Monday, August 10, 2009

आप भूले तो नहीं होंगे इस क्लासिक वेताल कथा को

बचपन में पढ़ी वेताल की कुछ कथाएँ मन-मस्तिष्क पर कुछ इस तरह चस्पा हैं कि ना सिर्फ़ ये कहानियाँ पहली बार पढ़ने की स्मृति है बल्कि उससे जुड़ी हुई अन्य घटनाएं भी. बड़े भाई साहब उम्र में मुझसे पांच वर्ष आगे हैं. मैं कोई छै: साल का था और वे थे लगभग ग्यारह के. इन्द्रजाल का शौक उन्हीं से होता हुआ मुझमें प्रविष्ट हुआ था. वेताल और मैण्ड्रेक के प्रति दीवानगी ने मुझे उनकी मित्र-मंडली से भी अच्छी तरह परिचित करवा दिया था, क्योंकि उनके कुछ दोस्तों के पास होता था इन्द्रजाल का खजाना. ये वो लोग थे जिनके परिजनों ने इन्द्रजाल कॉमिक्स की वार्षिक ग्राहकी ले रखी थी और जिनके पास पुराने अंक संभले रखे हुए थे. जब भी भाई साहब के ये दोस्त लोग उनसे मिलने आते थे, तो मेरे अनुरोध पर कुछ अंक साथ ले आते थे. जब तक दोस्तों की बातचीत जारी रहती, मैं दो-तीन कॉमिक्स निपटा लेता था. धीरे-धीरे मैंने काफ़ी सारे पुराने अंक पढ़ डाले.

वेताल की एक खास कहानी पढ़ने की याद भली प्रकार से है. ये जंगल गश्ती दल और दलद्ली चूहों की कहानी थी. इसमें वेताल के लिये सचमुच एक बड़ी चुनौती थी और पढ़्ते समय आगे के घटनाक्रम को लेकर भारी रोमांच और उत्सुकता मन में थी. आज इसी कहानी को आपके लिये पोस्ट कर रहा हूं. आशा है आपको भी यादों के सागर में एक बार फ़िर डुबकी लगाने में आनंद आयेगा.

ये वेताल की ऑल टाइम क्लासिक कहानियों में से एक मानी जाती है. सबसे पहले सन १९५९ में अमेरिकी समाचार-पत्रों में दैनिक कॉमिक पट्टिका के रुप में प्रकाशित हूई थी. इन्द्रजाल में इसका प्रकाशन १५ अगस्त, १९७६ के अंक में हुआ और मुझे शायद १९७९ या १९८० में पहली बार पढ़ने को मिली थी और दिलो-दिमाग पर एकदम छा गयी थी.

कहानी:

आजीवन कारावास की सजा पाये कुछ दुर्दांत हत्यारों को लेकर एक पानी का जहाज सुदूर स्थान की ओर जा रहा था. अचानक मौका पाकर ये कैदी चालक-दल पर हमला बोल देते हैं और थोड़े खून-खराबे के बाद आजादी हासिल कर लेते हैं. जहाज के रेडियो यंत्र को तोड़-फ़ोड़ कर, छोटी नौकाओं में बैठकर ये छिपने के लिये नजदीक के जंगल का रुख करते हैं. इनका लीडर है "ऑटर" जो इनमें सबसे बेरहम और खतरनाक है. वह जंगल में ही पला-बढ़ा है और जंगल के बीचों-बीच स्थित भयानक दलदल में सुरक्षित घुसने का एक खुफ़िया रास्ता जानता है. वह इन भगोड़े कैदियों को अपने साथ दलदल में ले जाता है.

अब शुरु होता है अपराधों का सिलसिला. ये खूंख्वार अपराधी रात के सन्नाटों में दलदल से निकलते हैं, निकट के कस्बों में डकैती वगैरह को अंजाम देते हैं या नज़दीक के हाईवे से गुजरने वाले वाहनों से लूटपाट करते हैं और फ़िर वापस खूनी दलदल में जाकर छिप जाते हैं. पुलिस इनका पीछा नहीं कर सकती क्योंकि पैरों के निशान दलदल के मुहाने पर जाकर समाप्त हो जाते हैं और उससे आगे जाना मौत को सीधा बुलावा देना है. जल्दी ही ये गिरोह, दलदली चूहों के नाम से कुख्यात हो जाता है.

इनसे निपटने की जिम्मेदारी वेताल जंगल गश्ती दल को सौंपता है. (वेताल ही इस दल का अज्ञात सेनापति है). दल के प्रमुख कर्नल वीक्स अपने दो सैनिकों को रहस्य का पता लगाने के लिये भेजते हैं लेकिन दोनों सैनिक दलदली चूहों की गिरफ़्त में आ जाते हैं. वेताल स्थिति की गम्भीरता को भांपते हुए जंगल गश्ती दल को इस मुहिम से दूर रहने का आदेश देकर मामले को स्वयं अपने हाथ में ले लेता है.

अब शुरू होता है सीधा मुकाबला. दोनों पक्षों की स्थिति लगातार ऊपर-नीचे होती रहती है. कभी वेताल हावी होता है तो कभी "ऑटर" और साथी. कई रोमांचक घटनाओं से गुजरने के बाद आखिरकार दलदली चूहे काबू में कर लिये जाते हैं.

