बड़े से आंगन के एक कोने में बने हुए छोटे और पुराने दरवाजे से ललित ने तेजी से दौड़ते हुए प्रवेश किया. उसकी सांस फ़ूली हुई थी जिसमें इस तेज दौड़ का कम और उस उत्तेजना का ज्यादा हाथ मालूम होता था जो एक बड़ी ख़बर अपने साथ लाने की वजह से पैदा हुई थी.
अखिल! अखिल! मित्र को पुकारते हुए ललित के स्वर में अधीरता साफ़ झलक रही थी.
अखिल उस वक्त अपने घर के बाहर वाले कमरे में बैठा किसी बाल पत्रिका के 'चित्र में रंग भरो' स्तम्भ में अपनी कला की बारीकियाँ उभारने में तल्लीन था. मित्र की आवाज सुनते ही किसी चिर-अपेक्षित समाचार की कल्पना कर तुरन्त उठ खड़ा हुआ. ललित अब तक उसके घर में प्रवेश कर चुका था.
दोनों मित्रों की नजरें मिलीं. ललित के चेहरे पर एक गर्वीली और विजयी मुस्कान ने स्थान पाया. "आ गयी"
"सच? कहाँ देखी?" पूरी तरह यकीन करने से पहले अखिल अभी भी ख़बर की ठीक से पड़ताल कर लेना चाहता था.
सरिता के यहाँ.
"तो फ़िर चलो." दोनों मित्र तुरन्त ही फ़िर बाहर की ओर लपक लिये.
सरिता पुस्तक भण्डार के स्टॉल पर एक नयी पत्रिका "इन्द्रजाल कॉमिक्स" का प्रथम अंक एक सुतली और क्लिप की मदद से लटक रहा था. दोनों अल्पवय बालक, जिनकी उम्र अभी दूसरे दशक मे प्रविष्ट होने की ओर अग्रसर ही थी, उस अंक को अपलक निहार रहे थे. नयी पत्रिका के आवरण पृष्ठ पर एक शानदार श्वेत अश्व पर दृढ़तापूर्वक सुशोभित उस सवार के चित्र में कुछ ऐसा विशेष आकर्षण था जो इन बालकों को वहाँ खींच लाया था. इन्द्रधनुषी रंगों की छठा बिखेरते उस चित्र ने मार्च १९६४ के बसन्त में इन बालकों के लिये एक नया ही रंग भर दिया था.
समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में कुछ समय पहले से इस नये* चरित्र की कहानियाँ भारत में पहली बार पुस्तकाकार में छपने की घोषणा होने लगी थी, और तभी से देश के असंख्य बच्चों (और बड़ों) में वेताल के प्रति कौतूहलमिश्रित उत्साह आकार लेने लगा था. आखिर विश्व के अनेक देशों में प्रकाशित होने वाले इन कॉमिक्स को पहली बार अपनी स्वयं की भाषा में पढ़ने का अवसर जो मिलने वाला था. ऐसा क्या था इन कहानियों में जो दुनिया भर के बच्चों और बड़ों को एक समान रूप से अपने मोहपाश में बांधे हुए था?
६० नये पैसे कीमत का यह अंक खरीद लिया गया. दोनों बाल मित्रों की प्रतीक्षा का अंत हुआ. लेकिन प्रारम्भ हो चुका था एक ऐसा सिलसिला जो आने वाले अगले कई वर्षों तक अपने रोमांचक जादुई संसार में इन मुग्ध बालकों को जकड़े रहने वाला था.
अखिल और ललित का यह किस्सा कोई कल्पना की उपज नहीं है बल्कि मेरे बड़े भाईसाहब द्वारा कई बार सुनाई हुई आपबीती है. इन दोनों बालकों में से एक वे स्वयं हैं.
