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Saturday, July 10, 2010

गार्थ की अपनी कहानी (साथ में इंद्रजाल कॉमिक्स से गार्थ की एक लाजवाब कथा भी)

The Daily Mirror Book of Garth - 1975
आप में से कई पाठकों ने इंद्रजाल कॉमिक्स में गार्थ की कथाओं का आनन्द लिया ही होगा. अस्सी के दशक के प्रारम्भ में इंद्रजाल ने जिन नए नायकों को प्रस्तुत किया, गार्थ उनमें से एक था, पर हिन्दुस्तानी पाठकों के लिए वह इतना अनजाना भी नहीं था. हिंदी और अंग्रेजी हिन्दुस्तान दैनिक समाचार पत्रों में वह काफी पहले से छपता आ रहा था. आज हम गार्थ के चरित्र के कुछ कम जाने पहचाने पहलुओं की चर्चा करेंगे.

गार्थ की कहानियों की शुरुआत सन १९४३ में हुई जब इंग्लैंड के प्रसिद्ध समाचार-पत्र डेली मिरर (Daily Mirror) ने एक नये चरित्र को कॉमिक स्ट्रिप के रूप में प्रस्तुत करने का निर्णय लिया. स्टीफ़न डोलिंग (Stephen Dowling) को, जो कि उस समय के प्रसिद्ध और व्यस्त कथा लेखक और कलाकार थे, इस नये चरित्र को अमली जामा पहनाने और संवारने हेतु चुना गया. उन्होंने अपने रचे इस चरित्र को जब अंतिम स्पर्श दिया, तब गार्थ उस रूप में हमारे सामने आया, जैसा कि अब हम उसे पहचानते हैं.

गार्थ की कहानी

पहले दिन की गार्थ स्ट्रिप का दृश्य
यूरोप में स्कॉटलैण्ड के उत्तरी तट से और भी उत्तर की ओर तकरीबन १०० छोटे द्वीपों का एक समूह है. आर्कटिक वृत्त में स्थित इन टापुओं को शेटलैण्ड (Shetlands) कहा जाता है. काफ़ी समय हुआ, एक छोटी सी नौका पर बहता हुआ एक बहुत छोटा बच्चा न जाने कहां से इन्हीं में से एक टापू पर किनारे आ लगा. उस टापू पर बसने वाले एक बुजुर्ग दम्पत्ति की नजर उस पर पड़ी और उन्होंने प्रेम के वशीभूत होकर उस निराश्रित बालक को अपना लिया. इस प्रकार किस्मत के सहारे उस अनाथ बालक के पालन-पोषण का प्रबंध हो जाता है. बड़ा होने पर यही बच्चा गार्थ बनता है और असीम बलशाली युवा के रूप में पहचान बनाता है.

गाला को बेहोश गार्थ मिलता है. वह उसकी देखभाल करती है.
आगे चलकर वह समुद्री सेना में शामिल होता है और अपने पराक्रम से द्रुत प्रगति करता हुआ कैप्टेन की रैंक तक पहुंचता है. एक युद्ध के दौरान उसके शिप को टॉरपीडो से नुकसान होता है और डूबते जहाज से वह एक लकड़ी के लठ्ठे पर तैरता हुआ एक टापू पर किनारे जा लगता है. (कहानी में इस टापू को ’तिब्बत’ में कहीं स्थित बताया गया था. लेकिन यहां कहानीकार की गलती पकड़ में आती है क्योंकि तिब्बत चारों ओर से भूमि से घिरा हुआ प्रदेश है. उसकी सीमा कहीं भी समुद्र से नहीं लगती). किसी चोट की वजह से वह स्मृतिलोप का शिकार हो चुका है और अपने बारे में सबकुछ भूल चुका है. वहां के कबीले की एक लड़की ’गाला’ उसे देख लेती है और उसकी देखभाल करती है. गाला की स्नेहमयी सहायता गार्थ को जल्द ही चलने-फ़िरने में समर्थ बना देती है और वह अपनी शारीरिक शक्ति को पुनः प्राप्त कर लेता है. लेकिन अब भी गार्थ को अपने पूर्व जीवन की कोई भी स्मृति नहीं है.

आस्ट्रा गार्थ की प्रेमिका है.
बाद में उसके मित्र प्रोफ़ेसर लुमियर गार्थ का मनोविश्लेषण द्वारा इलाज करते हैं और एक विकिरण गन की मदद से उसकी विलोपित स्मृति को लौटाने में सफ़ल होते हैं. इस बीच गार्थ के सम्पर्क में ’आस्ट्रा’ नामक देवी भी आती है जो गार्थ के प्रेम में पड़ जाती है. आस्ट्रा गार्थ की तब-तब सहायता करती है, जब भी वह किसी बड़ी कठिनाई में पड़ता है. (आस्ट्रा सौंदर्य की देवी वीनस का ही एक अन्य नाम है, जिसका कि जिक्र ग्रीक मिथकों में आता है.)

सन १९७१ में प्रकाशित कहानी "जर्नी इन्टू फ़ीयर" (Journey into fear) में गार्थ की पृष्ठभूमि पर एक नया एंगल डाला गया. इस कहानी के अनुसार गार्थ के एक पूर्वज धरती से परे सैटर्निस (Saturnis) नामक ग्रह के वासी थे जो एक वैज्ञानिक सर्वेक्षण के सिलसिले में पृथ्वी पर आये थे. उन्हें यहां किसी कन्या से प्रेम हो जाता है और इस युग्म द्वारा जिस सन्तान को जन्म दिया जाता है वही आगे चलकर गार्थ की पीढ़ी का जनक होता है. शायद गार्थ के असीम शक्तिवान होने की छवि को एक ठोस आधार देने के लिये इस प्रकार की कल्पना की गयी होगी.

अपनी बहादुरी और साहस के जलवे दिखाता गार्थ एक परम बलवान योद्धा के तौर पर जाना जाता है. दुनिया में कहीं भी, किसी भी अन्याय और अत्याचार के विरोध में खड़े होने और दुष्टों से टक्कर लेने की प्रकृति के चलते कितनी ही बार उसे जानलेवा हमलों का सामना करना पड़ता है लेकिन हर बार वह मौत को धता बता कर निकल आता है. हालांकि इसमें कभी-कभी किस्मत भी अपना खेल खेलती है और उसके बचाव में मददगार साबित होती है. कहते भी हैं ना "फ़ॉर्चून फ़ेवर्स द ब्रेव".

हालांकि मुश्किल मसलों पर सलाह हेतु वह प्रोफ़ेसर लुमियर का रुख करता है, पर उसकी कथाओं में स्वयं गार्थ भी बहुत समझदार इन्सान के रूप में चित्रित किया जाता रहा है. अपने लौमहर्षक कारनामों को अंजाम देने के दौरान अधिकांश मौकों पर हम उसे ऐसी स्थिति में पाते हैं जब उसे पलक झपकते ही तुरन्त कोई निर्णय लेना होता है. ऐसे ही अवसरों पर हम उसके बुद्धि-चातुर्य का परिचय पाते हैं.

