Saturday, August 1, 2009

इंद्रजाल कॉमिक्सः वो कहानियां, वो किरदार

इंद्रजाल कॉमिक्स में जाहिर तौर पर ली फॉक के किरदार ही छाए रहे, मगर बीच का एक दौर ऐसा था जब इसने कुछ नए और बड़े ही दिलचस्प कैरेक्टर्स से भारतीय पाठकों से रू-ब-रू कराया। मैं उन्हीं किरदारों पर कुछ चर्चा करना चाहूंगा। कॉमिक्स की बढ़ती लोकप्रियता के चलते 1980 में टाइम्स ग्रुप ने इसे पाक्षिक से साप्ताहिक करने का फैसला कर लिया। यानी हर हफ्ते एक नया अंक। शायद प्रकाशकों के सामने हर हफ्ते नई कहानी का संकट खड़ा होने लगा। 1981-82 में अचानक इंद्रजाल कॉमिक्स ने किंग फीचर्स सिंडीकेट की मदद से चार-पांच नए किरदार इंट्रोड्यूस किए। मेरी उम्र तब करीब दस बरस की रही होगी। मुझे ये किरदार बहुत भाए। इसकी एक सबसे बड़ी वजह यह थी कि ये सारे कैरेक्टर वास्तविकता के बेहद करीब थे। उन कहानियों में हिंसा बहुत कम थी और वे एक खास तरीके से नैतिक मूल्यों का समर्थन करते थे।


सबसे पहले जो कैरेक्टर सामने आया वह था कमांडर बज सायर का। कमांडर सायर की पहली स्टोरी इंद्रजाल कॉमिक्स में शायद खूनी षड़यंत्र थी। कमांडर सायर की कहानियों की सबसे बड़ी खूबी यह थी कि उनके कैरेक्टर वास्तविक जीवन से उठाए हुए होते थे। इनके नैरेशन में ह्मयूर का तड़का होता था। इनमें से कई कहानियां क्राइम पर आधारित नहीं होती थीं। वे सोशल किस्म की कहानियां होती थीं। जैसा कि मुझे याद है एक कहानी सिर्फ इतनी सी थी कि एक बिल्ली का बच्चा पेड़ पर चढ़ जाता है और उतरने का नाम नहीं लेता। फायर ब्रिगेड वाले भी कोशिश करके हार जाते हैं। आखिर कमाडंर सायर पेड़ पर चढ़कर उसे पुचकार कर उतारते हैं। एक अकेली विधवा मां और उसके बच्चे की कहानी, अनजाने में अपराधी बन गए दो बच्चों की कहानी... कुछ यादगार अंक हैं। आम तौर पर इनका कैनवस अमेरिकन गांव हुआ करते थे।


इसके तुरंत बात दूसरा कैरेक्टर इंट्रोड्यूस हुआ कैरी ड्रेक का। ड्रेक एक पुलिस आफिसर था। यहां भी कुछ खास था। पहली बात किसी भी कॉमिक्स मे कैरी ड्रेक बहुत कम समय के लिए कहानी में नजर आता था। अक्सर ये कहानियां किसी दिलचस्प क्राइम थ्रिलर की बुनावट लिए होती थीं। कैरेक्टराइजेशन बहुत सशक्त होता था। एक और खास बात थी कैरी ड्रेक के अपराधी किसी प्रवृति के चलते अपराध नहीं करते थे। अक्सर परिस्थितियां उन्हें अपराध की तरफ ढकेलती थीं और वे उनमें फंसते चले जाते थे। इन कहानियों का सीधा सा मोरल यह था कि अगर अनजाने में भी आपने गुनाह की तरफ कदम बढ़ा लिए तो आपको अपने जीवन में उसकी एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी और तब पछतावे के सिवा कुछ हाथ नहीं लगे। कुछ अपनी जिद, तो कुछ अपनी गलत मान्यताओं के कारण अपराध के दलदल में फंसते चले जाते थे। हर कहानी में एक केंद्रीय किरदार होता था। उसके इर्द-गिर्द कुछ और चरित्र होते थे। उन्हें बड़ी बारीकी से गढ़ा जाता था। अब मैं उन तमाम चरित्रों को याद करता हूं तो यह समझ मे आता है कि उसके रचयिता ने तमाम मनोवैज्ञानिक पेंच की बुनियाद पर उन्हें सजीव बनाया जो कि वास्तव में एक कठिन काम है और हमारे बहुत से साहित्यकार भी इतने वास्तविक और विश्वसनीय चरित्र नहीं रच पाते।