अमेरिका में १९३० की महामंदी के दौर में ऐसे कई कॉमिक चरित्र गढ़े गये (मसलन वेताल, मैण्ड्रेक, सुपरमैन फ़्लैश गोर्डन आदि) जो लम्बे समय तक मशहूर रहे और कुछ तो आज भी छ्प रहे हैं. शायद समस्याओं के बोझ से दबी जनता के मानस को यह चरित्र कुछ ढांढस बंधाते होंगे और कहीं ये रूमानी कहानियाँ एक नवीन आशा का संचार करती होंगी. तुलना यदि भारत से करें तो १९६२ के युद्ध में चीन के हाथों बुरी गत होने और उससे उपजी देशव्यापी निराशा से उबारने में इन्द्रजाल का क्या रोल रहा हो सकता है?
* वेताल कॉमिक चरित्र का जन्म तो १९३६ में हो चुका था लेकिन भारत में हिन्दी पाठकों के लिये ये नया ही चरित्र था.
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इन्द्रजाल कॉमिक्स अंक - ००१ "वेताल की मेखला" (मार्च १९६४)
श्रंखला के पहले अंक के लिये टाइम्स ऑफ़ इन्डिया ने एक सही अर्थों में क्लासिक वेताल कथा को चुना. यह कहानी १९५४ में पहली बार एक सण्डे स्ट्रिप के रूप में प्रकाशित हुई थी और वेताल के रहस्यमय संसार का अंदाजा देती है. वेताल परम्परा में कुछ प्रतीकों का इस कहानी में बड़े जबरदस्त अंदाज में प्रयोग किया गया है.
कहानी
बुराई और अन्याय के विरुद्ध वेताल की लड़ाई एक पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलने वाला संघर्ष है. जब कभी कोई एक वेताल इस युद्ध में हताहत होता है तो उसका बेटा उसका स्थान ले लेता है और इस प्रकार लड़ाई निरन्तर जारी रहती है. आज का वेताल इस परम्परा में इक्कीसवें क्रम का है.
वर्ष का वो दिन जिस दिन वर्तमान वेताल के पिता की मृत्य हुई थी, आज भी उसे शोक से भर देता है. यह दस वर्ष पूर्व की घटना है जब क्रूर सिंगा डाकुओं से मुठभेड़ में २०वें वेताल ने डाकुओं के पूरे बेड़े को नष्ट कर दिया था, लेकिन वापिस लौटते समय एक विश्वासघाती हमलावर ने उसे धोखे से मार दिया था. वही हत्यारा २०वें वेताल की पिस्तौलें और बेल्ट भी अपने साथ ले गया था. वर्तमान वेताल के मन में इस बात की बड़ी कसक है कि वह अपने पिता के हत्यारे का पता नहीं लगा सका और पिता की यादगार बेल्ट और पिस्तौलों को उनके उचित सम्मानजनक स्थान तक नहीं पहुंचा सका.
जंगल के किनारे बसे शहर डेंकाली में एक खोजी क्लब है जहाँ अनेक सदस्यगण एकत्र होते हैं और अपनी पुरानी खोज यात्राओं का विवरण सुनाकर पुरानी यादें ताज़ा करते हैं. एक शाम क्लब में कैल्डर नामक एक सदस्य एक ऐसा ही किस्सा सुनाता है जब समुद्री तूफ़ान की चपेट में उलझा उसका जहाज मजबूरी में कुख्यात 'गुलिक' द्वीप पर जा पहुंचा था. दो देशों के मध्य विवादित क्षेत्र बना हुआ 'गुलिक' एक ऐसा स्थान है जहाँ कोई सरकार नहीं है. इसी वजह से यह हर किस्म के अपराधियों की शरणस्थली बन चुका है. इन अपराधियों में भी 'रामा' नामक तस्कर सबसे ऊंची हैसियत रखता है और अन्य उचक्के उसे अपना सरदार मानते हैं.
रामा के अड्डे पर कैल्डर को एक अजीब सी चीज दिखाई देती है जो रामा ने किसी ट्रॉफ़ी की तरह एक शो-केस में सजाई हुई है. यह एक चौड़े पट्टे और खोपड़ी के निशान वाली बेल्ट है जिसके साथ दो होल्स्टर जुड़े हुए हैं. रामा कैल्डर के सामने शान बघेरते हुए कहता है कि यह उसके जीवन का सबसे बड़ा शिकार था जब उसने चलता-फ़िरता-प्रेत कहलाने वाले वेताल को अपने हाथों से मारा था.
