रहस्य की तमाम पर्तों के बीच दबा हुआ एक गुमनाम सा अपराधी संगठन. सैकड़ों वर्षों से आमजन की जानकारी से सर्वथा परे रहकर गुप्त रूप से अपनी गतिविधियों को संचालित करता हुआ. ली फ़ॉक ने अपनी कई कहानियों को इस प्रकार के कथानक के इर्द-गिर्द बुना है. वेताल और मैण्ड्रेक, दोनों का ही सामना ऐसे रहस्यमय और खूंख्वार गिरोहों से लगातार होता रहा है. हमारी आज की कहानी एक ऐसे ही संगठन से मैण्ड्रेक की मुठभेड़ की दास्तां बयान करती है.
ये वो अपराधी गिरोह है जिसे हम "अष्टांक" के नाम से जानते हैं. मैण्ड्रेक की दुनिया में इसका आगमन तब हुआ जब उसकी प्रेयसी नारडा ने अनजाने में ही एक पुस्तकालय में इस प्राचीन गिरोह के अस्तित्व की जानकारी हासिल कर ली. नारडा की उत्सुकता तब और भी बढ़ गयी जब उसने जाना कि इस गिरोह के कारनामों का हल्का-फ़ुल्का सा जिक्र प्रत्येक शताब्दी में मिलता रहता है. यहां तक कि द्वितीय विश्व-युद्ध के दौरान भी इसके सद्स्यों द्वारा लूटपाट की घटनाओं को अंजाम दिये जाने की बात सामने आती है. तो क्या आज के समय में भी इस संगठन का कारोबार गति पर है?
गिरोह से अपनी पहली मुठभेड़ के दौरान मैण्ड्रेक और लोथार उसकी एक विंग को तबाह कर देते हैं. लेकिन अभी और भी कई कड़ियां बाकी हैं. सबसे मुश्किल है गिरोह के सरगना तक पहुंचना क्योंकि यह कुटिल और बेहद चालाक अपराधी केवल रेडियो संपर्क पर रहता है. उस पर हाथ डालना बेहद कठिन है. आज की कहानी में दूसरी मुठभेड़ का किस्सा है. आइये देखते हैं.
कहानी
अपने पूर्णत: सुरक्षित आवास "ज़नाडू" में लम्बे समय के बाद हासिल हुई छुट्टी का आनंद लेते मैण्ड्रेक की नजर अखबार की उस खबर पर अटक जाती है जिसमें एक दुर्घटनाग्रस्त बैंक लुटेरे का चित्र छपा है. उसके कोट की बांह पर टंका हुआ बटन ’८’ के अंक को दर्शा रहा है. अष्टांक का सूत्र हासिल करने की उम्मीद से मैण्ड्रेक एक नये मिशन पर लगता है. इंटर-इंटेल के विशाल कम्प्यूटर से उसे जानकारी हासिल होती है कि मारा गया अपराधी ’रूडी’ नामक एक छोटा-मोटा गुंडा था. वहीं से उसकी प्रेमिका ’बबली’ का पता चलता है. बबली से मैण्ड्रेक और लोथार की मुलाकात ’अष्टांक’ से छुपी नहीं रहती और वे अपराधी एक बार फ़िर इन दोनों को समाप्त करने के लिये अपनी पूरी ताकत झोंक देते हैं.
एक के बाद दूसरा सूत्र पकड़कर मैण्ड्रेक लगातार अष्टांक के करीब पहुंचता जाता है. गिरोह उसे पकड़ने के लिये जाल बिछाता है और वे आखिर मैण्ड्रेक को अपने कब्जे में करने में सफ़ल हो जाते हैं. उसे एक विद्युत कुर्सी पर कस दिया जाता है और जानकारी उगलवाने के लिये टॉर्चर किया जाता है. अष्टांक को मैण्ड्रेक की सम्मोहिनी शक्तियों की पूरी जानकारी है और इसी लिये उसकी आंखों पर पट्टी बांध कर रखा गया है. इधर नारडा और लोथार, मैण्ड्रेक की खोज में है.
देखने से लाचार मैण्ड्रेक अपनी श्रवण इन्द्रिय का प्रयोग करता है और बाह्य ध्वनियों पर ध्यान केंद्रित कर अपने कैदखाने की लोकेशन का अंदाजा लगा लेता है. टेलीपैथी संदेश की मदद से वह लोथार को अपनी स्थिति की जानकारी देता है. मानसिक संदेश का पीछा करते हुए लोथार और नारडा उस तक जा पहुंचते हैं. पिछली बार की तरह एक बार फ़िर अष्टांक के मंसूबे नाकामयाब होते हैं और उनका एक और विंग काल के गाल में समा जाता है.
बाकी आप खुद पढ़ें और आनंद लें.

छुट-पुट
१. यह कहानी पहली बार एक दैनिक कॉमिक स्ट्रिप के रूप में समाचार पत्रों में अगस्त १९६५ से फ़रवरी १९६६ के मध्य प्रकाशित हुई थी.

३. प्रस्तुत अंक (V22N47), इन्द्रजाल कॉमिक्स में इस कहानी का पुन: प्रकाशन था जो कि सन १९८५ में हुआ था.
४. अपने उद्गम से लेकर वर्तमान स्वरूप तक पहुंचने में लोथार के चरित्र ने कई पड़ावों को पार किया है. सन १९३४ में जब मैण्ड्रेक का चरित्र पहली बार सामने आया था तो लोथार को उसके शक्तिशाली लेकिन भोंदू सेवक के रूप में प्रस्तुत किया गया था. बदलते वक्त के साथ लोथार में भी बदलाव आये और फ़िर ली फ़ॉक ने उसके चरित्र को बेहतर आधार देते हुए उसे एक अफ़्रीकी कबीले का राजकुमार दर्शाया. मैण्ड्रेक को उसके अभिन्न मित्र के रूप में बदला गया. सामाजिक परिवर्तनों की झलक उस दौर की कहानियों में आसानी से देखी जा सकती है.
लोथार से सम्बन्धित एक मजेदार बात यहां इस कहानी को लेकर बांटना चाहूंगा. अपने प्रथम प्रकाशन में लोथार वही पुरानी ड्रेस, यानि चीते की खाल, निकर और टोपी में नजर आता है. लेकिन बाद के अंक में पुराने चित्रों में ही सुधार करते हुए लोथार को टी-शर्ट और फ़ुल पैंट पहनाकर स्मार्ट बनाया गया. संलग्न चित्रों में आप इन बदलावों को स्पष्ट देख सकते हैं.
१९७१ अंक | १९८५ अंक |
![]() | ![]() |
![]() | ![]() |
.