लेकिन गार्थ का व्यक्तित्व एक कुलीनवर्गीय गरिमा से आलोकित और गम्भीरता से परिपूर्ण है. उसकी शौर्य गाथाओं से गुजरते हुए हम शायद ही किसी अवसर पर उसे हंसता (यहां तक कि मुस्कुराता भी) पायेंगे. अपने मिशन और कार्य के प्रति पूर्ण-रुपेण समर्पित इस बहादुर योद्धा के कारनामों के संसार में उतरना सचमुच एक अद्भुत अनुभव से गुजरना है.

छिट-पुट

गार्थ की चर्चा हो और उसकी कहानियों में दर्शायी जाने वाली टॉपलैस सुन्दरियों का जिक्र ना आये, ये कैसे सम्भव है? पिछली कड़ी में मैंने बताया था कि सत्तर और अस्सी के दशक में हिन्दी के समाचार-पत्र में छपने वाले इन चित्रों को लेकर मुझे किस प्रकार शर्मिंदगी उठानी पड़ती थी (बचपन के दिन थे). इसी क्रम में ये जानना भी रोचक है कि फ़्लीट्वे (Fleetway) ने जब १९७५ में "The Daily Mirror Book of Garth" प्रकाशित की, जिसमें उसके प्रमुख कलाकार फ़्रैंक बैलामी (Frank Bellamy) द्वारा बनाये गये क्लासिक चित्र थे, तो उन सभी टॉपलैस महिलाओं के चित्र या तो सैंसर कर दिये गये या फ़िर उन्हें बिकिनी नुमा परिधान पहना दिये गये. कुछ वैसे ही जैसे इन्द्रजाल कॉमिक्स ने भारत में किया.

The Daily Mirror Book of Garth - 1976
लेकिन अगले ही वर्ष (१९७६ में) प्रकाशित अंक में इस प्रकाशन ने, शायद पिछले अनुभव से सीख लेते हुए, इस बार चित्रों में अपनी ओर से कोई परिवर्तन नहीं किया और सभी चित्रों को उनके मूल स्वरूप में यथावत प्रकाशित किया.

और अब हम बढ़ते हैं आज की कॉमिक्स की ओर.

कहानी:

कहते हैं कि कानून के हाथ बहुत लम्बे होते हैं. अपराधी कितना ही शातिर और चालाक क्यों न हो, कभी-न-कभी कानून के शिकंजे में पहुंचता ही है. शायद किस्से-कहानियों और फ़िल्मों के लिये यह एक सच हो लेकिन वास्तविकता क्या है, किसी से छुपा नहीं. समाज में कितने ही ऐसे अपराधी हैं जो सबूतों के अभाव में न्यायालय से बरी किये जा चुके हैं. कभी कोई साक्ष्य नहीं मिलता तो कभी दहशत के मारे कोई गवाही देने सामने नहीं आता. ऐसे में कई बार पुलिस अधिकारी हाथ मलते रह जाते हैं तो न्यायालय मन मसोसकर.

कहानी है एक ऐसे संगठन की जिसे खड़ा किया है उच्च पदों से सेवानिवृत्त हुए कुछ ईमानदार और जज्बे वाले अधिकारियों की. ये वो लोग हैं जो अपराधियों को उनके सही अंजाम तक पहुंचाने की अपनी तमाम कोशिशों को जीवन भर नाकाफ़ी साबित होता देखते आये हैं. पुलिस की राह में आने वाली बंदिशों और कानून की अड़चनों की वजह से बड़े अपराधियों को बेखौफ़ छुट्टा घूमते देखकर इनका खून खौलता है और वे मानते हैं कि समाज की भलाई इसी में है कि सभी दुर्जनों को कैसे भी करके उनके दुष्कर्मों की सजा अवश्य दी जानी चाहिये.

प्रसिद्ध जीवाणुविज्ञानी मैक्स होलिण्डर छुट्टियों के दौरान मछलियाँ पकड़ते हुए अचानक दम तोड़ देते हैं. गार्थ और प्रोफ़ेसर लुमियर उस वक्त उनके साथ ही थे. मौत का कारण एक अनजान विषाणु (Virus) है. ये काम है ’मछुआरे’ नामक उस रहस्यमय संगठन का जिसका उल्लेख हम ऊपर कर चुके हैं. ’मछुआरे’ इस विषाणु का प्रयोग अपने काम में (यानि बड़े गिरोहबाजों और अपराधियों के सफ़ाये में) करना चाहते है. अपने संगठन की गोपनीयता बनाए रखने की खातिर वे होलिण्डर को भी मौत की नींद सुला देते हैं.

गार्थ और लुमियर को पता चलता है कि मृत वैज्ञानिक एक गोपनीय प्रोजेक्ट पर कार्य कर रहे थे जिसके तहत वे उसी विषाणु पर शोध कर रहे थे जिसने उनकी जान ली है. ये एक ऐसा प्राणघातक विषाणु है जो शरीर में तब सक्रिय होता है जब उसका शिकार पानी के नजदीक जाता है.

होलिण्डर की भतीजी (और सचिव) एम्मा प्रोफ़ेसर के बारे में जानकारी देती है एवम गार्थ को उनकी प्रयोगशाला दिखाने ले जाती है. यहां गार्थ की मुठभेड़ दो किराये के गुण्डों से होती है जो प्रयोगशाला को नष्ट करने के लिये मछुआरों द्वारा भेजे गये हैं. बाद में एक पब में गार्थ उनमें से एक को पहचान लेता है.

गार्थ को अपने संगठन के रास्ते की रुकावट बनते देखकर मछुआरे उसे मारने की कोशिश करते हैं. लेकिन गार्थ इन सबसे बचता हुआ इन लोगों के कानून से ऊपर उठने के प्रयासों को विफ़ल करता रहता है. धीरे-धीरे मछुआरे बिखरना प्रारम्भ हो जाता है और अंततः पूरी तरह समाप्त हो जाता है.

कुछ और भी है:

जब मैंने बचपन में पहली बार ये कहानी पढ़ी थी, तो यह देखकर आश्चर्य में था कि गार्थ आखिर बुरे लोगों का साथ क्यों दे रहा है? क्यों वो इन खतरनाक गिरोहबाजों को सावधान कर उनकी जान बचा रहा है? मछुआरों के विचार और कार्यप्रणाली ने मुझे प्रभावित किया था और मेरा यही मानना था कि वे लोग कुछ गलत नहीं कर रहे थे. बाद में जाकर ये सोच-समझ विकसित हुई कि भले उद्देश्य को सामन रखकर भी यदि बुरे काम किये जाएं तो वे आखिरकार अपराध की ही श्रेणी में आते हैं.