कैल्डर के इस किस्से को खोजी क्लब का एक वेटर सुन लेता है और इस बारे में वेताल को सूचित करता है. वेताल अपने चिर-परिचित रहस्यपूर्ण अंदाज में (रात के अंधेरे में खिड़की के रास्ते) कैल्डर के घर पहुंचता है और स्वयं उससे इस घटना की तस्दीक करता है. इसके बाद वेताल (अपने भेड़िये शेरा के साथ) गुलिक द्वीप पर पहुंचता है.
कहानी में इस स्थान पर ली फ़ॉक ने शानदार तरीके से वेताल से सम्बन्धित एक मिथक का समावेश किया है. गुलिक वासियों का एक पुराना विश्वास है कि यदि कभी वेताल गुलिक द्वीप को नष्ट करने के लिये पहुंचेगा तो उस रोज़ आकाश में दो इन्द्रधनुष एक साथ बनते दिखाई देंगे. ये एक ऐसा ही अवसर है और लोग इस बात की चर्चा करते हैं कि क्या वो दिन आ गया है?
गुलिक द्वीप पर वेताल हर ओर बिखरी अव्यवस्था का नजारा करता है. एक गुन्डा वेताल को आम पर्यटक समझकर लूटने का प्रयास करता है और वेताल के घूंसे के एक वार से धराशायी होकर गिरता है. यह गुन्डा जब अपने आका रामा को इस शक्तिशाली पर्यटक के बारे में बताने के लिये पहुंचता है तो रामा उसके जबड़े पर खोपड़ी का निशान देखकर चौंक जाता है. ये तो वेताल का निशान है और वेताल को तो वह बहुत पहले खुद अपने हाथों से खत्म कर चुका है. उधर आकाश में दोहरा इन्द्रधनुष उसके डर को और बढ़ा रहा है. घबराहट में रामा अपने सभी साथियों को वेताल को गोली मारने का आदेश देता है. लेकिन उसके साथी रामा की इस हड़बड़ाहटपूर्ण मुद्रा से सशंकित हो उठते हैं. जिस वेताल को मारने के रौब में रामा ने इन अपराधियों के सरदार की पदवी हासिल की थी, आज वही एक बार फ़िर सामने आकर खड़ा हो गया है. तो क्या रामा आज तक झूठ बोलता रहा कि वो वेताल को खत्म कर चुका है?
रामा अपने गुर्गों के सामने एक बार फ़िर से अपनी झूठ-सच मिश्रित साहस कथा बखानता है, लेकिन वेताल अचानक वहाँ प्रकट होकर उसके साथियों के समक्ष यह राज खोल देता है कि रामा दरअसल दोनों ओर से डबल-क्रॉस करने वाला विश्वासघाती है और वही इन लोगों के विनाश के लिये भी परोक्ष रूप से जिम्मेदार है. इस रहस्योदघाटन से हत्प्रभ सभी अपराधी रामा के खून के प्यासे हो उठते हैं. लेकिन तभी अचानक छत के रास्ते से रामा के वफ़ादार दो गुन्डे गोलियाँ दागते हुए दाखिल होते हैं. वेताल को वहाँ से निकलना पड़ता है.
पूरे गुलिक द्वीप पर अफ़रा-तफ़री का माहौल बन जाता है. रामा के लिये स्थिति बड़ी जटिल है. एक ओर वेताल है तो दूसरी ओर उसके अपने साथी जो अब उसके दुश्मन बन गये हैं. बचने का कोई रास्ता ना देखकर रामा एक खतरनाक निर्णय लेता है. वह पूरे द्वीप को उन बमों से उड़ा देना तय करता है जो ऐसी ही किसी स्थिति में इस्तेमाल करने के लिये उसने पूरे द्वीप पर बिछा रखे थे. उसका सोचना है कि अगर वह जीवित नहीं बचेगा तो और किसी को भी जीवित नहीं रहने देगा. द्वीप पर विस्फ़ोटों की श्रंखला प्रारम्भ हो जाती है. अंततः समूचा द्वीप नष्ट हो जाता है.
