Friday, January 4, 2013

वेताल की चर्चा आज के दैनिक भास्कर में

आज के दैनिक भास्कर के साथ वितरित बच्चों की पुस्तिका बाल भास्कर के मुख पृष्ठ पर नजर पड़ी तो सुखद आश्चर्य हुआ. कॉमिक्स किताबों से लगातार दूर होती जा रही जनरेशन के लिये कॉमिक्स पर आधारित अंक की कल्पना अच्छा काम है. जल्दी से पेज उलट पलट कर देखे तो और भी अचरज ये देख कर हुआ कि एक आर्टिकल में वेताल का भी जिक्र हुआ है. अब लम्बे समय से वेताल की कॉमिक्स का प्रकाशन देश में नहीं हो रहा है (कुछ एक अपवादों को छोड़ कर, और वो भी कोई स्टैन्डर्ड काम नहीं है)  और एक पूरी पीढ़ी उसके अस्तित्व से ही अनजान निकल गयी है.

लेकिन जैसे ही लेख पढ़ना शुरु किया, निराशा ने घेर लिया. स्पष्ट था कि लेखक महोदय (या महोदया) ऐसे विषय पर लिख रहे हैं जिसका उन्हें बेसिक ज्ञान भी नहीं है. दस-बारह लाइन के जिक्र में ही इतनी सारी तथ्यात्मक गलतियाँ. इससे तो अच्छा होता कि श्रीमान जी किसी और कैरेक्टर पर ही लिख लेते और हमारे प्यारे वेताल को बख्श देते. आह....

जरा आप भी जान लें कि क्या लिखा गया है:
"मैं हुं वेताल. दोस्तों का दोस्त और दुष्टों का दुश्मन. मेरे हाथ में है स्वास्तिक का निशान और दूसरे में खोपड़ी भी है. स्वास्तिक का निशान दोस्तों के लिये और खोपड़ी का दुश्मनों के लिये. रहता हुं खोपड़ीनुमा गुफ़ा में और साथ में रहते हैं चंद आदिवासी दोस्त, मेरा शेरा, जिसे लोग भेड़िया समझते हैं और मेरा घोड़ा तूफ़ान. जंगल के जानवर मेरे मित्र हैं. तभी तो मैं एक मित्र द्वीप बना पाया हूं जहाँ डॉल्फ़िन हैं, शेर हैं, भालू और चीते भी हैं. मेरी गुफ़ा के पास फ़ुसफ़ुसाते कुंज हैं. मुझे चलता-फ़िरता प्रेत भी कहा जाता है. मुझे ली फ़ॉक ने बनाया था. वैसे मुझे फ़ैंटम कहते हैं."

अब कोई बताये जनाब को कि दोस्तों के लिये सुरक्षित शुभ चिह्न कोई स्वास्तिक का निशान नहीं है बल्कि विशेष तरीके से रखी हुई तलवारों के दो युग्म हैं. वेताल के विशिष्ट प्रतीक चिह्न (खोपड़ी का निशान और शुभ चिह्न) उसके हाथ में नहीं बल्कि उन ऐतिहासिक अँगूठियों पर उभरे हैं जो सदा उसकी उंगलियों में रहती हैं और पीढ़ी दर पीढ़ी पिता से बेटे को स्थानांतरित होती आई हैं. पर चलिये इतनी बारीकी को जाने देते हैं.

आगे वेताल के घर के बारे में जो लिखा गया है उससे ऐसा आभासित होता है कि दोस्त आदिवासी खोपड़ीनुमा गुफ़ा में उसके साथ ही रहते हैं, सच्चाई इससे परे है. बौने बांडार आसपास जरूर रहते हैं पर ठीक वेताल की गुफ़ा में नहीं. लेखक महोदय शेरा से भी ज्यादा परिचित नहीं लगते पर उसका जिक्र बड़े जोश से करते हैं. जनाब फ़रमाते हैं कि लोग उसे भेड़िया समझते हैं. नहीं हुजूरेआला! लोग उसे भेड़िया समझते नहीं है, वो एक उम्दा नस्ल का पहाड़ी भेड़िया ही है और लोग उसे कुत्ता समझने की भूल करते हैं.