जो भी हो, इस जबरदस्त कहानी ने सोच को काफ़ी प्रभावित किया और कई विचारश्रंखलाओं को जन्म दिया. एक शानदार कहानी.

डाउनलोड करें खूनी फ़रिश्ते (गार्थ)
(इंद्रजाल कॉमिक्स वर्ष२०अंक१८, वर्ष १९८३)

गार्थ पर हमारी ये श्रंखला अभी जारी है. अगली कड़ी में हम गार्थ की कहानियों से जुड़े रहे विभिन्न कलाकारों (कथाकार और चित्रकार) पर बात करेंगे और समय के साथ उसकी कहानियों में क्या-क्या परिवर्तन आये, ये देखेंगे. और भी बहुत कुछ होगा, एक और गार्थ कॉमिक के साथ. तो एक बार फ़िर बहुत जल्द उपस्थित होता हूं.

आप तब तक इस कहानी पर अपने विचार बनाइये और हो सके तो हमें भी बताइये.

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Monday, July 5, 2010

गार्थ के साथ जुड़ी हैं बचपन की यादें (इंद्रजाल कॉमिक्स से गार्थ की एक रोचक कहानी)

गार्थ से मेरा परिचय बहुत बचपन में ही हो गया था. तब, जबकि वेताल जैसे सर्व-प्रिय नायक से भी जान-पहचान नहीं हुआ करती थी. बात तब की है जब मेरी अवस्था कोई तीन-चार बरस की रही होगी और कॉमिक्स पढ़ने और समझने लायक समझ विकसित नहीं हुई थी. तब ’हिन्दुस्तान दैनिक’ समाचार-पत्र में प्रतिदिन तीन पैनल की गार्थ की कॉमिक पट्टिका छपा करती थी और उन चित्रों के द्वारा मेरे बाल मन पर इस हट्टे-कट्टे, कद्दावर, बलिष्ठ जवान की ऐसी प्रभावशाली छवि अंकित हुई जो अब तक अपनी छाप बनाए हुए है.

Garth With Prof. Lumiere
गार्थ कई मायनों में अनूठा नायक हुआ करता था. उसके पास कोई अतीन्द्रिय शक्तियां नहीं होती थीं, कोई अद्भुत गैजेट्स नहीं, किसी अपराध-निरोधी संगठन का वह सदस्य नहीं था. केवल अपने मांसपेशियों के बल पर और अपराधियों से टकराने की दृढ़ इच्छाशक्ति के सहारे वह दुनिया भर में कहीं भी, किसी भी प्रकार के दुष्कर्मियों से अकेले ही भिड़ने को तैयार रहा करता था. उसके सहायकों की सूची भी बड़ी संक्षिप्त सी थी. केवल एक बुजुर्ग प्रोफ़ेसर लुमियर और देवी आस्ट्रा.
Garth With Goddess Astra

अपने साहसिक कारनामों को अंजाम देने के लिये गार्थ सुदूर तक की यात्राएँ किया करता था, जो केवल पृथ्वी तक ही सीमित न होकर कभी-कभी अंतरिक्ष की अतल गहराइयों तक का विस्तार नापा करती थीं. ये वो दौर था जब मानव अपनी धरा के गुरुत्व बल से बाहर निकलकर अंतरिक्ष की थाह लेने की रोमांचक कोशिशों में जी-जान से संलग्न था और इसका प्रभाव उस समय की कहानियों पर भी स्पष्ट नजर आता था.
Garth is a time-traveler

इसके अलावा एक अन्य बात में गार्थ की कहानियाँ अन्य कथानायकों से अलग हुआ करती थीं कि ये था कि गार्थ एक काल-यात्री था. वह भूत और भविष्यत दोनों कालों में भ्रमण करता था. जैसे कि एक कहानी में वह ईसा पूर्व ४०० वर्ष के प्राचीन ओलम्पिक में भाग लेने वाला एक किसान था तो कभी भविष्य में पहुंचकर धरती पर आक्रमण करने वाली मशीनों के समुदाय से लोहा लेता एक योद्धा बन जाता था (कहानी - कम्प्यूटरों का राजा, ७० के दशक में प्रकाशित, इन्द्रजाल में बिना छपी). ये मैट्रिक्स तिकड़ी से काफ़ी पहले की बात है.

लेकिन एक बात समाचार पत्र में छपने वाली स्ट्रिप को कभी-कभी मेरे लिये ऐम्बैरॅसिंग बना देती थी वह ये थी कि इसमें न्यूडिटी का प्रयोग काफ़ी खुले मन से और बहुतायत में किया जाता था. कई महिला चरित्र बिल्कुल वस्त्रहीन चित्रित किये जाते थे (कभी-कभार स्वयं गार्थ भी). उदाहरण के तौर पर गार्थ की सहयोगी और देवी आस्ट्रा को मैंने शायद ही कभी किसी परिधान में देखा हो. अब सोच कर आश्चर्य होता है कि अब से इतना पीछे, सत्तर के दशक में, एक भारतीय समाचार पत्र में प्रकाशित होने वाले इन चित्रों में इस कदर खुलापन (इसे प्रकाशक की धृष्टता कहिये या साहस) बगैर किसी विरोध के कैसे जारी रह पाया.
Garth stories contained nudity to some extent

जब १९८१-८२ में इन्द्रजाल कॉमिक्स ने अपने नायकों की टोली में कुछ नये सदस्यों के शामिल किये जाने की घोषणा की (जिनमें गार्थ एक था) तो, मुझे याद है, किस कदर खुशी हुई थी. कुछ ऐसी कॉमिक्स तब रंगीन चित्रों सहित पढ़ने को मिलीं जो पहले केवल श्वेत-श्याम कॉमिक स्ट्रिप के रूप में ही पढ़ी थीं. लेकिन इन कहानियों के प्रकाशन हेतु एक काम जो टाइम्स ऑफ़ इन्डिया को करना पड़ा, और जो जरूरी भी था, वो ये कि सभी न्यूड चित्रों को ब्रश चलाकर वस्त्रावरण से ढंकना पड़ा.

गार्थ पर हम चर्चा जारी रखेंगे. आज उसकी एक कहानी पढ़ी जाए. ये कहानी इन्द्रजाल कॉमिक्स में वर्ष १९८७ में प्रकाशित हुई थी और अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादियों के एक संगठन से गार्थ की मुठभेड़ के बारे में है.

कहानी:

दक्षिण अमेरिका में एक समुद्र-तटीय रेस्तरां में छुट्टियों का आनन्द लेकर बाहर निकल रहे गार्थ की नजरों के सामने ही एक धमाका होता है और रेस्तरां के परखच्चे उड़ जाते हैं. ये धमाका करके एक ट्रक में फ़रार होते हमलावर का पीछा कर गार्थ उसे पकड़ लेता है लेकिन वह सायनाइड पीकर आत्महत्या कर लेता है. इस हमलावर से बरामद कागजों से जापान की एक फ़र्म का पता मिलता है. इस सूत्र के सहारे गार्थ जापान जा पहुंचता है जहां उसका सामना एक गिरोह से होता है. गार्थ को मारने की कोशिश नाकाम होती है और वह गिरोह के कार्य-विवरण का लेखा-जोखा हासिल कर उसे पुलिस को मुहैया करवा देता है.