इसके बाद बारी आती है रिप किर्बी की। इंद्रजाल में रिप किर्बी की पहली कहानी हिन्दी में रहस्यों के साए और अंग्रेजी में द वैक्स एपल के नाम से प्रकाशित हुई थी। साफ-सुथरे रेखांकन वाली इन कहानियों मे एक्शन बहुत कम होता था। मुझे रिप किर्बी की एक कहानी आज भी याद है, जिसमें रिप किर्बी और उनका सहयोगी एक ऐसे टापू पर जा पहुंचते हैं जो अभी भी 1830 के जमाने में जी रहा है। बाहरी दुनिया से उनका संपर्क हमेशा के लिए कट चुका है। वहां पर अभी भी घोड़ा गाड़ी और बारूद भरकर चलाई जाने वाली बंदूके हैं।


इस पूरी सिरीज में मुझे सबसे ज्यादा पसंद माइक नोमेड था। अभी तक मैंने किसी भी पॉपुलर कॉमिक्स कैरेक्टर का ऐसा किरदार नहीं देखा जो बिल्कुल आम आदमी हो। उसके भीतर नायकत्व के कोई गुण नहीं हों। यदि आपने कुछ समय पहले नवदीप सिंह की मनोरमा सिक्स फीट अंडर देखी हो तो अभय देओल के किरदार में आप आसानी से माइक नोमेड को आइडेंटीफाई कर सकते हैं। यह इंसान न तो बहुत शक्तिशाली है, न बहुत शार्प-तीक्ष्ण बुद्धि वाला, न ही जासूसी इसका शगल है। माइक नोमेड के भीतर अगर कोई खूबी है तो वह है ईमानदारी। अक्सर माइक को रोजगार की तलाश करते और बे-वजह इधर-उधर भटकते दिखाया जाता था। सच्चाई तो यह थी कि ये कैरेक्टर्स भारतीय पाठकों को बहुत अपील नही कर सके और इंद्रजाल प्रकाशन इनके जरिए फैंटम या मैंड्रेक जैसी लोकप्रियता नहीं हासिल कर सका।


एक और कैरेक्टर था गार्थ का। इस किरदार का संसार सुपरनैचुरल ताकतों से घिरा था। गार्थ अन्य कैरेक्टर्स के मुकाबले थोड़ा वयस्क अभिरुचि वाला था। गार्थ के रचयिताओं ने कई बेहतरीन क्राइम थ्रिलर भी दिए हैं। इसमें से एक तो इतना शानदार है कि बॉलीवुड में अब्बास-मस्तान उसकी नकल पर एक शानदार थ्रिलर बना सकते हैं। कहानी है जुकाम के उत्परिवर्ती वायरस की जो बेहतर घातक है [कुछ-कुछ स्वाइन फ्लू की तरह], इसकी खोज करने वाले प्रोफेसर की हत्या हो जाती है। प्रोफेसर की भतीजी, गार्थ और गार्थ के प्रोफेसर मित्र इस मामले का पता लगाने की कोशिश करते हैं। पता लगता है कि कुछ सेवानिवृत अधिकारियों और रसूख वालों ने अपराधियों को खत्म करने का जिम्मा उठाया है, एक गोपनीय संगठन के माध्यम से। वे एक के बाद एक अपराधियों को पहचान कर उन्हें ठिकाने लगाने में जुटे हैं। यह रोमांचक तलाश उन्हें ले जाती है हांगकांग तक, जहां एक बेहतर खूबसूरत माफिया सरगना इस त्रिकोणीय संघर्ष का हिस्सा बनती है। संगठन से जुड़े लोग हांगकांग की सड़कों पर मारे जाते हैं और उनका सरगना अपना मिशन फेल होने पर आत्महत्या कर लेता है।