और, जंगल के जानवर कभी वेताल के मित्र नहीं रहे मेरे दोस्त. आप टार्जन से वेताल को कन्फ़्यूज न करें. जहाँ तक मित्र द्वीप का प्रश्न है वेताल ने उसे ऐसे जानवरों से आबाद किया है जो अलग अलग समय पर परिस्थिति विशेष में वहां लाए गये हैं. चाहे फ़्ल्फ़ी शेर की बात हो या गंजू गोरिल्ला (ओल्ड बाल्डी) की. स्टेगी डॉयनोसॉर हो, हज्ज नामक अजीब प्राणी या फ़िर स्ट्रिप्स (हिंदी में धारीदार) नामक बाघ. इन सबकी एक अलग कहानी है अपने पुराने घर से मित्र द्वीप तक पहुंचने की. इन्हें जंगल से समेट कर वहां एकत्र नहीं किया गया है.

मित्र द्वीप में भालू और चीते भी हैं, ये बात मुझे तो नहीं पता थी. हाँ, हिरण, जिराफ़, जेब्रा आदि तो देखे हैं. पता नहीं किस वेताल और किस मित्र द्वीप का किस्सा बयान कर रहे हैं मित्रवर.

पता नहीं लोग जिस विषय में जानते नहीं उसके बारे में इतने अधिकार पूर्वक लिखने का साहस कैसे जुटा लेते हैं? बच्चों को गलत जानकारियाँ तो मत दीजिये.

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Tuesday, March 1, 2011

भारतीय कॉमिक्स का सफरः अतीत से अब तक

  • अमर चित्रकथा कॉमिक्स अब एंड्रायड एप्लीकेशंस के साथ मोबाइल पर इंटरनेलशन मार्केट में उपलब्ध है. एसीके मीडिया इन एनीमेशन फिल्में बनाने के लिए कई बड़ी कंपनियों से करार कर रहा है.

  • हर साल अमर चित्रकथा के जरिए इंट्रोड्यूस कैरेक्टर्स पर आधारित मोबाइल गेम्स रिलीज किए जा रहे हैं. इनमें से अर्जुन के कैरेक्टर पर आधारित मोबाइल गेम इस वक्त वियतनाम में नंबर वन चल रहा है.

  • अस्सी और नब्बे के दशक में पॉपुलर राज कॉमिक्स को हम अब ऑनलाइन परचेज कर सकते हैं. इसके कैरेक्टर डोगा पर अनुराग कश्यप जैसे सीरियस फिल्ममेकर बिग बजट मूवी प्लान कर रहे हैं.

  • सन 2010. आबिद सूरती (जी हां, वही ढब्बू जी वाले) के फेमस कैरेक्टर बहादुर का नया अवतार सामने आता है. इस बार आप उसे इंटरनेट पर पढ़ और डाउनलोड कर सकते हैं, और उसका फेसबुक फैन पेज भी है, जिसके अब तक हजार से ज्यादा फैन्स तैयार हो चुके हैं.

  • न्यू एज स्प्रिचुअलिटी गुरु दीपक चोपड़ा और इंटरनेशनल फेम के डायरेक्टर शेखर कपूर ने इंडियन माइथोलॉजिकल स्टोरीज पर इंटरनेशनल मार्केट के लिए करीब चार साल पहले वर्जिन ग्रुप के रिचर्ड ब्रान्सन के साथ करार किया था. इस वक्त लिक्विड कॉमिक्स से देवी, साधु, गणेश, बुद्धा, स्नेक वूमेन, मुंबई मैक्गफ जैसे कैरेक्टर्स ने पश्चिम में धूम मचा रखी है. कुछ कहानियों पर जॉन वू (फेस ऑफ वाले) जैसे डायरेक्टर फिल्म भी प्लान कर रहे हैं.

यह है इंडियन कॉमिक्स की मौजूदा तस्वीर. आइए जरा अतीत की तरफ चलते हैं...

फ्लैशबैक


यह बात है 1967 की, टेलीविजन ने भारत में कदम रखे ही होंगे, अनंत पई दिल्ली की एक शाम दूरदर्शन से टेलीकास्ट हो रहा क्विज शो देख रहे थे. शायद टॉपिक था, माइथोलॉजी. वे यह देखकर हैरान हो गए जब एक बच्चा भगवान राम की माता का नाम न बता सका. वहीं ग्रीक माइथोलॉजी से जुड़े कई सवालों का जवाब वे फटाफट देते गए. उसी साल अनंत ने टाइम्स आफ इंडिया की जॉब छोड़ दी और भारतीय पौराणिक कथाओं पर सरल भाषा और सुंदर चित्रों के साथ कॉमिक्स का प्लान किया. कई पब्लिकेशंस ने उनका आइडिया रिजेक्ट कर दिया. अंत में बात बनी इंडिया बुक हाउस के इनिशियेटिव से.

