Monday, July 5, 2010

गार्थ के साथ जुड़ी हैं बचपन की यादें (इंद्रजाल कॉमिक्स से गार्थ की एक रोचक कहानी)

गार्थ से मेरा परिचय बहुत बचपन में ही हो गया था. तब, जबकि वेताल जैसे सर्व-प्रिय नायक से भी जान-पहचान नहीं हुआ करती थी. बात तब की है जब मेरी अवस्था कोई तीन-चार बरस की रही होगी और कॉमिक्स पढ़ने और समझने लायक समझ विकसित नहीं हुई थी. तब ’हिन्दुस्तान दैनिक’ समाचार-पत्र में प्रतिदिन तीन पैनल की गार्थ की कॉमिक पट्टिका छपा करती थी और उन चित्रों के द्वारा मेरे बाल मन पर इस हट्टे-कट्टे, कद्दावर, बलिष्ठ जवान की ऐसी प्रभावशाली छवि अंकित हुई जो अब तक अपनी छाप बनाए हुए है.

Garth With Prof. Lumiere
गार्थ कई मायनों में अनूठा नायक हुआ करता था. उसके पास कोई अतीन्द्रिय शक्तियां नहीं होती थीं, कोई अद्भुत गैजेट्स नहीं, किसी अपराध-निरोधी संगठन का वह सदस्य नहीं था. केवल अपने मांसपेशियों के बल पर और अपराधियों से टकराने की दृढ़ इच्छाशक्ति के सहारे वह दुनिया भर में कहीं भी, किसी भी प्रकार के दुष्कर्मियों से अकेले ही भिड़ने को तैयार रहा करता था. उसके सहायकों की सूची भी बड़ी संक्षिप्त सी थी. केवल एक बुजुर्ग प्रोफ़ेसर लुमियर और देवी आस्ट्रा.
Garth With Goddess Astra

अपने साहसिक कारनामों को अंजाम देने के लिये गार्थ सुदूर तक की यात्राएँ किया करता था, जो केवल पृथ्वी तक ही सीमित न होकर कभी-कभी अंतरिक्ष की अतल गहराइयों तक का विस्तार नापा करती थीं. ये वो दौर था जब मानव अपनी धरा के गुरुत्व बल से बाहर निकलकर अंतरिक्ष की थाह लेने की रोमांचक कोशिशों में जी-जान से संलग्न था और इसका प्रभाव उस समय की कहानियों पर भी स्पष्ट नजर आता था.
Garth is a time-traveler

इसके अलावा एक अन्य बात में गार्थ की कहानियाँ अन्य कथानायकों से अलग हुआ करती थीं कि ये था कि गार्थ एक काल-यात्री था. वह भूत और भविष्यत दोनों कालों में भ्रमण करता था. जैसे कि एक कहानी में वह ईसा पूर्व ४०० वर्ष के प्राचीन ओलम्पिक में भाग लेने वाला एक किसान था तो कभी भविष्य में पहुंचकर धरती पर आक्रमण करने वाली मशीनों के समुदाय से लोहा लेता एक योद्धा बन जाता था (कहानी - कम्प्यूटरों का राजा, ७० के दशक में प्रकाशित, इन्द्रजाल में बिना छपी). ये मैट्रिक्स तिकड़ी से काफ़ी पहले की बात है.

लेकिन एक बात समाचार पत्र में छपने वाली स्ट्रिप को कभी-कभी मेरे लिये ऐम्बैरॅसिंग बना देती थी वह ये थी कि इसमें न्यूडिटी का प्रयोग काफ़ी खुले मन से और बहुतायत में किया जाता था. कई महिला चरित्र बिल्कुल वस्त्रहीन चित्रित किये जाते थे (कभी-कभार स्वयं गार्थ भी). उदाहरण के तौर पर गार्थ की सहयोगी और देवी आस्ट्रा को मैंने शायद ही कभी किसी परिधान में देखा हो. अब सोच कर आश्चर्य होता है कि अब से इतना पीछे, सत्तर के दशक में, एक भारतीय समाचार पत्र में प्रकाशित होने वाले इन चित्रों में इस कदर खुलापन (इसे प्रकाशक की धृष्टता कहिये या साहस) बगैर किसी विरोध के कैसे जारी रह पाया.
Garth stories contained nudity to some extent

जब १९८१-८२ में इन्द्रजाल कॉमिक्स ने अपने नायकों की टोली में कुछ नये सदस्यों के शामिल किये जाने की घोषणा की (जिनमें गार्थ एक था) तो, मुझे याद है, किस कदर खुशी हुई थी. कुछ ऐसी कॉमिक्स तब रंगीन चित्रों सहित पढ़ने को मिलीं जो पहले केवल श्वेत-श्याम कॉमिक स्ट्रिप के रूप में ही पढ़ी थीं. लेकिन इन कहानियों के प्रकाशन हेतु एक काम जो टाइम्स ऑफ़ इन्डिया को करना पड़ा, और जो जरूरी भी था, वो ये कि सभी न्यूड चित्रों को ब्रश चलाकर वस्त्रावरण से ढंकना पड़ा.