यहां से उसे जानकारी मिलती है कि दक्षिण अमेरिका के रेस्तरां में बम रखवाने का काम हिन्द महासागर स्थित एक देश ’कम्बोइना’ की किसी ’हार्पर’ नामक कम्पनी ने किया था. गार्थ कम्बोइना पहुंचता है जहां उसकी मुलाकात सैम लॉयड नामक इंजीनियर से होती है. दोनों में मित्रता हो जाती है. सैम और उसकी स्थानीय पत्नी ’हार्पर’ कम्पनी में ही काम करते हैं और वे यह मानने को तैयार नहीं हैं कि उनकी कम्पनी का किसी तरह के आतंकवाद से कोई वास्ता हो सकता है.

गार्थ एक युक्ति से ’हार्पर’ के मालिक ’रागोटी’ की नजरों तक पहुंचता है और अपने बलशाली व्यक्तित्व से उसे तुरन्त प्रभावित कर उसकी कम्पनी में शामिल हो जाता है. यहां उसे जानकारी मिलती है कि ’हार्पर’ नामक कम्पनी दरअसल आतंकवादियों के इस बड़े अंतर्राष्ट्रीय गिरोह का एक छद्म आवरण मात्र है. इनका वास्तविक काम तो पैसा लेकर दुनिया में कहीं भी आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देना है.

गार्थ को उसका पहला असाइनमेन्ट दिया जाता है जिसके तहत उसे वेस्टइंडीज में एक सेमिनार के दौरान बम विस्फ़ोट करना है. सही समय पर गार्थ इस कुटिल योजना में गड़बड़ी पैदा कर इस प्रकार से घटनाक्रम को मोड़ता है कि उसके साथी दो आतंकी मारे जाते हैं और वह कम्बोइना लौट आता है. रागोटी को उस पर शक होता है.

गार्थ को अगला काम सौंपा जाता है. लेकिन इससे पहले कि वह अपने अभियान पर रवाना हो उसे खबर मिलती है कि उसका दोस्त सैम दुर्घटनाग्रस्त हो गया है. सैम की पत्नी जो हार्पर कम्पनी में काम करती है उसे बताती है कि असल में सैम पर हमला स्वयं कम्पनी के ही एक शीर्ष कर्मचारी स्मिथ ने करवाया है क्योंकि उसकी नजर इस महिला पर है. वह गार्थ को यह भी बताती है कि अपने नये मिशन से वे लोग जिन्दा नहीं लौट पायेंगे क्योंकि रागोटी ने उनके खाने में जहर मिला दिया है. इस बात की जानकारी गार्थ मिशन के अपने साथियों को दे देता है और वे भड़क उठते हैं. कम्पनी के कारिन्दों में विद्रोह फ़ैल जाता है और इस गड़बड़ी का लाभ उठाकर गार्थ और साथी शस्त्रागार में बम प्लांट कर देते हैं. सारी इमारत धू-धू कर जल उठती है और रागोटी के खूनी दल का सफ़ाया हो जाता है. स्वयं रागोटी भी मारा जाता है.

गार्थ सैम की विधवा से मिलता है जो स्मिथ के अंत से सन्तुष्ट है. आखिर उसे सैम की मौत का बदला मिला. गार्थ लंदन लौट आता है.

कुछ और:

इन्द्रजाल के अधिकांश अन्य नायकों से अलग गार्थ एक ब्रिटिश कॉमिक हीरो है, जबकि बाकी सभी (कुछ भारतीय पात्रों को छोड़कर) अमरीकन होते थे. ओरिजिन का ये फ़र्क कहानियों में नजर भी आता है.

ये कहानी काफ़ी तेज गति से चलती है जो गार्थ की अधिकांश कहानियों के साथ देखने को मिलता है. यही गति पाठक को बांधे रखती है. एक्शन-एड्वेंचर के शौकीनों के लिये ये एक बढ़िया कॉमिक्स है.


(इन्द्रजाल कॉमिक्स वर्ष२४संख्या३४, वर्ष १९८७)

स्कैन्स को चमकाने का काम प्रभात भाई ने किया है. काफ़ी मेहनत का काम है जिसके लिये उन्हें धन्यवाद. अंतिम दो पृष्ठ कॉमिक वर्ल्ड की भेंट हैं. उनका भी आभार.

जैसा मैंने पहले कहा, गार्थ पर बात अभी जारी रहेगी. अगली कड़ी में हम उसकी शुरुआत और पृष्ठभूमि के बारे में बात करेंगे. साथ ही गार्थ की कुछ रोचक कहानियों की भी चर्चा करेंगे. एक और रोचक गार्थ कॉमिक तो होगी ही. तो फ़िर जल्द ही हाजिर होता हूं.

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Tuesday, August 4, 2009

चंबल की घाटियों में दहकता प्रतिशोध

वह बचपन की एक उदास धुंधली शाम थी। जब क्षितिज से सुरमई धुआं उठने लगता और घरों में साठ वाट के बल्ब की पीली रोशनी चमकने लगती थी। शाम को परिवार के बड़े घर लौटते तो कुछ नया घटित होने का चस्का भी रहता था। बड़े भाई के हाथ में इंद्रजाल कॉमिक्स का नया अंक देख लिया तो फिर क्या कहना, बस इस बात का झगड़ा रहता था कि कौन पहले पढ़ेगा। ऐसी ही एक शाम आज भी स्मृति में बसी हुई है। इस बार इंद्रजाल कॉमिक्स के कवर पर एक अनजान शख्स था। शीर्षक था, लाल हवेली का रहस्य। किरदार था, बहादुर। यह थी बहादुर सिरीज की पहली कॉमिक्स। हिन्दी और गुजराती के लेखक और चित्रकार आबिद सूरती ने इस सिरीज के आरंभ के तीन टाइटिल को किसी क्लासिक जैसी ऊंचाइयां दी थीं। ये तीन कहानियां बहादुर के किरदार और उसके वातावरण के विकास को सामने रखती थीं।


