ एक परम बलवान योद्धा के तौर पर जाना जाता है. दुनिया में कहीं भी, किसी भी अन्याय और अत्याचार के विरोध में खड़े होने और दुष्टों से टक्कर लेने की प्रकृति के चलते कितनी ही बार उसे जानलेवा हमलों का सामना करना पड़ता है लेकिन हर बार वह मौत को धता बता कर निकल आता है. हालांकि इसमें कभी-कभी किस्मत भी अपना खेल खेलती है और उसके बचाव में मददगार साबित होती है. कहते भी हैं ना "फ़ॉर्चून फ़ेवर्स द ब्रेव".

हालांकि मुश्किल मसलों पर सलाह हेतु वह प्रोफ़ेसर लुमियर का रुख करता है, पर उसकी कथाओं में स्वयं गार्थ भी बहुत समझदार इन्सान के रूप में चित्रित किया जाता रहा है. अपने लौमहर्षक कारनामों को अंजाम देने के दौरान अधिकांश मौकों पर हम उसे ऐसी स्थिति में पाते हैं जब उसे पलक झपकते ही तुरन्त कोई निर्णय लेना होता है. ऐसे ही अवसरों पर हम उसके बुद्धि-चातुर्य का परिचय पाते हैं.

लेकिन गार्थ का व्यक्तित्व एक कुलीनवर्गीय गरिमा से आलोकित और गम्भीरता से परिपूर्ण है. उसकी शौर्य गाथाओं से गुजरते हुए हम शायद ही किसी अवसर पर उसे हंसता (यहां तक कि मुस्कुराता भी) पायेंगे. अपने मिशन और कार्य के प्रति पूर्ण-रुपेण समर्पित इस बहादुर योद्धा के कारनामों के संसार में उतरना सचमुच एक अद्भुत अनुभव से गुजरना है.

छिट-पुट

गार्थ की चर्चा हो और उसकी कहानियों में दर्शायी जाने वाली टॉपलैस सुन्दरियों का जिक्र ना आये, ये कैसे सम्भव है? पिछली कड़ी में मैंने बताया था कि सत्तर और अस्सी के दशक में हिन्दी के समाचार-पत्र में छपने वाले इन चित्रों को लेकर मुझे किस प्रकार शर्मिंदगी उठानी पड़ती थी (बचपन के दिन थे). इसी क्रम में ये जानना भी रोचक है कि फ़्लीट्वे (Fleetway) ने जब १९७५ में "The Daily Mirror Book of Garth" प्रकाशित की, जिसमें उसके प्रमुख कलाकार फ़्रैंक बैलामी (Frank Bellamy) द्वारा बनाये गये क्लासिक चित्र थे, तो उन सभी टॉपलैस महिलाओं के चित्र या तो सैंसर कर दिये गये या फ़िर उन्हें बिकिनी नुमा परिधान पहना दिये गये. कुछ वैसे ही जैसे इन्द्रजाल कॉमिक्स ने भारत में किया.

The Daily Mirror Book of Garth - 1976
लेकिन अगले ही वर्ष (१९७६ में) प्रकाशित अंक में इस प्रकाशन ने, शायद पिछले अनुभव से सीख लेते हुए, इस बार चित्रों में अपनी ओर से कोई परिवर्तन नहीं किया और सभी चित्रों को उनके मूल स्वरूप में यथावत प्रकाशित किया.

और अब हम बढ़ते हैं आज की कॉमिक्स की ओर.

कहानी:

कहते हैं कि कानून के हाथ बहुत लम्बे होते हैं. अपराधी कितना ही शातिर और चालाक क्यों न हो, कभी-न-कभी कानून के शिकंजे में पहुंचता ही है. शायद किस्से-कहानियों और फ़िल्मों के लिये यह एक सच हो लेकिन वास्तविकता क्या है, किसी से छुपा नहीं. समाज में कितने ही ऐसे अपराधी हैं जो सबूतों के अभाव में न्यायालय से बरी किये जा चुके हैं. कभी कोई साक्ष्य नहीं मिलता तो कभी दहशत के मारे कोई गवाही देने सामने नहीं आता. ऐसे में कई बार पुलिस अधिकारी हाथ मलते रह जाते हैं तो न्यायालय मन मसोसकर.