इंद्रजाल की इस श्रंखला का आखिरी कैरेक्टर था सिक्रेट एजेंट कोरिगन। इस सिरीज के तहत प्रकाशित कहानियां दो किस्म की थीं। दोनों के चित्रांकन और कहानी कहने का तरीका बेहद अलग था। पहला वाला बेहद उलझाऊ और दूसरा बहुत ही सहज और स्पष्ट। पहले किस्म की कोरिगन की कहानियों को पढ़कर समझ लेना मेरे लिए उन दिनों एक चुनौती हुआ करता था। उन्हें पढ़ने के लिए विशेष धैर्य की जरूरत पड़ती थी, लगभग गोदार की फिल्मों की तरह। इसके रचयिता कम फ्रेम में बात कहने की कला में माहिर थे। मगर नैरेशन की कला का वे उत्कृष्ट उदाहरण थीं इनमें कोई शक नहीं।

एक्सट्रा शॉट्स

मेरी जानकारी में इंद्रजाल कॉमिक्स ने दो बिल्कुल अलग तरह की कॉमिक्स निकाली है। इनमें से एक है मिकी माउस की प्रलय की घड़ी। यह संभवतः साठ के दशक में प्रकाशित एक जासूस कहानी थी। मिकी माउस और गुफी के अलावा सारे चरित्र रियलिस्टिक थे। कहानी वेनिस की पृष्ठभूमि पर थी। वेनिस की नहरों, वहां की गलियों और पुलों का बेहद खूबसूरत चित्रण, उस कॉमिक्स के जरिए ही मैं वेनिस के बारे में जान सका। कहानी थी म्यूजियम में रखे गई एक अद्भुत मशीन की, जिसकी किरणें अगर किसी को ढक लें तो वह अदृश्य हो जाएगा। कुछ लोग साजिश रचकर वेनिस के जलमग्न होकर डूब जाने की अफवाह फैला देते हैं। देखते-देखते लोगों में भगदड़ मच जाती है और वे शहर छोड़कर जाने लगते हैं। इस बीच चोरों का दल उस मशीन को चुराने की कोशिश करता है जिसे मिकी माउस और गुफी नाकाम कर देते हैं।

सन् अस्सी में बाहुबली का मस्तकाभिषेक हुआ, जो हर बारह वर्ष बाद होता है। इसे उस दौर के मीडिया ने बहुत कायदे से कवर किया। शायद यह इंद्रजाल के मालिकानों की ख्वाहिश रही होगी, उस वक्त एक विशेष विज्ञापन रहित अंक निकला था जो अमर चित्रकथा स्टाइल में बाहुबली की कथा कहता था।

दिनेश श्रीनेत


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13 टिप्पणियां:

Vinay said...

यह साइट वाकई बहुत सुन्दर
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· चाँद, बादल और शाम

Smart Indian said...

कमांडर बज सायर के चरित्र ने मुझे भी बहुत प्रभावित किया था और सिर्फ उनके कॉमिक्स मैं संभाल कर रखता था,

मुनीश ( munish ) said...

Thank you Shri Netra for taking me down the memory lane . I agree with what u say ,but Garth was a very well known character for the readers of Navbharat Times as they used to publish it in the form of a daily sequel. Interestingly, females in this comic were sexier than real Bombayiite heroines of those days.
I specially miss Rip Kirby and he was really class apart ! I used to read Hindi versions only and i think only two or three Kirby comics appeared in Hindi Indrajaal Comics. If u have some comics of that era i would love to have a look.I hope u r familiar with Comics world---a blog dedicated to comics.

दिनेशराय द्विवेदी said...

सभी चरित्रों ने पाठकों को बहुत मनोरंजन और शिक्षा प्रदान की।

Comic World said...