यह बिल्कुल नया अनुभव था। यहां गांव था, गली में भौंकते कुत्ते थे। चंबल की नदी, पुल और डकैत थे। मां थी। प्रतिशोध की तपिश थी। आम नायकों से हटकर हम पहली ही कड़ी में बहादुर को एक भटके हुए इनसान के रूप में पाते हैं। जिसका पिता एक डकैत था और उसे ही वह अपना आदर्श मानता था। उसने अपनी मां को वचन दिया था कि अपने पिता के ह्त्यारे इंस्पेक्टर विशाल को खत्म करके वह अपना प्रतिशोध पूरा करेगा। वह अपने घर में साइकिल के पाइप से देसी बंदूक तैयार करता है। कहानी की शुरुआत में ही अद्भुत ड्रामा था। डकैत पूरे गांव मे लूटपाट करते हैं मगर लाल हवेली की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखते। विशाल हवेली के भीतर मां और बेटे के संवाद अजीब सा एकालाप रचते हैं। मां बाहर गोलियों की आवाज से थोड़ा भयभीत होती है, तो बेटा कहता है कि फिक्र मत करो यहां कोई नहीं आएगा।

कहानी मे आगे बहादुर एक डकैत से वादा करता है कि वह अपना प्रतिशोध लेकर बीहड़ों में आ जाएगा। कहानी के एक लंबे नाटकीय मोड़ में विशाल खुद बहादुर के पास निहत्था पहुंचता है। इंस्पेक्टर विशाल उसे उन जगहों पर जाता है जहां बहादुर के पिता के अत्याचार निशानियां अभी भी मौजूद हैं। बहादुर के भीतर से अपने पिता की रॉबिनहुड छवि टूटती है। अंर्तद्वंद्व के गहरे क्षणों से गुजरने के बाद वह तय करता है कि पिता के गुनाहों का प्रायश्चित करने का एक ही उपाय है कि वह खुद को डकैतों के खिलाफ खड़ा करे। गांव मे एक बार फिर डकैतों का हमला होता और इस बार लाल हवेली से गोली चलती है।


यह दुर्भाग्य था कि आबिद सूरती जैसे कलाकार को वह शोहरत नहीं मिली जिसके वे हकदार थे। उनकी यह कॉमिक्स किंग फीचर्स सिंडीकेट की कई चित्रकथाओं पर भारी पड़ती थी। कॉमिक्स की पटकथा और चुटीले संवाद आबिद सूरती के होते थे और चित्र गोविंद ब्राह्रणिया के। यहां मैं यह स्पष्ट करना चाहूंगा कि बहादुर किरदार मुझे उसी वक्त कर पसंद आया जब तक आबिद उससे जुड़े रहे। इसके बाद जगजीत उप्पल (शायद यही नाम था) बहादुर को लिखने लगे और वह बहुत खराब हो गया। यहां तक कि गोविंद के चित्रों में भयंकर रूप से कल्पनाशीलता का अभाव दिखने लगा। बहादुर ने शहरों का रुख कर लिया, जासूसी किस्म की हल्की-फुल्की कहानियों के बीच वह किरदार फंसकर रह गया।

आबिद में ऐसी क्या खूबी थी इस बारे में मैं कुछ लिखना चाहूंगा। सबसे बड़ी बात उन्हें फ्रेम दर फ्रेम अपनी बात को एक नाटकीय विधा में कहने की कला आती थी। सिनेमा की शाट्स टेक्नीक का उन पर गहरा प्रभाव था। उन्हें पता था कि फ्रेम के भीतर किस आब्जेक्ट को हाईलाइट करना है। पहली ही कॉमिक्स में हम देखते हैं चंबल का विशाल कैनवस, उड़ती धूल और दौड़ते घोड़े। गांव के चित्रण में वे छोटी-छोटी बारीकियों का ध्यान रखते थे, गोलाबारी के दौरान भौंकते कुत्ते तक का... कुछ जगहों पर उन्होंने आंखों को एक्स्ट्रीम क्लोजअप की स्टाइल में चित्रित किया था जो मुझे आज भी याद है। आबिद की भारतीय जनमानस और स्थानीयता पर गहरी पकड़ थी।

कुछ साल पहले लखनऊ में हुई एक मुलाकात में आबिद ने बताया कि जीवन के आरंभिक दिनों के संघर्ष में उन्होने बतौर क्लैप ब्वाय काम किया, और सिनेमा एडीटिंग की बारीकियां सीखीं जो बाद मे कहानी कहने की कला में उनके ज्यादा काम आया। उन्होंने कुछ समय शायद बतौर पत्रकार भी काम किया था, लिहाजा बहादुर के परिवेश के लिए उन्होंने काफी शोध किया था। उन दिनों चंबल मे डाकुओं का काफी आतंक था, वहां आई खबरों से ही उन्हें उस परिवेश को चुनने का आइडिया मिला।


बहादुर की कॉमिक्स में कुछ बड़े ही दिलचस्प किरदार मिले। इसमें उसकी प्रेमिका बेला, सुखिया, मुखिया जैसे तमाम लोग थे। इनमें से सुखिया मुझे बहुत पसंद था। एक घरेलू और बूढ़ा आदमी जिसके परिवार को डकैतों ने खत्म कर दिया बाद में नागरिक सुरक्षा दल का एक कड़क कैडेट बन जाता है। बहादुर ने जिस जीवन को एक्सप्लोर किया था, उसमे आज भी बहुत संभावनाएं हैं। कुछ-कुछ डोगा कॉमिक्स ने इसे पकड़ने की कोशिश की थी मगर वह बात नहीं बन पाती, उसमें बहुत ज्यादा मेलोड्रामा है तो वह बी-ग्रेड फिल्मों के स्तर तक ही पहुंच पाता है।

एक्स्ट्रा शॉट्स

आबिद सूरती ने कुछ और बहुत दिलचस्प कॉमिक्स तैयार किए थे। इनमें से दो मुझे ध्यान हैं इंस्पेक्टर आजाद और इंस्पेक्टर गरुड़। इनका परिवेश अक्सर ग्रामीण या कस्बई होता था। लोगों का रहन-सहन पोशाक और कैरेक्टराइजेशन बहुत दिलचस्प थे। इंस्पेक्टर आजाद की कुछ कॉमिक्स बाद मे गोवरसंस कामिक्स जो मधुमुस्कान वाले निकालते थे छापी थी, पर शायद वह पापुलर नहीं हो सकी। इंस्पेक्टर आजाद सिरीज में उन्होंने आजादी से पहले भारत में रहने वाली एक लुटेरा जनजाति पिंढारियों पर आधारित एक कॉमिक्स लिखी थी जो बेहद दिलचस्प थी।