इसके बाद वही हुआ जो हर सफल इंसान की कहानी के साथ होता है. शुरुआत में स्ट्रगल के बाद अमर चित्रकथा बीस भारतीय भाषाओं में इंडिया की सबसे ज्यादा बिकने वाली कॉमिक्स बन गई. यह वो वक्त था जब इंडियन सोसाइटी का अरबनाइजेशन हो रहा था. ज्वाइंट फैमिली धीरे-धीरे न्यूट्रल फैमिली में शिफ्ट हो रही थी. दादा-नानी से सुनी-सुनाई जाने वाली कहानियों का चलन खत्म हो रहा था. घर में उस खाली स्पेस को धीरे-धीरे अमर चित्रकथा भरने लगा. यह एक ऐसी कॉमिक्स बन गया जिसे देखकर पैरेंट्स नाराज नहीं होते थे, स्कूलों की लाइब्रेरी में और बच्चों के स्कूल बैग में भी ये नजर आने लगे.

साइड स्टोरी


जिस वक्त अनंत पई ने टाइम्स आफ इंडिया की जॉब छोड़ी, वह ग्रुप इंद्रजाल कॉमिक्स के नाम से बच्चों के लिए एक नया पब्लीकेशन लांच कर रहा था. ली फॉक के कैरेक्टर्स फैंटम और मैन्ड्रेक लाखों बच्चों के लिए बन गए वेताल और जादूगर मैंन्ड्रेक. ‘द घोस्ट हू वाक्स’ बन गया ‘चलता फिरता प्रेत’. शानदार मुहावरेदार अनुवाद ने इन कैरेक्टर्स को घर-घर में पॉपुलर कर दिया.

इंद्रजाल कॉमिक्स ने बहादुर नाम से एक भारतीय कैरेक्टर भी इंट्रोड्यूस किया. बहादुर के क्रिएटर थे हिन्दी-गुजराती के मशहूर लेखक और पॉपुलर स्ट्रिप ढब्बू जी के रचयिता आबिद सूरती. बाकायदा रिसर्च के बाद चंबल के बैकड्राप पर क्रिएट की गई स्टोरी और गोविंद ब्राहम्णिया के सिनेमा के स्टाइल में फ्रेम की गई तस्वीरों ने बहादुर को भारत की क्लासिक कामिक्स बना दिया.

यू टर्न

सन 1980 तक इसकी पॉपुलैरिटी अपने चरम पर थी. मगर आने वाले कुछ सालों में यह पब्लीकेशन बंद हो गया. कामिक्स घरों से लगभग गायब होने लगी. कागज की कीमतें और प्रोडक्शन कास्ट बढ़ने के कारण इंडिया बुक हाउस को भी कीमत बढ़ानी पड़ी नतीजा वे मिडल क्लास की पहुंच से बाहर हो गए. पल्प फिक्शन और पॉपुलर बुक्स छापने वाले कुछ पब्लिशर्स ने भारतीय कैरेक्ट्स इंट्रोड्यूस करने चाहे, मगर घटिया तस्वीरों, इमैजिनेशन का अभाव, बच्चों और टीनएजर्स की साइकोलॉजी न पकड़ पाना- कुछ ऐसे फैक्टर रहे, जिनके चलते वे बुरी तरह फ्लाप हो गए.

एक के बाद एक कॉमिक्स पब्लीकेशन खुले और साल-छह महीनों में बंद हो गए. कुछ तो पहले सेट से आगे बढ़ ही नहीं पाए. कुछ बड़े पब्लिशिंग हाउस ने इंद्रजाल कॉमिक्स की सक्सेस स्टोरी दुहराने की कोशिश की. अब तक सिर्फ एलीट क्लास को उपलब्ध एस्ट्रिक्स हिन्दी में आया, चंदामामा ने वाल्ड डिज्नी के कैरेक्टर्स इंट्रोड्यूस किए- मिकी माउस, डोनाल्ड और जोरो. उन्होंने दूसरी कोशिश की सुपरमैन और बैटमैन को लाने की. अनुवाद की दिक्कतों के चलते बच्चे उनसे दूर रहे.