कहानी है एक ऐसे संगठन की जिसे खड़ा किया है उच्च पदों से सेवानिवृत्त हुए कुछ ईमानदार और जज्बे वाले अधिकारियों की. ये वो लोग हैं जो अपराधियों को उनके सही अंजाम तक पहुंचाने की अपनी तमाम कोशिशों को जीवन भर नाकाफ़ी साबित होता देखते आये हैं. पुलिस की राह में आने वाली बंदिशों और कानून की अड़चनों की वजह से बड़े अपराधियों को बेखौफ़ छुट्टा घूमते देखकर इनका खून खौलता है और वे मानते हैं कि समाज की भलाई इसी में है कि सभी दुर्जनों को कैसे भी करके उनके दुष्कर्मों की सजा अवश्य दी जानी चाहिये.

प्रसिद्ध जीवाणुविज्ञानी मैक्स होलिण्डर छुट्टियों के दौरान मछलियाँ पकड़ते हुए अचानक दम तोड़ देते हैं. गार्थ और प्रोफ़ेसर लुमियर उस वक्त उनके साथ ही थे. मौत का कारण एक अनजान विषाणु (Virus) है. ये काम है ’मछुआरे’ नामक उस रहस्यमय संगठन का जिसका उल्लेख हम ऊपर कर चुके हैं. ’मछुआरे’ इस विषाणु का प्रयोग अपने काम में (यानि बड़े गिरोहबाजों और अपराधियों के सफ़ाये में) करना चाहते है. अपने संगठन की गोपनीयता बनाए रखने की खातिर वे होलिण्डर को भी मौत की नींद सुला देते हैं.

गार्थ और लुमियर को पता चलता है कि मृत वैज्ञानिक एक गोपनीय प्रोजेक्ट पर कार्य कर रहे थे जिसके तहत वे उसी विषाणु पर शोध कर रहे थे जिसने उनकी जान ली है. ये एक ऐसा प्राणघातक विषाणु है जो शरीर में तब सक्रिय होता है जब उसका शिकार पानी के नजदीक जाता है.

होलिण्डर की भतीजी (और सचिव) एम्मा प्रोफ़ेसर के बारे में जानकारी देती है एवम गार्थ को उनकी प्रयोगशाला दिखाने ले जाती है. यहां गार्थ की मुठभेड़ दो किराये के गुण्डों से होती है जो प्रयोगशाला को नष्ट करने के लिये मछुआरों द्वारा भेजे गये हैं. बाद में एक पब में गार्थ उनमें से एक को पहचान लेता है.

गार्थ को अपने संगठन के रास्ते की रुकावट बनते देखकर मछुआरे उसे मारने की कोशिश करते हैं. लेकिन गार्थ इन सबसे बचता हुआ इन लोगों के कानून से ऊपर उठने के प्रयासों को विफ़ल करता रहता है. धीरे-धीरे मछुआरे बिखरना प्रारम्भ हो जाता है और अंततः पूरी तरह समाप्त हो जाता है.

कुछ और भी है:

जब मैंने बचपन में पहली बार ये कहानी पढ़ी थी, तो यह देखकर आश्चर्य में था कि गार्थ आखिर बुरे लोगों का साथ क्यों दे रहा है? क्यों वो इन खतरनाक गिरोहबाजों को सावधान कर उनकी जान बचा रहा है? मछुआरों के विचार और कार्यप्रणाली ने मुझे प्रभावित किया था और मेरा यही मानना था कि वे लोग कुछ गलत नहीं कर रहे थे. बाद में जाकर ये सोच-समझ विकसित हुई कि भले उद्देश्य को सामन रखकर भी यदि बुरे काम किये जाएं तो वे आखिरकार अपराध की ही श्रेणी में आते हैं.

जो भी हो, इस जबरदस्त कहानी ने सोच को काफ़ी प्रभावित किया और कई विचारश्रंखलाओं को जन्म दिया. एक शानदार कहानी.

डाउनलोड करें खूनी फ़रिश्ते (गार्थ)
(इंद्रजाल कॉमिक्स वर्ष२०अंक१८, वर्ष १९८३)

गार्थ पर हमारी ये श्रंखला अभी जारी है. अगली कड़ी में हम गार्थ की कहानियों से जुड़े रहे विभिन्न कलाकारों (कथाकार और चित्रकार) पर बात करेंगे और समय के साथ उसकी कहानियों में क्या-क्या परिवर्तन आये, ये देखेंगे. और भी बहुत कुछ होगा, एक और गार्थ कॉमिक के साथ. तो एक बार फ़िर बहुत जल्द उपस्थित होता हूं.

आप तब तक इस कहानी पर अपने विचार बनाइये और हो सके तो हमें भी बताइये.