दिनेश जी सूक्ष्म ढंग से इंद्रजाल कॉमिक्स के अन्य चरित्रों की विशेषताओं पर टिपण्णी करने का धन्यवाद्.
जहाँ तक मेरी बात है तो मैंने वेताल-मैनड्रैक के अलावा सिर्फ' किर्बी,सायर और ड्रे'क पर ही ज्यादा ध्यान दिया है.'गा'र्थ कभी भी मुझे पसंद नहीं आया और 'कोरिगन' मैंने अभी तक पढ़ा नहीं.
इंद्रजाल ने मिक्की माउस और बाहुबली के अलावा 'ज़ोरो' पर भी एक कॉमिक प्रकाशित की थी,मैंने तो इनमे से सिर्फ बाहुबली ही पढ़ी है हालाँकि बाकि भी सब है मेरे पास.
देखा जाये तो भले ही इंद्रजाल ने ये सब चरित्र अपने प्रकाशन में शामिल कर लिए थे पर वेताल,मैनड्रैक,बहादुर और फ्लैश को छोड़कर बाकि कोई भारतीय पाठक के मन में जगह बना नहीं पाए और इसीलिए वेताल-मैनड्रैक की कथाओं को जबरन एकाधिक भागों में प्रकाशित किया जाने लगा ताकि बाकि के प्रष्टों में इन चरित्रों को खपाया जा सके.

वेताल शिखर said...

शुक्रिया दिनेश इस लाजवाब पीस के लिये.

आपके अन्य ब्लॉग्स पढ़ता रहा हूं और आपकी लेखनी का प्रशंसक हूं. यहां भी आपने क्या शानदार समां बांधा है.

इन किरदारों पर कुछ कहूं. बज सायर की कहानियों के चरित्र एक मासूमियत लिये होते थे जो दिल को बहुत लुभाती थी. लेफ़्टिनेंट कैरी ड्रेक भी एक बहुत पुराना चरित्र है जो अमेरिकन न्यूज-पेपर्स में लम्बे अर्से से छपता रहा है. एक भले से पुलिस वाले का किरदार जो एक फ़ैमिली मैन भी है, तीन प्यारे बच्चों का पिता है और एक समर्पित पति. अपराधियों के साथ सख्ती से पेश आने वाले ड्रेक की निजी जिंदगी की तस्वीरें भी वास्तविकता के काफ़ी नजदीक होने से दिल को छूती थीं.

प्राइवेट डिटेक्टिव रिप किर्बी का चरित्र पहली ही कॉमिक्स (जिसका कि आपने जिक्र भी किया है) से ही मन को भा गया. हां, माइक नोमेड मेरी पसंद की सूची में ज्यादा ऊपर नहीं चढ़ सका, शायद ये चरित्र कुछ ज्यादा ही अमेरिकन था.

गार्थ की बात कहूं तो ये मेरे लिये कोई नया चरित्र नहीं था क्योंकि दैनिक हिन्दुस्तान (और हिन्दुस्तान टाइम्स)में डेली स्ट्रिप के रूप में छपा करता था और बहुत ही कम उम्र से मैं इसे पढ़ता आ रहा था. जैसा कि मुनीश जी ने जिक्र किया है, पेपर में छ्पने वाली स्ट्रिप बिना किसी काट-छांट के होती थी और इसीलिये इसमें थोड़ी न्यूडिटी भी रहती थी. इन्द्रजाल कॉमिक्स में इन चित्रों को अलग से कपड़े से ढंका जाता था.(ताज्जुब की बात है कि सत्तर और अस्सी के दशक में आम भारतीय अखबारों में ऐसी चीज को लेकर कोई हंगामा नहीं दिखा). मेरी उम्र काफ़ी कम थी और गार्थ की संगिनी गॉडेस आस्ट्रा के इन रूपों को लेकर कभी कभी कुछ एम्बेरेसिंग मूमेंट्स का सामना करना पड़ा, जो अभी भी याद हैं. लेकिन गार्थ मुझे वैसे भी पसंद आया. :-)

गार्थ की जिस कहानी का आपने जिक्र किया है (मछुआरे नामक संगठन) वह मेरे पास उपलब्ध है. जल्द ही स्कैन करके पोस्ट करता हूं.