राइजिंग


पॉकेट बुक्स पब्लिश करने वाले राज कॉमिक्स ने सुपर कमांडो ध्रुव, नागराज, परमाणु और डोगा जैसे कैरेक्टर इंट्रोड्यूस किए. देखते-देखते ये बच्चों में पॉपुलर हो गए. दूरदर्शन के विस्तार से स्पाइडरमैन, स्टार ट्रैक और स्ट्रीट हॉक पापुलर हो चुके थे. जमीन तैयार थी. एक बार फिर कॉमिक्स ने बच्चों की दुनिया रंगीन कर दी.

पहले से पॉपुलर चाचा चौधरी, राजन इकबाल, बांकेलाल, भोकाल, फाइटर टोड्स, भेड़िया जैसे अनगिनत कैरेक्टर सामने आए. इन पर टीवी सीरियल प्लान होने लगे. कार्टून नेटवर्क और पोगो जैसे चैनलों ने बच्चों के पढ़ने का स्पेस तो छीना मगर इंडियन कॉमिक्स इन छोटे-मोटे झटकों को झेलने के लिए मजबूती से खड़ा था.

क्लाइमेक्स

बंगलूरु में इंजीनियर और मैनेजमेंट के बैकग्राउंड वाले एक युवा श्रेयस श्रीनिवास ने अपने कुछ साथियों की मदद से लेवेल टेन कामिक्स स्टैबलिश किया. वे बतौर यंग इंटरप्रन्योर ब्लूमबर्ग के शो द पिच के विनर रहे और उन्हें पांच करोड़ की इन्वेस्टमेंट अपारचुनिटी मिली है. फेसबकु पर लेवेल टेन कामिक्स के दस हजार से ज्यादा फैन्स हैं.

और दोस्तों यह कहानी अभी जारी है...

नोटः यह आलेख आई-नेक्स्ट के भारतीय कॉमिक्स पर केंद्रित विशेष अंक के लिए लिखा गया था, जिसे अनंत पै के निधन पर उनको श्रृद्धांजलि स्वरूप तैयार किया गया था.

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Saturday, July 10, 2010

गार्थ की अपनी कहानी (साथ में इंद्रजाल कॉमिक्स से गार्थ की एक लाजवाब कथा भी)

The Daily Mirror Book of Garth - 1975
आप में से कई पाठकों ने इंद्रजाल कॉमिक्स में गार्थ की कथाओं का आनन्द लिया ही होगा. अस्सी के दशक के प्रारम्भ में इंद्रजाल ने जिन नए नायकों को प्रस्तुत किया, गार्थ उनमें से एक था, पर हिन्दुस्तानी पाठकों के लिए वह इतना अनजाना भी नहीं था. हिंदी और अंग्रेजी हिन्दुस्तान दैनिक समाचार पत्रों में वह काफी पहले से छपता आ रहा था. आज हम गार्थ के चरित्र के कुछ कम जाने पहचाने पहलुओं की चर्चा करेंगे.

गार्थ की कहानियों की शुरुआत सन १९४३ में हुई जब इंग्लैंड के प्रसिद्ध समाचार-पत्र डेली मिरर (Daily Mirror) ने एक नये चरित्र को कॉमिक स्ट्रिप के रूप में प्रस्तुत करने का निर्णय लिया. स्टीफ़न डोलिंग (Stephen Dowling) को, जो कि उस समय के प्रसिद्ध और व्यस्त कथा लेखक और कलाकार थे, इस नये चरित्र को अमली जामा पहनाने और संवारने हेतु चुना गया. उन्होंने अपने रचे इस चरित्र को जब अंतिम स्पर्श दिया, तब गार्थ उस रूप में हमारे सामने आया, जैसा कि अब हम उसे पहचानते हैं.

