Wednesday, January 21, 2009

रहस्यमय वेताल प्रदेश की जातियाँ और कबीले

डेंकाली के हजार मील तक फ़ैले विशाल जंगल में अनेक इन्सानी जातियाँ निवास करती हैं. प्रथम वेताल की प्राण-रक्षा करनेवाले और फ़िर उसकी मदद से वसाका हमलावरों को खदेड़ने में सफ़ल होने वाले बांडार बौनों के अलावा और कोई इस बात से परिचित नहीं है कि वेताल भी असल में एक आम इन्सान है और वह एक पारिवारिक परम्परा के तहत दुनिया भर में बुराई के खिलाफ़ संघर्ष करता है. बाकी जातियों का केवल यही विश्वास है कि वेताल अमर है.

जंगल में प्रथम वेताल के आगमन से पूर्व यहाँ के सभी कबीले आपस में निरन्तर संघर्ष करते रहते थे. वेताल के कई पूर्वजों के लगातार प्रयासों का नतीजा है कि अब यहां शांति स्थापित है. हालांकि जंगल के अधिकांश कबीले वेताल के साथ मित्रवत आचरण करते हैं लेकिन कुछ कबीले अभी भी अपने सदियों पुराने स्वरूप को बनाये हुए हैं और जंगल के नियमों पर चलने में ही विश्वास करते हैं.

वेताल प्रदेश में निवास करने वाली कुछ प्रमुख जातियाँ हैं:

१. बांडार बौने - बौने बांडार घने जंगल के बीचों-बीच बीहड़बन (Deep Woods) में निवास करते हैं और वेताल के सबसे घनिष्ठ सहयोगी हैं. वेताल के रहस्य को जानने वाले ये अकेले हैं और बीहड़बन की रक्षा करना इनकी जिम्मेदारी है. ये लोग अपने जहर बुझे तीरों के कारण अन्य सभी जातियों के लिये भी भय का कारण हैं. इनके होते कोई बाहरी व्यक्ति बीहड़बन तक पहुचने की सोच भी नहीं सकता. इनका मुखिया गुर्रन है जो वर्तमान वेताल का बचपन का मित्र है.
२. वाम्बेसी - जंगल की दो सबसे बड़ी जातियों में से एक. ये लोग मुख्यतः खेती-किसानी पर निर्भर करते हैं और वेताल को अपना मित्र मानते हैं. वाम्बेसी जंगल की सबसे धनी जाति है.
३. लोंगो - जंगल की दूसरी बड़ी जाति. वाम्बेसियों से इनकी नहीं बनती पर 'वेताल शांति संधि' के अनुसार ही चलते हैं. इनके जीवन-यापन का मुख्य स्त्रोत पशु-पालन है. पूरे जंगल में लोगों जाति सर्वाधिक भाग्यशाली मानी जाती है.
४. मोरी - मोरी मछुआरों की बस्ती समुद्र तट पर बसी हुई है. ये समुद्र से मछलीयाँ पकड़ते हैं. वेताल के मित्र द्वीप पर पलने वाले शेरों और बाघों के लिये मछलियां पहुंचाने की जिम्मेदारी इनकी ही है.
५. ऊँगान - फ़ुसफ़ुसाते कुंज (Whispering Grove) के पास के जंगल में निवास करने वाले ये लोग उंचे दर्जे के कलाकार हैं. ऊँगान लोग लकड़ी से कमाल की कलाकृतियाँ गढ़ने में माहिर हैं. खेलों में भी ये लोग आगे रहते हैं. जंगल ओलम्पिक का चैम्पियन अक्सर इसी कबीले से होता है.

वहीं कुछ हिंसक और लड़ाकू जातियाँ भी हैं जो गाहे-बगाहे अन्य जातियों के लिये परेशानी का सबब बनती रही हैं. ये हैं:

१. तिरांगी - सबसे खतरनाक जातियों में पहला नाम आता है तिरांगी का. पहाड़ी ढलानों पर रहने वाले ये लोग वेताल शांति में विश्वास नहीं करते थे. खून-ख़राबा और हिंसा ही इनकी पहचान होती थी. सिरों के शिकारी के तौर पर कुख्यात तिरांगी नरभक्षी भी थे लेकिन वेताल ने ये सब बंद कराया. (इनसे मिलेंगे अंक १८८ 'तिरांगी के नरभक्षक' में)

२. मसाऊ - घने जंगल के बीचों-बीच निवास करने वाले मसाऊ लोग बेहद खतरनाक और कुटिल हैं. ये अक्सर अन्य जातियों को मूर्ख बनाकर उनसे सामान आदि लूटते रहते हैं. बिना किसी हिचकिचाहट के किसी की भी जान ले लेना इनके लिये बेहद आसान काम है. बाकी जंगलवाले इनसे घबराते हैं और दूरी बनाये रखते हैं. (इनसे मिलेंगे अंक ००७ 'नरभक्षी वृक्ष' में)

इनके अलावा और भी कुछ जातियाँ हैं जिनका जिक्र आता रहता है. इनसे मुलाकात होती रहेगी. लेकिन आज बस इतना ही.