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Saturday, August 1, 2009

इंद्रजाल कॉमिक्सः वो कहानियां, वो किरदार

इंद्रजाल कॉमिक्स में जाहिर तौर पर ली फॉक के किरदार ही छाए रहे, मगर बीच का एक दौर ऐसा था जब इसने कुछ नए और बड़े ही दिलचस्प कैरेक्टर्स से भारतीय पाठकों से रू-ब-रू कराया। मैं उन्हीं किरदारों पर कुछ चर्चा करना चाहूंगा। कॉमिक्स की बढ़ती लोकप्रियता के चलते 1980 में टाइम्स ग्रुप ने इसे पाक्षिक से साप्ताहिक करने का फैसला कर लिया। यानी हर हफ्ते एक नया अंक। शायद प्रकाशकों के सामने हर हफ्ते नई कहानी का संकट खड़ा होने लगा। 1981-82 में अचानक इंद्रजाल कॉमिक्स ने किंग फीचर्स सिंडीकेट की मदद से चार-पांच नए किरदार इंट्रोड्यूस किए। मेरी उम्र तब करीब दस बरस की रही होगी। मुझे ये किरदार बहुत भाए। इसकी एक सबसे बड़ी वजह यह थी कि ये सारे कैरेक्टर वास्तविकता के बेहद करीब थे। उन कहानियों में हिंसा बहुत कम थी और वे एक खास तरीके से नैतिक मूल्यों का समर्थन करते थे।


सबसे पहले जो कैरेक्टर सामने आया वह था कमांडर बज सायर का। कमांडर सायर की पहली स्टोरी इंद्रजाल कॉमिक्स में शायद खूनी षड़यंत्र थी। कमांडर सायर की कहानियों की सबसे बड़ी खूबी यह थी कि उनके कैरेक्टर वास्तविक जीवन से उठाए हुए होते थे। इनके नैरेशन में ह्मयूर का तड़का होता था। इनमें से कई कहानियां क्राइम पर आधारित नहीं होती थीं। वे सोशल किस्म की कहानियां होती थीं। जैसा कि मुझे याद है एक कहानी सिर्फ इतनी सी थी कि एक बिल्ली का बच्चा पेड़ पर चढ़ जाता है और उतरने का नाम नहीं लेता। फायर ब्रिगेड वाले भी कोशिश करके हार जाते हैं। आखिर कमाडंर सायर पेड़ पर चढ़कर उसे पुचकार कर उतारते हैं। एक अकेली विधवा मां और उसके बच्चे की कहानी, अनजाने में अपराधी बन गए दो बच्चों की कहानी... कुछ यादगार अंक हैं। आम तौर पर इनका कैनवस अमेरिकन गांव हुआ करते थे।


इसके तुरंत बात दूसरा कैरेक्टर इंट्रोड्यूस हुआ कैरी ड्रेक का। ड्रेक एक पुलिस आफिसर था। यहां भी कुछ खास था। पहली बात किसी भी कॉमिक्स मे कैरी ड्रेक बहुत कम समय के लिए कहानी में नजर आता था। अक्सर ये कहानियां किसी दिलचस्प क्राइम थ्रिलर की बुनावट लिए होती थीं। कैरेक्टराइजेशन बहुत सशक्त होता था। एक और खास बात थी कैरी ड्रेक के अपराधी किसी प्रवृति के चलते अपराध नहीं करते थे। अक्सर परिस्थितियां उन्हें अपराध की तरफ ढकेलती थीं और वे उनमें फंसते चले जाते थे। इन कहानियों का सीधा सा मोरल यह था कि अगर अनजाने में भी आपने गुनाह की तरफ कदम बढ़ा लिए तो आपको अपने जीवन में उसकी एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी और तब पछतावे के सिवा कुछ हाथ नहीं लगे। कुछ अपनी जिद, तो कुछ अपनी गलत मान्यताओं के कारण अपराध के दलदल में फंसते चले जाते थे। हर कहानी में एक केंद्रीय किरदार होता था। उसके इर्द-गिर्द कुछ और चरित्र होते थे। उन्हें बड़ी बारीकी से गढ़ा जाता था। अब मैं उन तमाम चरित्रों को याद करता हूं तो यह समझ मे आता है कि उसके रचयिता ने तमाम मनोवैज्ञानिक पेंच की बुनियाद पर उन्हें सजीव बनाया जो कि वास्तव में एक कठिन काम है और हमारे बहुत से साहित्यकार भी इतने वास्तविक और विश्वसनीय चरित्र नहीं रच पाते।


इसके बाद बारी आती है रिप किर्बी की। इंद्रजाल में रिप किर्बी की पहली कहानी हिन्दी में रहस्यों के साए और अंग्रेजी में द वैक्स एपल के नाम से प्रकाशित हुई थी। साफ-सुथरे रेखांकन वाली इन कहानियों मे एक्शन बहुत कम होता था। मुझे रिप किर्बी की एक कहानी आज भी याद है, जिसमें रिप किर्बी और उनका सहयोगी एक ऐसे टापू पर जा पहुंचते हैं जो अभी भी 1830 के जमाने में जी रहा है। बाहरी दुनिया से उनका संपर्क हमेशा के लिए कट चुका है। वहां पर अभी भी घोड़ा गाड़ी और बारूद भरकर चलाई जाने वाली बंदूके हैं।


इस पूरी सिरीज में मुझे सबसे ज्यादा पसंद माइक नोमेड था। अभी तक मैंने किसी भी पॉपुलर कॉमिक्स कैरेक्टर का ऐसा किरदार नहीं देखा जो बिल्कुल आम आदमी हो। उसके भीतर नायकत्व के कोई गुण नहीं हों। यदि आपने कुछ समय पहले नवदीप सिंह की मनोरमा सिक्स फीट अंडर देखी हो तो अभय देओल के किरदार में आप आसानी से माइक नोमेड को आइडेंटीफाई कर सकते हैं। यह इंसान न तो बहुत शक्तिशाली है, न बहुत शार्प-तीक्ष्ण बुद्धि वाला, न ही जासूसी इसका शगल है। माइक नोमेड के भीतर अगर कोई खूबी है तो वह है ईमानदारी। अक्सर माइक को रोजगार की तलाश करते और बे-वजह इधर-उधर भटकते दिखाया जाता था। सच्चाई तो यह थी कि ये कैरेक्टर्स भारतीय पाठकों को बहुत अपील नही कर सके और इंद्रजाल प्रकाशन इनके जरिए फैंटम या मैंड्रेक जैसी लोकप्रियता नहीं हासिल कर सका।


एक और कैरेक्टर था गार्थ का। इस किरदार का संसार सुपरनैचुरल ताकतों से घिरा था। गार्थ अन्य कैरेक्टर्स के मुकाबले थोड़ा वयस्क अभिरुचि वाला था। गार्थ के रचयिताओं ने कई बेहतरीन क्राइम थ्रिलर भी दिए हैं। इसमें से एक तो इतना शानदार है कि बॉलीवुड में अब्बास-मस्तान उसकी नकल पर एक शानदार थ्रिलर बना सकते हैं। कहानी है जुकाम के उत्परिवर्ती वायरस की जो बेहतर घातक है [कुछ-कुछ स्वाइन फ्लू की तरह], इसकी खोज करने वाले प्रोफेसर की हत्या हो जाती है। प्रोफेसर की भतीजी, गार्थ और गार्थ के प्रोफेसर मित्र इस मामले का पता लगाने की कोशिश करते हैं। पता लगता है कि कुछ सेवानिवृत अधिकारियों और रसूख वालों ने अपराधियों को खत्म करने का जिम्मा उठाया है, एक गोपनीय संगठन के माध्यम से। वे एक के बाद एक अपराधियों को पहचान कर उन्हें ठिकाने लगाने में जुटे हैं। यह रोमांचक तलाश उन्हें ले जाती है हांगकांग तक, जहां एक बेहतर खूबसूरत माफिया सरगना इस त्रिकोणीय संघर्ष का हिस्सा बनती है। संगठन से जुड़े लोग हांगकांग की सड़कों पर मारे जाते हैं और उनका सरगना अपना मिशन फेल होने पर आत्महत्या कर लेता है।