गार्थ की कहानी

पहले दिन की गार्थ स्ट्रिप का दृश्य
यूरोप में स्कॉटलैण्ड के उत्तरी तट से और भी उत्तर की ओर तकरीबन १०० छोटे द्वीपों का एक समूह है. आर्कटिक वृत्त में स्थित इन टापुओं को शेटलैण्ड (Shetlands) कहा जाता है. काफ़ी समय हुआ, एक छोटी सी नौका पर बहता हुआ एक बहुत छोटा बच्चा न जाने कहां से इन्हीं में से एक टापू पर किनारे आ लगा. उस टापू पर बसने वाले एक बुजुर्ग दम्पत्ति की नजर उस पर पड़ी और उन्होंने प्रेम के वशीभूत होकर उस निराश्रित बालक को अपना लिया. इस प्रकार किस्मत के सहारे उस अनाथ बालक के पालन-पोषण का प्रबंध हो जाता है. बड़ा होने पर यही बच्चा गार्थ बनता है और असीम बलशाली युवा के रूप में पहचान बनाता है.

गाला को बेहोश गार्थ मिलता है. वह उसकी देखभाल करती है.
आगे चलकर वह समुद्री सेना में शामिल होता है और अपने पराक्रम से द्रुत प्रगति करता हुआ कैप्टेन की रैंक तक पहुंचता है. एक युद्ध के दौरान उसके शिप को टॉरपीडो से नुकसान होता है और डूबते जहाज से वह एक लकड़ी के लठ्ठे पर तैरता हुआ एक टापू पर किनारे जा लगता है. (कहानी में इस टापू को ’तिब्बत’ में कहीं स्थित बताया गया था. लेकिन यहां कहानीकार की गलती पकड़ में आती है क्योंकि तिब्बत चारों ओर से भूमि से घिरा हुआ प्रदेश है. उसकी सीमा कहीं भी समुद्र से नहीं लगती). किसी चोट की वजह से वह स्मृतिलोप का शिकार हो चुका है और अपने बारे में सबकुछ भूल चुका है. वहां के कबीले की एक लड़की ’गाला’ उसे देख लेती है और उसकी देखभाल करती है. गाला की स्नेहमयी सहायता गार्थ को जल्द ही चलने-फ़िरने में समर्थ बना देती है और वह अपनी शारीरिक शक्ति को पुनः प्राप्त कर लेता है. लेकिन अब भी गार्थ को अपने पूर्व जीवन की कोई भी स्मृति नहीं है.

आस्ट्रा गार्थ की प्रेमिका है.
बाद में उसके मित्र प्रोफ़ेसर लुमियर गार्थ का मनोविश्लेषण द्वारा इलाज करते हैं और एक विकिरण गन की मदद से उसकी विलोपित स्मृति को लौटाने में सफ़ल होते हैं. इस बीच गार्थ के सम्पर्क में ’आस्ट्रा’ नामक देवी भी आती है जो गार्थ के प्रेम में पड़ जाती है. आस्ट्रा गार्थ की तब-तब सहायता करती है, जब भी वह किसी बड़ी कठिनाई में पड़ता है. (आस्ट्रा सौंदर्य की देवी वीनस का ही एक अन्य नाम है, जिसका कि जिक्र ग्रीक मिथकों में आता है.)

सन १९७१ में प्रकाशित कहानी "जर्नी इन्टू फ़ीयर" (Journey into fear) में गार्थ की पृष्ठभूमि पर एक नया एंगल डाला गया. इस कहानी के अनुसार गार्थ के एक पूर्वज धरती से परे सैटर्निस (Saturnis) नामक ग्रह के वासी थे जो एक वैज्ञानिक सर्वेक्षण के सिलसिले में पृथ्वी पर आये थे. उन्हें यहां किसी कन्या से प्रेम हो जाता है और इस युग्म द्वारा जिस सन्तान को जन्म दिया जाता है वही आगे चलकर गार्थ की पीढ़ी का जनक होता है. शायद गार्थ के असीम शक्तिवान होने की छवि को एक ठोस आधार देने के लिये इस प्रकार की कल्पना की गयी होगी.

अपनी बहादुरी और साहस के जलवे दिखाता गार्थ एक परम बलवान योद्धा के तौर पर जाना जाता है. दुनिया में कहीं भी, किसी भी अन्याय और अत्याचार के विरोध में खड़े होने और दुष्टों से टक्कर लेने की प्रकृति के चलते कितनी ही बार उसे जानलेवा हमलों का सामना करना पड़ता है लेकिन हर बार वह मौत को धता बता कर निकल आता है. हालांकि इसमें कभी-कभी किस्मत भी अपना खेल खेलती है और उसके बचाव में मददगार साबित होती है. कहते भी हैं ना "फ़ॉर्चून फ़ेवर्स द ब्रेव".

