वेताल का मित्र-द्वीप (Eden) एक रोमांचक संकल्पना है. यह टापू तीन ओर से नदी द्वारा जंगल की मुख्य जमीन से कटा हुआ है और एक ओर से सुमुद्र से नुकीली चट्टानों द्वारा सुरक्षित है. यहाँ पर भिन्न प्रवृत्तियों के पशु, कुछ शाकाहारी एवम कुछ मांसाहारी आपस में प्रेम पूर्वक रहते हैं. वेताल ने इन सभी को इसी प्रकार वास करने के लिये प्रशिक्षित किया है.
मित्र-द्वीप पर वास करने वाले अधिकांश प्राणियों के इस द्वीप तक पहुंचने की कोई-न-कोई कहानी है. कई जानवर जैसे कि फ़्लफ़ी (शेर), बूढ़ा गंजू (गोरिल्ला), गुफ़ा मानव हज्ज (काल्पनिक जीव), स्टेगी (स्टेगोसॉरस) आदि वेताल को अलग-अलग परिस्थितियों में मिले और अंततः वेताल ने उन्हें सुरक्षित रख्नने के लिये मित्र-द्वीप पहुंचाने का निर्णय लिया.
गुफ़ा मानव हज्ज से वेताल की प्रथम मुलाकात की कहानी हम कुछ दिन पहले इसी ब्लॉग पर पढ़ चुके हैं. (देखिये यह पोस्ट.) आज की कहानी में स्टेगोसॉरस स्टेगी का हालचाल जानते हैं. कहानी कुछ इस तरह से विकसित की गई है कि गहन जंगल में एक विशाल दलदल है जो बीहड़ बन को घेरे हुए है. करोड़ों वर्षों तक इसी दलदली जमीन में दबे रहने के बाद डायनोसॉर का कोई अण्डा ऊपर जमीन तक आ गया और इसी के फ़ूटने से स्टेगी का जन्म हुआ.
जंगल में रास्ता भटके हुए दो बच्चों को ढूंढने निकले वेताल का सामना स्टेगी से होता है. जानवर पर काबू पा लिया जाता है पर सवाल उठता है कि अब इसका किया क्या जाए. शहर का प्राणी संग्रहालय वेताल की बात को कोरी गप्प समझ कर उपेक्षित करता है. और कोई चारा ना देखकर अंततः इस विशालकाय प्राणी को वेताल अपने प्रक्षिक्षण में लेता है, जो कि एक कठिन कार्य है क्योंकि इतने बड़े प्राणी का मस्तिष्क आकार में केवल एक मटर के दाने के बराबर है. लेकिन वेताल पशुओं का एक अच्छा प्रक्षिक्षक है. कई महीनों के प्रक्षिक्षण के बाद आखिरकार स्टेगी को मित्र-द्वीप तक पहुंचाया जाता है जो कि उसके लिये एकमात्र सुरक्षित एवम सर्वथा उपयुक्त स्थान है.
शानदार कल्पनाशीलता और रोमांचक तत्वों को समाहित किये इस कहानी से कई लोगों की यादें अवश्य जुड़ी होंगी. इन्द्रजाल कॉमिक्स में इसे पहली बार १९७९ में प्रकाशित किया गया था, "दलदल का दानव" शीर्षक से. मुझे स्वयं धुंधली सी स्मृति है इसे तब पढ़ने की. इसके बाद इसका पुन: प्रकाशन १९८९ में किया गया. इस पोस्ट में यही बाद वाली कॉमिक्स प्रस्तुत की गई है.
दोनों अंकों के प्रकाशनों में कोई विशेष अंतर नहीं है. कहानी वही है (चित्र भी) और काफ़ी हद तक सम्पादन आदि भी समान है. लेकिन एक बड़ा फ़र्क जो तुरन्त नजर में आता है वह यह है कि पुराने अंक में स्टेगी को हरे रंग का दिखाया गया था और इस बाद वाले में उसे गहरे भूरे रंग का. वर्षों तक स्टेगी को हरे रंग में देखते आने के आदी हो चुकने पर यह रंग परिवर्तन कुछ अजीब सा लगता है.
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7 टिप्पणियां:
अरे वाह ताजा हो आयी यांदे !
Oh my God! Cant believe this....पुरानी यादें ताज़ा हो आईं। अमरचित्रकथा भी एक हुआ करती थी।
धन्यवाद जी।
" बहुत मजेदार और रोचक रही.."
Regards
यह तो पढ़ी हुई थी. फिर से याद दिलाने के लिए आभार.
आप सभी लोगों का हार्दिक धन्यवाद.
shaan daar post
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