कोरिगन कुछ वर्ष बाद शुरु हुआ और ठीक-ठाक लगा. शायद आपको जानकारी हो कि ब्रूस-ली की भी कुछ कहानियाँ इन्द्रजाल ने प्रकाशित की थीं.

कुल मिलाकर कम शब्दों में आपने ढेर सारे चरित्र और उनके कारनामे हमारे सामने बिखेर दिये हैं. इन्द्रजाल के पुराने शैदाइयों के लिये इसमें ढूंढने के लिये काफ़ी कुछ है.
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इनमें से कुछ चरित्रों की कथाएँ मैं अपने अंग्रेजी ब्लॉग पर पोस्ट करता रहा हूं. निम्न लिंक देखे जा सकते हैं:

रिप किर्बी:

१) रेगिस्तानी लुटेरे
२) सुनहरा तिलिस्म

लेफ़्टि. कैरी ड्रेक:

१) आतंक का साया

गार्थ:

१) छिपे दुश्मन
२) दहकता प्रतिशोध
३) मशीनी औरतों का षड्यंत्र

Arvind Mishra said...

केवल गार्थ की ही कुछ स्मृति शेष बची है

Anonymous said...

Hi Dinesh,
Thanks for all the efforts and nice work.
I am eagerly waiting for you to put earliest IJCs ( and complete from cover to cover )specially # 1 in Hindi.
You have started a good trend.
I wanted to write this in Hindi but I am not much computer savy and do not know how to translate it.
Thanks
Rakesh

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

आप शायद 'बहादुर' को भूल गए।

वेताल शिखर said...

@गिरिजेश राव: बहादुर तो उस प्रसिद्ध चौकड़ी (वेताल-मैण्ड्रेक-फ़्लैश-बहादुर) में शामिल है जो सबसे ज्यादा पसंद की गई और जो काफ़ी पहले से इन्द्रजाल में छपती आ रही थी. दिनेश जी ने इस लेख में सिर्फ़ उन चरित्रों का उल्लेख किया है जो १९८१-८२ में प्रारम्भ किये गये थे.

दिनेश श्रीनेत said...

मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए सभी का शुक्रिया। मैंने अव्वल तो कुछ साल पहले तक कभी सोचा भी नहीं की मेरे जैसे और भी लोग होंगे जिनके लिए कॉमिक्स जैसी विधा इतनी अहमियत रखती होगी, और फिर उनके बारे में कभी लिखा भी जा सकेगा। आम तौर पर अब तक के माध्यम एक बनावटी किस्म की बौद्धिकता में जीते थे तो इस तरह के स्वतः स्फूर्त लेखन की संभावना ही नहीं थी। गिरिजेश राव जीः बहादुर पर मेरे पास बहुत कुछ लिखने को है। जल्दी ही मैं कुछ पोस्ट करता हूं।

अफ़लातून said...

श्रीनेत जी की उमर के दस साल पहले थे लेकिन मैंड्रेक व वेतालेतर अंक (फ्लैश गार्डेन आदि) आने पर दुखी हो जाते थे ।
गार्थ ’हिन्दुस्तान टाइम्स’ भी छापता था ।
आपके गवेषणापूर्ण लेखन का मैं भी कायल हूँ । बचपन से लेकिन यह बहस जरूर सुन ली थी कि काली चमड़ी वालों के बीच हीरो गोरे ही क्यों होते थे। हद्दमहद्दा गुर्रन , टॉम टॉम अथवा लोथार तक पहुँच सकते थे काली चमड़े वाले !

Anonymous said...

jis kisi ne yeh site banayi hein krapaya yeh bataiye ki blogspot mein blog ko kaise isi tarah se badal sakte hein meine bahut koshish ki magar samagh mein nahi aaya answer send to anirudhakumar.gupta@gmail.com