इंद्रजाल की इस श्रंखला का आखिरी कैरेक्टर था सिक्रेट एजेंट कोरिगन। इस सिरीज के तहत प्रकाशित कहानियां दो किस्म की थीं। दोनों के चित्रांकन और कहानी कहने का तरीका बेहद अलग था। पहला वाला बेहद उलझाऊ और दूसरा बहुत ही सहज और स्पष्ट। पहले किस्म की कोरिगन की कहानियों को पढ़कर समझ लेना मेरे लिए उन दिनों एक चुनौती हुआ करता था। उन्हें पढ़ने के लिए विशेष धैर्य की जरूरत पड़ती थी, लगभग गोदार की फिल्मों की तरह। इसके रचयिता कम फ्रेम में बात कहने की कला में माहिर थे। मगर नैरेशन की कला का वे उत्कृष्ट उदाहरण थीं इनमें कोई शक नहीं।

एक्सट्रा शॉट्स

मेरी जानकारी में इंद्रजाल कॉमिक्स ने दो बिल्कुल अलग तरह की कॉमिक्स निकाली है। इनमें से एक है मिकी माउस की प्रलय की घड़ी। यह संभवतः साठ के दशक में प्रकाशित एक जासूस कहानी थी। मिकी माउस और गुफी के अलावा सारे चरित्र रियलिस्टिक थे। कहानी वेनिस की पृष्ठभूमि पर थी। वेनिस की नहरों, वहां की गलियों और पुलों का बेहद खूबसूरत चित्रण, उस कॉमिक्स के जरिए ही मैं वेनिस के बारे में जान सका। कहानी थी म्यूजियम में रखे गई एक अद्भुत मशीन की, जिसकी किरणें अगर किसी को ढक लें तो वह अदृश्य हो जाएगा। कुछ लोग साजिश रचकर वेनिस के जलमग्न होकर डूब जाने की अफवाह फैला देते हैं। देखते-देखते लोगों में भगदड़ मच जाती है और वे शहर छोड़कर जाने लगते हैं। इस बीच चोरों का दल उस मशीन को चुराने की कोशिश करता है जिसे मिकी माउस और गुफी नाकाम कर देते हैं।

सन् अस्सी में बाहुबली का मस्तकाभिषेक हुआ, जो हर बारह वर्ष बाद होता है। इसे उस दौर के मीडिया ने बहुत कायदे से कवर किया। शायद यह इंद्रजाल के मालिकानों की ख्वाहिश रही होगी, उस वक्त एक विशेष विज्ञापन रहित अंक निकला था जो अमर चित्रकथा स्टाइल में बाहुबली की कथा कहता था।

दिनेश श्रीनेत


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Wednesday, January 21, 2009

रहस्यमय वेताल प्रदेश की जातियाँ और कबीले

डेंकाली के हजार मील तक फ़ैले विशाल जंगल में अनेक इन्सानी जातियाँ निवास करती हैं. प्रथम वेताल की प्राण-रक्षा करनेवाले और फ़िर उसकी मदद से वसाका हमलावरों को खदेड़ने में सफ़ल होने वाले बांडार बौनों के अलावा और कोई इस बात से परिचित नहीं है कि वेताल भी असल में एक आम इन्सान है और वह एक पारिवारिक परम्परा के तहत दुनिया भर में बुराई के खिलाफ़ संघर्ष करता है. बाकी जातियों का केवल यही विश्वास है कि वेताल अमर है.

जंगल में प्रथम वेताल के आगमन से पूर्व यहाँ के सभी कबीले आपस में निरन्तर संघर्ष करते रहते थे. वेताल के कई पूर्वजों के लगातार प्रयासों का नतीजा है कि अब यहां शांति स्थापित है. हालांकि जंगल के अधिकांश कबीले वेताल के साथ मित्रवत आचरण करते हैं लेकिन कुछ कबीले अभी भी अपने सदियों पुराने स्वरूप को बनाये हुए हैं और जंगल के नियमों पर चलने में ही विश्वास करते हैं.

वेताल प्रदेश में निवास करने वाली कुछ प्रमुख जातियाँ हैं:

१. बांडार बौने - बौने बांडार घने जंगल के बीचों-बीच बीहड़बन (Deep Woods) में निवास करते हैं और वेताल के सबसे घनिष्ठ सहयोगी हैं. वेताल के रहस्य को जानने वाले ये अकेले हैं और बीहड़बन की रक्षा करना इनकी जिम्मेदारी है. ये लोग अपने जहर बुझे तीरों के कारण अन्य सभी जातियों के लिये भी भय का कारण हैं. इनके होते कोई बाहरी व्यक्ति बीहड़बन तक पहुचने की सोच भी नहीं सकता. इनका मुखिया गुर्रन है जो वर्तमान वेताल का बचपन का मित्र है.
२. वाम्बेसी - जंगल की दो सबसे बड़ी जातियों में से एक. ये लोग मुख्यतः खेती-किसानी पर निर्भर करते हैं और वेताल को अपना मित्र मानते हैं. वाम्बेसी जंगल की सबसे धनी जाति है.
३. लोंगो - जंगल की दूसरी बड़ी जाति. वाम्बेसियों से इनकी नहीं बनती पर 'वेताल शांति संधि' के अनुसार ही चलते हैं. इनके जीवन-यापन का मुख्य स्त्रोत पशु-पालन है. पूरे जंगल में लोगों जाति सर्वाधिक भाग्यशाली मानी जाती है.
४. मोरी - मोरी मछुआरों की बस्ती समुद्र तट पर बसी हुई है. ये समुद्र से मछलीयाँ पकड़ते हैं. वेताल के मित्र द्वीप पर पलने वाले शेरों और बाघों के लिये मछलियां पहुंचाने की जिम्मेदारी इनकी ही है.
५. ऊँगान - फ़ुसफ़ुसाते कुंज (Whispering Grove) के पास के जंगल में निवास करने वाले ये लोग उंचे दर्जे के कलाकार हैं. ऊँगान लोग लकड़ी से कमाल की कलाकृतियाँ गढ़ने में माहिर हैं. खेलों में भी ये लोग आगे रहते हैं. जंगल ओलम्पिक का चैम्पियन अक्सर इसी कबीले से होता है.