समुद्र से गुजरता हुआ एक नेवल शिप, गुलिक द्वीप पर इन विस्फ़ोटों को देखकर वहाँ पहुंचता है
और कुछ लोगों को बचा लेता है. रामा के अड्डे पर अवशेषों के मध्य वेताल को अपने पिता की बेल्ट और पिस्तौलें मिल जाती हैं जिन्हें लेकर वह बीहड़ बन की ओर वापिस लौटता है, दिल में इस बात का सुकून साथ लेकर कि आखिरकार उसके पिता के धोखेबाज़ हत्यारे को अपने किये की उचित सजा मिल ही गयी.
कथा - ली फ़ॉक
चित्र - विल्सन मकॉय
प्रथम प्रकाशन - एक सण्डे स्ट्रिप (S037) के रूप में, ०७ फ़रवरी १९५४ से ०६ जून १९५४ तक |
छुट-पुट
१. जब फ़ॉक और मकॉय ने इस स्ट्रिप पर काम करना शुरू किया था तो उनके सामने डेडलाइन की कुछ समस्या थी, यानि समय पर स्ट्रिप समाचार पत्रों में देने में वे थोड़े पिछड़ रहे थे. इस स्ट्रिप के दौरान ही इन लोगों ने अगली सण्डे और डेली स्ट्रिप्स पर काम लगभग समाप्त कर लिया. अब मौका था कि इस कहानी को जल्दी समाप्त कर डेडलाइन की तलवार से मुक्ति पायी जा सके. फ़ॉक ने मकॉय से कहा कि वे इस कहानी को तेजी से समाप्त करना चाहते हैं और इसके लिये कथानक में कुछ बदलाव चाहते हैं. जो मूल कहानी फ़ॉक ने लिखी थी उसमें वेताल के भेड़िये शेरा की एक मुख्य भूमिका होनी थी. शेरा वेताल के साथ ही गुलिक द्वीप पर पहुंचा था और उसे वेताल को बदमाशों से बचाने में अहम रोल निभाना था. लेकिन जल्दी कहानी खत्म करने के लिये बेचारे शेरा के रोल पर कैंची चला दी गयी. कहानी को यूं मोड़ दिया गया कि चूंकि द्वीप पर सभी बदमाश एक कुत्ते वाले आदमी को खोज रहे हैं, इसलिये परेशानी से बचने के लिये वेताल अकेले ही काम करने का निर्णय लेता है और शेरा को शांत रहने के निर्देश के साथ छोड़ देता है. मजे की बात यह है कि बाद में मकॉय शेरा को वापिस कहानी में लाना भूल ही गये. बाद में इसका ध्यान आने पर उन्होंने दो पैनल्स में शेरा को अलग से जोड़ा, और ये साफ़ नजर भी आता है.
२. ली फ़ॉक ने अपने बहुत बाद के एक साक्षात्कार में कहा कि उन्हें इस बात का पछतावा हुआ था कि इस कहानी में उन्होंने गुलिक द्वीप को बम विस्फ़ोटों से नष्ट किया बतला दिया, अन्यथा यह द्वीप कुछ और रोचक वेताल कथानकों का हिस्सा बन सकता था.
३. यह कहानी इस मायने में भी अनूठी कही जा सकती है कि इसमें एक वेताल (२०वें वेताल) की मृत्यु का बारीकी से वर्णन है. आम तौर पर ऐसे घटनाक्रम का जिक्र वेताल कहानियों में कम ही आता है, और यदि आता भी है तो बड़ी सरसरी तौर पर.
४. दोहरे इन्द्रधनुष का विचार इस कहानी का एक मुख्य अंग है. वेताल के रहस्यलोक से जुड़े अनेक मिथकों में से एक इस अंधविश्वासपूर्ण मिथक का प्रयोग पाठक के मन में एक झुरझुरी पैदा करता है. फ़ॉक ने बाद में बताया कि यह उनका अपना सृजन नहीं था बल्कि बहुत पहले उन्होंने ऐसा ही कुछ एक युद्ध कथा में कहीं पढ़ा था और वहाँ से इस विचार को गृहण किया था.
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विशेष आभार - बिनय, अजय मिश्रा एवम आईसीसी पोस्ट में प्रयुक्त चित्रों के लिये.
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