गार्थ पर हम चर्चा जारी रखेंगे. आज उसकी एक कहानी पढ़ी जाए. ये कहानी इन्द्रजाल कॉमिक्स में वर्ष १९८७ में प्रकाशित हुई थी और अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादियों के एक संगठन से गार्थ की मुठभेड़ के बारे में है.

कहानी:

दक्षिण अमेरिका में एक समुद्र-तटीय रेस्तरां में छुट्टियों का आनन्द लेकर बाहर निकल रहे गार्थ की नजरों के सामने ही एक धमाका होता है और रेस्तरां के परखच्चे उड़ जाते हैं. ये धमाका करके एक ट्रक में फ़रार होते हमलावर का पीछा कर गार्थ उसे पकड़ लेता है लेकिन वह सायनाइड पीकर आत्महत्या कर लेता है. इस हमलावर से बरामद कागजों से जापान की एक फ़र्म का पता मिलता है. इस सूत्र के सहारे गार्थ जापान जा पहुंचता है जहां उसका सामना एक गिरोह से होता है. गार्थ को मारने की कोशिश नाकाम होती है और वह गिरोह के कार्य-विवरण का लेखा-जोखा हासिल कर उसे पुलिस को मुहैया करवा देता है.

यहां से उसे जानकारी मिलती है कि दक्षिण अमेरिका के रेस्तरां में बम रखवाने का काम हिन्द महासागर स्थित एक देश ’कम्बोइना’ की किसी ’हार्पर’ नामक कम्पनी ने किया था. गार्थ कम्बोइना पहुंचता है जहां उसकी मुलाकात सैम लॉयड नामक इंजीनियर से होती है. दोनों में मित्रता हो जाती है. सैम और उसकी स्थानीय पत्नी ’हार्पर’ कम्पनी में ही काम करते हैं और वे यह मानने को तैयार नहीं हैं कि उनकी कम्पनी का किसी तरह के आतंकवाद से कोई वास्ता हो सकता है.

गार्थ एक युक्ति से ’हार्पर’ के मालिक ’रागोटी’ की नजरों तक पहुंचता है और अपने बलशाली व्यक्तित्व से उसे तुरन्त प्रभावित कर उसकी कम्पनी में शामिल हो जाता है. यहां उसे जानकारी मिलती है कि ’हार्पर’ नामक कम्पनी दरअसल आतंकवादियों के इस बड़े अंतर्राष्ट्रीय गिरोह का एक छद्म आवरण मात्र है. इनका वास्तविक काम तो पैसा लेकर दुनिया में कहीं भी आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देना है.

गार्थ को उसका पहला असाइनमेन्ट दिया जाता है जिसके तहत उसे वेस्टइंडीज में एक सेमिनार के दौरान बम विस्फ़ोट करना है. सही समय पर गार्थ इस कुटिल योजना में गड़बड़ी पैदा कर इस प्रकार से घटनाक्रम को मोड़ता है कि उसके साथी दो आतंकी मारे जाते हैं और वह कम्बोइना लौट आता है. रागोटी को उस पर शक होता है.

गार्थ को अगला काम सौंपा जाता है. लेकिन इससे पहले कि वह अपने अभियान पर रवाना हो उसे खबर मिलती है कि उसका दोस्त सैम दुर्घटनाग्रस्त हो गया है. सैम की पत्नी जो हार्पर कम्पनी में काम करती है उसे बताती है कि असल में सैम पर हमला स्वयं कम्पनी के ही एक शीर्ष कर्मचारी स्मिथ ने करवाया है क्योंकि उसकी नजर इस महिला पर है. वह गार्थ को यह भी बताती है कि अपने नये मिशन से वे लोग जिन्दा नहीं लौट पायेंगे क्योंकि रागोटी ने उनके खाने में जहर मिला दिया है. इस बात की जानकारी गार्थ मिशन के अपने साथियों को दे देता है और वे भड़क उठते हैं. कम्पनी के कारिन्दों में विद्रोह फ़ैल जाता है और इस गड़बड़ी का लाभ उठाकर गार्थ और साथी शस्त्रागार में बम प्लांट कर देते हैं. सारी इमारत धू-धू कर जल उठती है और रागोटी के खूनी दल का सफ़ाया हो जाता है. स्वयं रागोटी भी मारा जाता है.