वहीं कुछ हिंसक और लड़ाकू जातियाँ भी हैं जो गाहे-बगाहे अन्य जातियों के लिये परेशानी का सबब बनती रही हैं. ये हैं:

१. तिरांगी - सबसे खतरनाक जातियों में पहला नाम आता है तिरांगी का. पहाड़ी ढलानों पर रहने वाले ये लोग वेताल शांति में विश्वास नहीं करते थे. खून-ख़राबा और हिंसा ही इनकी पहचान होती थी. सिरों के शिकारी के तौर पर कुख्यात तिरांगी नरभक्षी भी थे लेकिन वेताल ने ये सब बंद कराया. (इनसे मिलेंगे अंक १८८ 'तिरांगी के नरभक्षक' में)

२. मसाऊ - घने जंगल के बीचों-बीच निवास करने वाले मसाऊ लोग बेहद खतरनाक और कुटिल हैं. ये अक्सर अन्य जातियों को मूर्ख बनाकर उनसे सामान आदि लूटते रहते हैं. बिना किसी हिचकिचाहट के किसी की भी जान ले लेना इनके लिये बेहद आसान काम है. बाकी जंगलवाले इनसे घबराते हैं और दूरी बनाये रखते हैं. (इनसे मिलेंगे अंक ००७ 'नरभक्षी वृक्ष' में)

इनके अलावा और भी कुछ जातियाँ हैं जिनका जिक्र आता रहता है. इनसे मुलाकात होती रहेगी. लेकिन आज बस इतना ही.

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Tuesday, September 30, 2008

इंद्रजाल कॉमिक्स पात्र परिचय - वेताल (परम्परा का प्रारम्भ)

३ अगस्त, सन १४९२. स्पेन के एक छोटे से बंदरगाह पलोस् डे ला फ्रोंतेरा से क्रिस्टोफर कोलंबस का जहाजी बेडा नयी दुनिया (अमेरिका) की खोज में रवाना हुआ. तीन पोतों के इस बेडे़ में सबसे बड़ा जहाज था सांता मरिया. इस फ्लेगशिप पर मौजूद ४० नाविकों के दल में क्रिस्टोफर वॉकर नामक एक नौजवान केबिन बॉय भी शामिल था. (पूर्व में नाम बताया गया था क्रिस्टोफर स्टेनडिश). अपनी मेहनत और लगन से जल्द ही क्रिस्टोफर सभी कामों में दक्ष होता चला गया और निरंतर तरक्की करता गया.

१७ फरवरी, सन १५३६. एक व्यापारिक जहाज अपनी यात्रा के दौरान बंगाला की खाड़ी के पास से होकर गुजर रहा था. इस जहाज का कप्तान था क्रिस्टोफर वॉकर नामक वही नौजवान जो कभी कोलंबस के बेडे पर अपने जौहर दिखा चुका था और अब एक अनुभवी कप्तान के रूप में रिटायरमेंट से पहले अपनी अन्तिम यात्रा पर था. साथ में उसका बीस वर्षीय बेटा भी था. केबिन बॉय की जिम्मेदारी निभाने वाले इस कप्तान के इस बेटे का नाम भी क्रिस्टोफर वाकर (जूनियर) ही था.

खाडी के समीप समुद्री लुटेरों के एक गिरोह ने जहाज पर हमला कर दिया. नाविक बहादुरी से लड़े पर उनके लिए इस खतरनाक जलदस्यु गिरोह से निपट पाना असंभव था. अंत में एक विस्फोट में दोनों जहाज नष्ट हो गए. सर पर लगी किसी चोट की वजह से स्मृति लोप होने से पहले क्रिस्टोफर वाकर (जूनियर) ने जो अन्तिम दृश्य देखा, वह अपने पिता का लुटेरों के सरदार के हाथों मारा जाना था.

समुद्री लहरों के थपेड़ों ने क्रिस्टोफर को किनारे पर ला पटका. अफ्रीका के जंगलों में (दुनिया के कुछ अन्य हिस्सों में भी) पिग्मी लोगों की कुछ प्रजातियाँ पायी जाती हैं. ये लोग कद में काफी बौने होते हैं. इनमें से एक बांडार नामक जाति बंगाला की खाडी के पास घने जंगल में रहती थी. इन बौने बांदारों को वसाका नामक ऊंचे कद के लोगों ने गुलाम बनाया हुआ था और वे उनके साथ बड़ी बदसलूकी किया करते थे. इस अत्याचार की मार सहते बांदारों के मन में आशा की एकमात्र किरण थी कि उनकी धार्मिक पुस्तक में एक ऐसे मसीहा का जिक्र था जो समुद्र के रास्ते उन तक पहुच कर उन्हें गुलामी की जंजीरों से मुक्ति दिलाएगा. ऊंचे कद के नौजवान क्रिस्टोफर वाकर को समुद्र किनारे पड़ा देखकर वे उत्साह से भर गए और उसे वही मसीहा मान कर उसकी सेवा में जुट गए.



बौने बांदारों की अच्छी देखभाल से क्रिस्टोफर जल्दी ही पूर्ण स्वस्थ हो गया. एक दिन समुद्र के किनारे उसे एक जलदस्यु की लाश पडी दिखी जो उसके पिता के कपड़े पहने हुए था. यही उसके पिता का हत्यारा था. इस समुद्री डकैत की खोपड़ी को हाथ में लेकर क्रिस्टोफर वाकर ने शपथ ली कि वह अपनी पूरी जिन्दगी भय और अन्याय, अत्याचार और दमन के खिलाफ लगायेगा. उसकी आने वाली पीढियां भी इस परम्परा को जारी रखेंगी.

वाकर ने वसाका लोगों से बांदारों को मुक्त कराने का प्रयास किया. पहले प्रयास में सफलता नहीं मिली, पर बांदारों से उसे एक अत्यन्त विषैले जंगली फल की जानकारी मिली. उसने सभी बौनों को एकत्रित किया और उनके तीरों को इस विष में डुबोकर प्राणघातक बना दिया. इन जहर बुझे तीरों के रूप में नए हथियारों को पाकर बांदार बौनों ने वसाका आतताइयों को खदेड़ दिया.

घने जंगल के बीचों-बीच वाकर ने एक और भी ज्यादा बीहड़ प्रदेश की खोज की. इस दुर्गम जगह पर आने से बाकी जंगल वाले तक डरते थे. यहाँ एक प्रकृति निर्मित विशाल खोपड़ीनुमा गुफा थी जिसे वाकर ने दुरुस्त करके अपने रहने लायक बना लिया.

तो इस तरह प्रारम्भ हुआ अन्याय के खिलाफ पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलने वाला एक सतत संघर्ष. हमारा आज का वेताल इस परम्परा में २१वीं पीढ़ी का है.

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