दोनों गश्ती सैनिक छुड़ा लिये जाते हैं. कर्नल वीक्स अचरज में हैं. इन दोनों सैनिकों को सेनापति के साथ काम करने का दुर्लभ मौका मिला. क्या वे जान पाए कि तीन सौ साल पुराने जंगल गश्ती दल का अज्ञात सेनापति आखिर कौन है. "उसका चेहरा नकाब से ढंका हुआ था", मायूस करने वाला ज़वाब मिलता है. रहस्य कायम रहता है.



एक बात और. दैनिक कथाओं को कॉमिक्स के फ़ॉर्मेट में छापने के लिये अक्सर कहानियों में कुछ काट-छांट करना आवश्यक हो जाता है. कभी-कभी कुछ सीक्वेंस पूरी तरह उड़ा दिये जाते हैं तो कभी कुछ पैनल्स को कतर कर ठूसना होता है. इन सब से कहानी का कुछ मजा खराब होता है. इन्द्रजाल में भी कुछ हद तक ये सब देखने को मिलता है. ओरिजिनल स्ट्रिप से तुलना करें तो ही पता चलता है. इस कहानी का पहला ही पेज देखिये. और फ़िर इस पेज को देखिये जो स्ट्रिप से बनाया गया है. एक पैनल में कुछ काट-छांट नजर आयेगी. आई ना?

श्वेत-श्याम स्ट्रिप में रंगीनियाँ भरने की जुर्रत मेरी खुद की है.

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17 टिप्पणियां:

महुवा said...

i jst luuuuuuuuv it....!!
बचपन में बहुत चुरा चुरा कर पढ़ी हैं...अपने भाई के कलेक्शन में से....!!

वेताल शिखर said...

@tanu sharma.joshi जी: चुरा-चुरा कर? जरूर आपके भैया अपने कलेक्शन के प्रति कुछ ज्यादा ही संवेदनशील रहे होंगे.

Arvind Mishra said...

पुरानी यादें ताजा हो आ आयीं

मोहम्मद कासिम said...

bhut achhi kahhani hai. lekin download nahi ho pa rahi hai. .pdf mein karde to ...

sukriya

Vinay said...

टकाटक

वेताल शिखर said...

@ अरविंद मिश्र: आनंद लीजिये सर. धन्यवाद.

@ मोहम्मद कासिम: मैंने पीडीएफ़ बनाने की कोशिश की पर बेस्ट क्वालिटी की पीडीएफ़ फ़ाइल १६१ एमबी की बन रही है. लोअर क्वालिटी में मजा नहीं आयेगा. आप मुझे ईमेल करें तो मैं आपको अलग-अलग पेज ईमेल से भेज दूंगा, या फ़िर कोई और रास्ता निकालते हैं. शुक्रिया दोस्त.

@ विनय 'नजर': धन्यवाद जी.

@ विजय भाई: बढ़िया खबर सुनाई है. मैं तो विज़िट भी कर आया हूं आपके नये ब्लॉग पर और अपनी टिप्पणियाँ भी छोड़ आया हूं. कमाल के चित्र बनाये हैं आपने.

Khushdeep Sehgal said...

ब्लॉग की दुनिया में नया दाखिला लिया है. अपने ब्लॉग deshnama.blogspot.com के ज़रिये आपका ब्लॉग हमसफ़र बनना चाहता हूँ, आपके comments के इंतजार में...

Khushdeep Sehgal said...

हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया. उम्मीद करता हूँ, आगे भी ऐसी नज़रे-इनायत मिलती रहेगी

Unknown said...

Thanks for posting it. But whenever I download it and try to open with CBR comics reader, it throws an error "Error in Buffering page 10". Please help.

वेताल शिखर said...

@ Anurag: I checked and found no problem with the download. Might be some problem with your download. Anyway, send me a mail (my mail id is in profile) and I will send the comic to you through mail.

Vedha said...

TPH,

Congrats for your hindi blog. it looks really nice with all those covers.

all the very best to you.

PD said...

bhai.. Comics baad me padh lenge.. pahle apni kahani to poori karen.. aage fir kya hua? :-o

वेताल शिखर said...

@ PD: अरे आप पढ़ रहे थे, मुझे लगा किसी को रुचि नहीं है, सो रोक दी थी. अब बस चालू हुई समझिये.

Anonymous said...

kripya karke apni kahani jari rakhiye. Bahut logon ko isme ruchi hai, bas wo kuch comments nahi likhte, jaise ki mein.Par ab likh raha hoon taki aage kya hota hai jaan sakoon. Mujhe shama karen, aap kafi acha likhte hain aur apka blog bhi kafi dilchasp hai.
Dhanyavad
-Shailendra

Aditya Gupta said...


PLEASE WRITE ABOUT YOUR NEXT SEQUAL:

"ROFESSOR KA RAHASHYA:4"

I AM REGULARLY WAITING FOR IT FOR LAST 15 DAYS.

A LOT OF THANKS FOR POSTING ALL THESE STORIES ON BLOG.

anupam trivedi said...

It was a nice feeling to go through the blog. It was nostalgic feeling of those days when I was in class 3 0r 4. Infact I hardly imagined that there could be a blog on Indrajal comics. I appreciate your work, pls carry on.
Tks

वेताल शिखर said...

@anupam trivedi: I feel very happy to know that. Indrajal Comics holds a special place for all of us who were in their teens during its publication period.

thanks for visiting.