बचपन में पढ़ी वेताल की कुछ कथाएँ मन-मस्तिष्क पर कुछ इस तरह चस्पा हैं कि ना सिर्फ़ ये कहानियाँ पहली बार पढ़ने की स्मृति है बल्कि उससे जुड़ी हुई अन्य घटनाएं भी. बड़े भाई साहब उम्र में मुझसे पांच वर्ष आगे हैं. मैं कोई छै: साल का था और वे थे लगभग ग्यारह के. इन्द्रजाल का शौक उन्हीं से होता हुआ मुझमें प्रविष्ट हुआ था. वेताल और मैण्ड्रेक के प्रति दीवानगी ने मुझे उनकी मित्र-मंडली से भी अच्छी तरह परिचित करवा दिया था, क्योंकि उनके कुछ दोस्तों के पास होता था इन्द्रजाल का खजाना. ये वो लोग थे जिनके परिजनों ने इन्द्रजाल कॉमिक्स की वार्षिक ग्राहकी ले रखी थी और जिनके पास पुराने अंक संभले रखे हुए थे. जब भी भाई साहब के ये दोस्त लोग उनसे मिलने आते थे, तो मेरे अनुरोध पर कुछ अंक साथ ले आते थे. जब तक दोस्तों की बातचीत जारी रहती, मैं दो-तीन कॉमिक्स निपटा लेता था. धीरे-धीरे मैंने काफ़ी सारे पुराने अंक पढ़ डाले.
वेताल की एक खास कहानी पढ़ने की याद भली प्रकार से है. ये जंगल गश्ती दल और दलद्ली चूहों की कहानी थी. इसमें वेताल के लिये सचमुच एक बड़ी चुनौती थी और पढ़्ते समय आगे के घटनाक्रम को लेकर भारी रोमांच और उत्सुकता मन में थी. आज इसी कहानी को आपके लिये पोस्ट कर रहा हूं. आशा है आपको भी यादों के सागर में एक बार फ़िर डुबकी लगाने में आनंद आयेगा.
ये वेताल की ऑल टाइम क्लासिक कहानियों में से एक मानी जाती है. सबसे पहले सन १९५९ में अमेरिकी समाचार-पत्रों में दैनिक कॉमिक पट्टिका के रुप में प्रकाशित हूई थी. इन्द्रजाल में इसका प्रकाशन १५ अगस्त, १९७६ के अंक में हुआ और मुझे शायद १९७९ या १९८० में पहली बार पढ़ने को मिली थी और दिलो-दिमाग पर एकदम छा गयी थी.
कहानी:
आजीवन कारावास की सजा पाये कुछ दुर्दांत हत्यारों को लेकर एक पानी का जहाज सुदूर स्थान की ओर जा रहा था. अचानक मौका पाकर ये कैदी चालक-दल पर हमला बोल देते हैं और थोड़े खून-खराबे के बाद आजादी हासिल कर लेते हैं. जहाज के रेडियो यंत्र को तोड़-फ़ोड़ कर, छोटी नौकाओं में बैठकर ये छिपने के लिये नजदीक के जंगल का रुख करते हैं. इनका लीडर है "ऑटर" जो इनमें सबसे बेरहम और खतरनाक है. वह जंगल में ही पला-बढ़ा है और जंगल के बीचों-बीच स्थित भयानक दलदल में सुरक्षित घुसने का एक खुफ़िया रास्ता जानता है. वह इन भगोड़े कैदियों को अपने साथ दलदल में ले जाता है.
अब शुरु होता है अपराधों का सिलसिला. ये खूंख्वार अपराधी रात के सन्नाटों में दलदल से निकलते हैं, निकट के कस्बों में डकैती वगैरह को अंजाम देते हैं या नज़दीक के हाईवे से गुजरने वाले वाहनों से लूटपाट करते हैं और फ़िर वापस खूनी दलदल में जाकर छिप जाते हैं. पुलिस इनका पीछा नहीं कर सकती क्योंकि पैरों के निशान दलदल के मुहाने पर जाकर समाप्त हो जाते हैं और उससे आगे जाना मौत को सीधा बुलावा देना है. जल्दी ही ये गिरोह, दलदली चूहों के नाम से कुख्यात हो जाता है.
इनसे निपटने की जिम्मेदारी वेताल जंगल गश्ती दल को सौंपता है. (वेताल ही इस दल का अज्ञात सेनापति है). दल के प्रमुख कर्नल वीक्स अपने दो सैनिकों को रहस्य का पता लगाने के लिये भेजते हैं लेकिन दोनों सैनिक दलदली चूहों की गिरफ़्त में आ जाते हैं. वेताल स्थिति की गम्भीरता को भांपते हुए जंगल गश्ती दल को इस मुहिम से दूर रहने का आदेश देकर मामले को स्वयं अपने हाथ में ले लेता है.
अब शुरू होता है सीधा मुकाबला. दोनों पक्षों की स्थिति लगातार ऊपर-नीचे होती रहती है. कभी वेताल हावी होता है तो कभी "ऑटर" और साथी. कई रोमांचक घटनाओं से गुजरने के बाद आखिरकार दलदली चूहे काबू में कर लिये जाते हैं.
दोनों गश्ती सैनिक छुड़ा लिये जाते हैं. कर्नल वीक्स अचरज में हैं. इन दोनों सैनिकों को सेनापति के साथ काम करने का दुर्लभ मौका मिला. क्या वे जान पाए कि तीन सौ साल पुराने जंगल गश्ती दल का अज्ञात सेनापति आखिर कौन है. "उसका चेहरा नकाब से ढंका हुआ था", मायूस करने वाला ज़वाब मिलता है. रहस्य कायम रहता है.
श्वेत-श्याम स्ट्रिप में रंगीनियाँ भरने की जुर्रत मेरी खुद की है.
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