गार्थ सैम की विधवा से मिलता है जो स्मिथ के अंत से सन्तुष्ट है. आखिर उसे सैम की मौत का बदला मिला. गार्थ लंदन लौट आता है.

कुछ और:

इन्द्रजाल के अधिकांश अन्य नायकों से अलग गार्थ एक ब्रिटिश कॉमिक हीरो है, जबकि बाकी सभी (कुछ भारतीय पात्रों को छोड़कर) अमरीकन होते थे. ओरिजिन का ये फ़र्क कहानियों में नजर भी आता है.

ये कहानी काफ़ी तेज गति से चलती है जो गार्थ की अधिकांश कहानियों के साथ देखने को मिलता है. यही गति पाठक को बांधे रखती है. एक्शन-एड्वेंचर के शौकीनों के लिये ये एक बढ़िया कॉमिक्स है.


(इन्द्रजाल कॉमिक्स वर्ष२४संख्या३४, वर्ष १९८७)

स्कैन्स को चमकाने का काम प्रभात भाई ने किया है. काफ़ी मेहनत का काम है जिसके लिये उन्हें धन्यवाद. अंतिम दो पृष्ठ कॉमिक वर्ल्ड की भेंट हैं. उनका भी आभार.

जैसा मैंने पहले कहा, गार्थ पर बात अभी जारी रहेगी. अगली कड़ी में हम उसकी शुरुआत और पृष्ठभूमि के बारे में बात करेंगे. साथ ही गार्थ की कुछ रोचक कहानियों की भी चर्चा करेंगे. एक और रोचक गार्थ कॉमिक तो होगी ही. तो फ़िर जल्द ही हाजिर होता हूं.

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12 टिप्पणियां:

उन्मुक्त said...

बचपन की याद आ गयी।

VISHAL said...

"यादें बचपन की" शीर्षक के अन्तरगत 'गार्थ' जैसे लोह पुरुष की सिलसिलेवार कथाएँ शुरू करने का और लीक से हट कर कुछ करने का निर्णय सिर्फ 'वेताल शिखर' की चोटी पर ही हो सकता है , यह जबरदस्त कथाएँ बेपनाह और प्रचुर शक्ति के स्वामी 'गार्थ' को समर्पित एक शर्दांजलि है ,
भेंसे जैसी गर्दन , सिंह सा रोबदार चेहरा, पाषाण सा ' V ' रूपी सीना , महाबलशाली बलिष्ठ कंधे , अलग अलग मांसपेशियां दर्शाती और एक एक नस दिखाती अजगर की पकड़ से भी मजबूत भुजाएं , वट वृक्ष सी जांघे और हाथियों सी ताक़त से लैस कौन सा इंद्रजाल नायक है - बिना किसी शक- भीमकाये "गार्थ"
आपके लेखन की मुख्य विशेषताएं हैं - कहानी के अन्छुहे पहलुओं को छूना , शुद्ध हिंदी पर मजबूत पकड़, पोस्ट की साज-सज्जा और भव्यता पर धयान और सबसे बड़ी बात है शब्दों के साथ साथ चित्रों के माध्यम से अपनी बात को पाठकों के सन्मुख रखना , एक अच्छे लेखक के पास होनी जरुरी है "एक आग उगलने वाली कलम" और ऐसे कई तीर आपकी तरकश में मौजूद हैं , बस इनको थोड़े थोड़े अंतराल के बाद चलाते रहा कीजिये
आपकी बात बिलकुल ठीक है की गार्थ की कहानियों में 'नग्नता' के छिट- पुट दृश्य जरुर होते थे , यह तो गार्थ के रचयता की अपनी सोच रही होगी की इस नायक को 'सुन्दरियों' के बीच कैसे प्रस्तुत करना है , हाँ इस बात पर ताज्जुब है की भारतीय अख़बार में ऐसी स्ट्रिप धड़ले से छपती रही बिना किसी हो हल्ले के , लेकिन इंद्रजाल ने इन ब्रिटिश नग्न हसीनायों को भारतीय पाठकों के सन्मुख लाने से पहले ही 'लज्जा का आवरण' औड़ा दिया था अगर ऐसा न होता तो "गार्थ" ऐसे पहले नायक होते जिनको शायद " A " लगा के प्रकाशित करना पड़ता !! इन कमियों को नजरंदाज करते हुए मैं अंत में यह कहना चाहता हूँ की गार्थ ने "तूफानी चौकड़ी" के होते हुए भी अपनी एक अलग पहचान बना के रखी और इसी वजय से गार्थ हम सब के दिलों पर अपनी अमिट छाप छोड़ चुके हैं और आज भी हम इस बलवान नायक को याद करते हैं !!
आपकी अगली गार्थ कथा का बेसब्री से इंतेजार रहेगा
प्रेत

वेताल शिखर said...