हालांकि मुश्किल मसलों पर सलाह हेतु वह प्रोफ़ेसर लुमियर का रुख करता है, पर उसकी कथाओं में स्वयं गार्थ भी बहुत समझदार इन्सान के रूप में चित्रित किया जाता रहा है. अपने लौमहर्षक कारनामों को अंजाम देने के दौरान अधिकांश मौकों पर हम उसे ऐसी स्थिति में पाते हैं जब उसे पलक झपकते ही तुरन्त कोई निर्णय लेना होता है. ऐसे ही अवसरों पर हम उसके बुद्धि-चातुर्य का परिचय पाते हैं.

लेकिन गार्थ का व्यक्तित्व एक कुलीनवर्गीय गरिमा से आलोकित और गम्भीरता से परिपूर्ण है. उसकी शौर्य गाथाओं से गुजरते हुए हम शायद ही किसी अवसर पर उसे हंसता (यहां तक कि मुस्कुराता भी) पायेंगे. अपने मिशन और कार्य के प्रति पूर्ण-रुपेण समर्पित इस बहादुर योद्धा के कारनामों के संसार में उतरना सचमुच एक अद्भुत अनुभव से गुजरना है.

छिट-पुट

गार्थ की चर्चा हो और उसकी कहानियों में दर्शायी जाने वाली टॉपलैस सुन्दरियों का जिक्र ना आये, ये कैसे सम्भव है? पिछली कड़ी में मैंने बताया था कि सत्तर और अस्सी के दशक में हिन्दी के समाचार-पत्र में छपने वाले इन चित्रों को लेकर मुझे किस प्रकार शर्मिंदगी उठानी पड़ती थी (बचपन के दिन थे). इसी क्रम में ये जानना भी रोचक है कि फ़्लीट्वे (Fleetway) ने जब १९७५ में "The Daily Mirror Book of Garth" प्रकाशित की, जिसमें उसके प्रमुख कलाकार फ़्रैंक बैलामी (Frank Bellamy) द्वारा बनाये गये क्लासिक चित्र थे, तो उन सभी टॉपलैस महिलाओं के चित्र या तो सैंसर कर दिये गये या फ़िर उन्हें बिकिनी नुमा परिधान पहना दिये गये. कुछ वैसे ही जैसे इन्द्रजाल कॉमिक्स ने भारत में किया.

The Daily Mirror Book of Garth - 1976
लेकिन अगले ही वर्ष (१९७६ में) प्रकाशित अंक में इस प्रकाशन ने, शायद पिछले अनुभव से सीख लेते हुए, इस बार चित्रों में अपनी ओर से कोई परिवर्तन नहीं किया और सभी चित्रों को उनके मूल स्वरूप में यथावत प्रकाशित किया.

और अब हम बढ़ते हैं आज की कॉमिक्स की ओर.

कहानी:

कहते हैं कि कानून के हाथ बहुत लम्बे होते हैं. अपराधी कितना ही शातिर और चालाक क्यों न हो, कभी-न-कभी कानून के शिकंजे में पहुंचता ही है. शायद किस्से-कहानियों और फ़िल्मों के लिये यह एक सच हो लेकिन वास्तविकता क्या है, किसी से छुपा नहीं. समाज में कितने ही ऐसे अपराधी हैं जो सबूतों के अभाव में न्यायालय से बरी किये जा चुके हैं. कभी कोई साक्ष्य नहीं मिलता तो कभी दहशत के मारे कोई गवाही देने सामने नहीं आता. ऐसे में कई बार पुलिस अधिकारी हाथ मलते रह जाते हैं तो न्यायालय मन मसोसकर.

कहानी है एक ऐसे संगठन की जिसे खड़ा किया है उच्च पदों से सेवानिवृत्त हुए कुछ ईमानदार और जज्बे वाले अधिकारियों की. ये वो लोग हैं जो अपराधियों को उनके सही अंजाम तक पहुंचाने की अपनी तमाम कोशिशों को जीवन भर नाकाफ़ी साबित होता देखते आये हैं. पुलिस की राह में आने वाली बंदिशों और कानून की अड़चनों की वजह से बड़े अपराधियों को बेखौफ़ छुट्टा घूमते देखकर इनका खून खौलता है और वे मानते हैं कि समाज की भलाई इसी में है कि सभी दुर्जनों को कैसे भी करके उनके दुष्कर्मों की सजा अवश्य दी जानी चाहिये.