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Saturday, December 27, 2008

आतंकवादियों द्वारा वेताल परिवार का अपहरण - वर्ष १९८३ से एक शानदार इन्द्रजाल कथा - "अजेय वेताल"

१९६२ में विल्सन मकॉय के न रहने पर साय बैरी ने वेताल कथाओं के चित्रांकन कार्य का दायित्व संभाला. उन्होंने ली फ़ॉक के साथ मिलकर वेताल के रहस्यमय लोक में अनेक नई अवधारणाओं का समावेश किया. सत्तर के दशक में दुनिया भर में वेताल की लोकप्रियता शिखर पर थी. जोश से भरे हुए फ़ॉक और बैरी मिलकर एक से बढ़कर एक कहानियाँ रच रहे थे.

ये वो समय था जब दुनिया के कई देशों में सैनिक शासकों का आगमन हो रहा था और इन देशों में लोकतंत्र के समर्थक कुचले जा रहे थे. वेताल कथाएँ भी इस उथल-पुथल भरे समय में इस सब से अछूती नहीं रहीं. बंगाला और आइवरी लाना नामक दो देशों की कल्पना की गयी और नये प्रकार के शहरी खतरों का सृजन किया गया. प्रस्तुत कहानी में कुछ ऐसी ही स्थितियाँ नजर आती हैं जब कुछ आतंकवादी, वेताल के समस्त परिवार का अपहरण कर लेते हैं और फ़िरौती में अपने कुछ साथियों की रिहाई मांगते हैं. वेताल के लिये एक और कार्य, और इस बार उसके व्यक्तिगत हित भी जुड़े हुए हैं.

सर्वप्रथम यह कहानी एक सण्डे स्ट्रिप के रूप में वर्ष १९८२ में प्रकाशित हुई थी और उसके अगले वर्ष १९८३ में इन्द्रजाल कॉमिक्स में भी प्रकाशित हुई. इस दौरान भारत में पंजाब, अलगाववाद की आग में सुलग रहा था. आतंकवादी शब्द जो कि अब बड़ा ही आम सा शब्द हो गया है, उन दिनों सुनने में आना शुरू ही हुआ था. इस कॉमिक्स मे इस शब्द को देखा जा सकता है.

पर क्या शानदार दिन थे उस पीढ़ी के बच्चों के लिये. वेताल जैसे महानायक की कहानियाँ एक दूसरे ही लोक की सैर करा देती थीं. टीवी वगैरह भी नहीं था, तो ऐसे में इन विश्वस्तरीय कहानियों में रोमांच के पल ढूढना एक बड़ा ही मनोरंजक शगल हुआ करता था. हर सात दिन में एक नयी इन्द्रजाल कॉमिक्स बाज़ार में आती थी और उसे पढ़कर खत्म करने के साथ ही नये अंक की प्रतीक्षा प्रारम्भ हो जाती थी.

आप आनंद लीजिये इस मजेदार कहानी का.

इन्द्रजाल कॉमिक्स V20N24 "अजेय वेताल" (वर्ष १९८३)




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(३२ पृष्ठ, १२०० पिक्सल वाइड, ९.५ ऐमबी)


एक आवश्यक बात
इस ब्लॉग को प्रारम्भ करते समय मेरा विचार यहां कॉमिक्स पोस्ट करने का नहीं था बल्कि इन्द्रजाल कॉमिक्स के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी बांटने/लेने और चर्चा करने का था. इच्छा यही थी कि वे सभी व्यक्ति जिनके जीवन के कुछ न कुछ पल इन अविस्मरणीय कहानियों और चरित्रों से कहीं न कहीं जुड़े हुए महसूस करते हैं, अपनी स्मृतियाँ ताजा करेंगे और सभी के साथ अपने मीठे अनुभवों को बांटेंगे. पर मुझे खेद है कि ऐसा हो नहीं पाया. प्रारम्भ में ही यहां भी कॉमिक्स पोस्ट करने के लिये अनुरोध आने लगे और फ़िर बस यहाँ कॉमिक्स ही पोस्ट होते रह गये. और फ़िर धीरे-धीरे प्रमुख अनुरोधकर्ता भी नदारत हो गये.

नये वर्ष में मैं इस स्थिति में कुछ बदलाव देखने का इच्छुक हूं. अधिक जोर चर्चा पर रहे, ऐसा प्रयास करूंगा, हालाँकि कॉमिक्स भी साथ में आती रहेंगी. आप सभी लोगों से भी इसमें जुड़ने का अनुरोध है. अपनी यादों को हम सभी के साथ शेयर कीजिये. आखिर हम सभी के दिल में कहीं एक छोटा बच्चा छुपा होता है ना.

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