@उन्मुक्त जी: आपका स्वागत है. अच्छा लगा आपको यहां देखकर.

वेताल शिखर said...

@प्रेत: क्या गज़ब लिखते हो भाई! शब्दों का ऐसा विशाल भन्डार और क्या कमाल का प्रवाह है आपके पास.

गार्थ के प्रति अपने आकर्षण को तो मैंने काफ़ी हद तक पोस्ट में व्यक्त कर ही दिया है. पर आपने उसके व्यक्तित्व के लिये जो विशेषण प्रयोग किये हैं, उनसे इस पोस्ट की उपयोगिता में वृद्धि ही हुई है. इसके लिये आप धन्यवाद के पात्र हैं.

अगली कड़ी बहुत जल्द ही आ रही है. आशा है कि आपकी उम्मीदॊं पर खरी उतरेगी.

वेताल शिखर said...

something is wrong with comment system today. both my previous comments got deleted.

वेताल शिखर said...

आज कुछ गड़बड़ है टिप्पणियों के साथ. बार-बार कोशिश करने पर भी छप नहीं रहीं.

TPH said...

All invisible comments are now back. Jai Google Dev.

PBC said...

बहुत ही दिलचस्प लेख है|

हाँ, कुछ प्रसंग या चित्रांकन हमारी भारतीय पीढ़ी को हज़म नहीं हो पाई, शायद अभी और आने वाली कुछ पीढ़ियों को भी न हो|

हम सब इंद्रजाल कॉमिक्स के प्रशंसक हैं, वेताल जैसे लोकप्रिय नायकों के बारे बहुत सारे ब्लॉग/ साइट से अच्छी सामग्री मिल जाती है, लेकिन खाश तौर से इंद्रजाल के प्रथम चार नायकों के सिवाय बाकि के बारे लगभग कोई भी लेख/स्मृति ना मिलना हमेशा मायुस करती थी| बहुत खुशी की बात है, यह कमी भी दूर हो रही है|

मुझे इस ब्लॉग में मुझे शुरू से यह अच्छा लगता है कि ना सिर्फ कॉमिक्स आते हैं, बल्कि साथ ही साथ अव्ल दर्जे की भाषा में पोस्ट, जिनकी भूमिका साथ में प्रकाशित कॉमिक्स के आस-पास ही घुमती रहती है|

धन्यवाद|

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

बेताल की कहानियां बचपन में बहुत पढी।
फ़ैंट्म हमारा हीरो था। उस समय हमें नहीं मालुम था कि कामिक्स भी होती है।
4थी 5वी में पढते थे। रोज अखबार में पढ कर स्कूल जाते थे। यदि स्कूल सुबह लगता था तो रिसेस में पास में ही एक डॉक्टर था उसके यहां पढते थे।
उसके मुक्के और अंगुठी की छाप के तो क्या कहने?
हमने भी एक अंगुठी खरीदे चार आने की और उसे छुपाकर रखते थे। उसमें हनुमान जी की फ़ोटो उकेरी हुयी थी।
जब किसी को मारना होता था तो उसी अंगुठी को पहन कर उसकी ठुड्डी पर बेताल टाईप घुंसा मारते थे।
लेकिन चिन्ह नहीं बनता था और घर में उलाहना आने पर पिटाई अलग होती थी।

हा हा हा

वेताल शिखर said...

@PBC: इंडिया तेजी से बदल रहा है, खुलापन आ रहा है. मगर न्य़ूड चित्रों को सहजता से स्वीकार कर पाने की मानसिकता बनने में अभी भी बहुत वक्त लगेगा. बहुत से लोग नग्नता और अश्लीलता में अंतर नहीं कर पाते.

गार्थ के बारे में काफ़ी समय से लिखना चाहता था. आखिरकार मौका मिला तो हसरत पूरी हुई. मुझे खुशी है कि आपके जैसे पाठकों को इन पोस्टों से निराश नहीं होना पड़ा.

वेताल शिखर said...

@ललित शर्मा जी: रिसेस में स्कूल छोड़कर वेताल को पढ़ने किसी परिचित के यहां चले जाते थे? वाह. ऐसे कितने ही किस्से जुड़े हैं वेताल के साथ हम लोगों के बचपन के. सचमुच क्या आनन्द था.

इन कथाओं ने व्यक्तित्व के निर्माण में बड़ी भूमिका निभाई है. विश्व प्रसिद्ध चरित्रों से दो-चार होने का अवसर पाने वाली हमारी पीढ़ी थी. अब तो चित्र-कथाओं के नाम पर एक बड़ा वैक्यूम है.

आपका कमेन्ट पढ़कर सचमुच बड़ा मजा आया. कृपया आते रहिये.

Vikky said...

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