प्रसिद्ध जीवाणुविज्ञानी मैक्स होलिण्डर छुट्टियों के दौरान मछलियाँ पकड़ते हुए अचानक दम तोड़ देते हैं. गार्थ और प्रोफ़ेसर लुमियर उस वक्त उनके साथ ही थे. मौत का कारण एक अनजान विषाणु (Virus) है. ये काम है ’मछुआरे’ नामक उस रहस्यमय संगठन का जिसका उल्लेख हम ऊपर कर चुके हैं. ’मछुआरे’ इस विषाणु का प्रयोग अपने काम में (यानि बड़े गिरोहबाजों और अपराधियों के सफ़ाये में) करना चाहते है. अपने संगठन की गोपनीयता बनाए रखने की खातिर वे होलिण्डर को भी मौत की नींद सुला देते हैं.

गार्थ और लुमियर को पता चलता है कि मृत वैज्ञानिक एक गोपनीय प्रोजेक्ट पर कार्य कर रहे थे जिसके तहत वे उसी विषाणु पर शोध कर रहे थे जिसने उनकी जान ली है. ये एक ऐसा प्राणघातक विषाणु है जो शरीर में तब सक्रिय होता है जब उसका शिकार पानी के नजदीक जाता है.

होलिण्डर की भतीजी (और सचिव) एम्मा प्रोफ़ेसर के बारे में जानकारी देती है एवम गार्थ को उनकी प्रयोगशाला दिखाने ले जाती है. यहां गार्थ की मुठभेड़ दो किराये के गुण्डों से होती है जो प्रयोगशाला को नष्ट करने के लिये मछुआरों द्वारा भेजे गये हैं. बाद में एक पब में गार्थ उनमें से एक को पहचान लेता है.

गार्थ को अपने संगठन के रास्ते की रुकावट बनते देखकर मछुआरे उसे मारने की कोशिश करते हैं. लेकिन गार्थ इन सबसे बचता हुआ इन लोगों के कानून से ऊपर उठने के प्रयासों को विफ़ल करता रहता है. धीरे-धीरे मछुआरे बिखरना प्रारम्भ हो जाता है और अंततः पूरी तरह समाप्त हो जाता है.

कुछ और भी है:

जब मैंने बचपन में पहली बार ये कहानी पढ़ी थी, तो यह देखकर आश्चर्य में था कि गार्थ आखिर बुरे लोगों का साथ क्यों दे रहा है? क्यों वो इन खतरनाक गिरोहबाजों को सावधान कर उनकी जान बचा रहा है? मछुआरों के विचार और कार्यप्रणाली ने मुझे प्रभावित किया था और मेरा यही मानना था कि वे लोग कुछ गलत नहीं कर रहे थे. बाद में जाकर ये सोच-समझ विकसित हुई कि भले उद्देश्य को सामन रखकर भी यदि बुरे काम किये जाएं तो वे आखिरकार अपराध की ही श्रेणी में आते हैं.

जो भी हो, इस जबरदस्त कहानी ने सोच को काफ़ी प्रभावित किया और कई विचारश्रंखलाओं को जन्म दिया. एक शानदार कहानी.

डाउनलोड करें खूनी फ़रिश्ते (गार्थ)
(इंद्रजाल कॉमिक्स वर्ष२०अंक१८, वर्ष १९८३)

गार्थ पर हमारी ये श्रंखला अभी जारी है. अगली कड़ी में हम गार्थ की कहानियों से जुड़े रहे विभिन्न कलाकारों (कथाकार और चित्रकार) पर बात करेंगे और समय के साथ उसकी कहानियों में क्या-क्या परिवर्तन आये, ये देखेंगे. और भी बहुत कुछ होगा, एक और गार्थ कॉमिक के साथ. तो एक बार फ़िर बहुत जल्द उपस्थित होता हूं.

आप तब तक इस कहानी पर अपने विचार बनाइये और हो सके तो हमें भी बताइये.

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