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Sunday, January 18, 2009

"रेगिस्तानी लुटेरे" - जासूस रिप किर्बी की एक रोचक कहानी - १९८२ से एक इन्द्रजाल कॉमिक्स

इन्द्रजाल कॉमिक्स के पुराने पाठकों को शायद निजी जासूस रिप किर्बी की याद होगी. सम्भ्रान्त और कुलीन नजर आने वाले ये तेज दिमाग शख्स हमेशा आँखों पर मोटे फ़्रेम का चश्मा और हाथों में एक लम्बे से पाइप के साथ नजर आते थे. साथ ही मौजूद होता था इनका सहायक डेसमण्ड (जो इनका खानसामा भी होता था). डेसमण्ड कभी ऊंचे दर्जे का चोर रह चुका था और हाथ की सफ़ाई में बेहद माहिर था, हालांकि इन बुरी आदतों को वह किर्बी साहब की सोहबत में आने पर कभी का छोड़ चुका था.


जॉन प्रेंटिस
रिप किर्बी चरित्र की कल्पना १९४६ में किंग फ़ीचर्स सिंडीकेट के संपादक वार्ड ग्रीन ने की थी. उन्होंने उस वक्त के ख्याति प्राप्त कॉमिक रचनाकार एलेक्स रेमण्ड (फ़्लैश गोर्डन फ़ेम) को अपना विचार बताया. दोनों ने मिलकर  इस चरित्र को वास्तविकता में ढाला. मार्च १९४६ से प्रारम्भ हुई रिप किर्बी की यात्रा १९९९ तक जारी रही. कई कलाकारों ने इन कहानियों पर कार्य किया लेकिन इनमें प्रमुख तौर पर जॉन प्रेंटिस का नाम आता है जिन्होंने १९५६ में एलेक्स रेमण्ड की अचानक मौत के बाद से किर्बी की कहानियों के चित्रांकन का दायित्व संभाला और अंत तक वे ही इसे निभाते रहे. प्रेंटिस की स्टायल अपने आप में शानदार है. वे किरदारों के चेहरों को बड़ी बारीकी से उकेरते हैं.

तो आज पढ़ते हैं रिप किर्बी की एक इन्द्रजाल कॉमिक्स, "रेगिस्तानी लुटेरे". यह १९८२ का प्रकाशन है.


 डाउनलोड करें "रेगिस्तानी लुटेरे" - रिप किर्बी, वर्ष १९८२
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कॉमिक्स का आवरण चित्र: मेरे मित्र कॉमिक वर्ल्ड के सौजन्य से 

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Thursday, January 15, 2009

इंद्रजाल कॉमिक्स अंक-००२ "अन्यायी की सेना" (अप्रैल १९६४)

ली फ़ॉक ने वेताल के लिये एक बेहद रहस्यमय लोक की कल्पना की. जंगल की अनेक किंवदंतियाँ उसके इर्द-गिर्द रची गयी. इस चरित्र की लोकप्रियता में इन रोमाँचक जनश्रुतियों का बड़ा योगदान रहा है जो वेताल की कहानियों को अन्य शहरी पात्रों से अलग बनाती हैं. पात्र को एक वृहद आकार देने में बड़ी कमाल की बाजीगरी दिखाई गयी है और इसका असर तुरन्त होता है जब पाठक अपने आप को कथानक से बंधा हुआ महसूस करता है.


इन्द्रजाल का दूसरा अंक एक ऐसी ही कहानी लेकर आया. आइये आनन्द उठायें.



इन्द्रजाल कॉमिक्स अंक-२ "अन्यायी की सेना" (अप्रैल १९६४)

वेताल प्रदेश में मीलों तक फ़ैले घने जंगल के पूर्वी किनारे पर धुंध में डूबे रहने वाले ऊंचे पठारी इलाके (misty mountains) हैं जिनमें अभी भी मध्ययुगीन मानसिक संरचनाओं में जीने वाले राजा शासन करते हैं. ऊंचे पहाड़ों पर बने किलों में आधुनिक सुविधाओं से युक्त अपने महलों में इन बिगड़े नवाबों ने अपने आमोद-प्रमोद के सभी साधन जुटा रखे हैं.

इन अय्याश राजाओं और शहजादों में शहजादे ओर्क का स्थान सबसे ऊपर है. राजशाही से प्राप्त सत्ता के मद में चूर इस क्रूर, निर्दयी और परम स्वार्थी शहजादे ओर्क के मनोरंजन का एक मुख्य साधन है नजदीकी जंगल में जानवरों का आखेट करना. एक दिन ओर्क अपने सैनिकों के साथ अपने प्रिय शगल पर निकला होता है. जंगल में एक हिरण पर निशाना साधते  ओर्क के रास्ते में अचानक किसी नजदीकी कबीले का एक बालक यह कहकर आ जाता है कि  यह उसका पालतू हिरण है जिसे उसने बचपन से पाला है. शिकार में व्यवधान पड़ता देखकर ओर्क आगबबूला होकर अपने सैनिकों को उस बच्चे को बेंत से पीटने का आदेश देता है. किस्मत से वेताल उस स्थान के नजदीक ही होता है और वह उस बालक को ओर्क के चंगुल से मुक्त करवा देता है.

यह सब देखकर ओर्क का गुस्सा सातवें आसमान पर है और वह अपने सैनिकों से वेताल को पकड़ने को कहता है मगर सैनिक वेताल के बारे में जानते हैं और उसके आदेश की अवहेलना करते हुए शहजादे को वहाँ से निकल लेने की राय देते हैं. क्रोध में भरकर ओर्क स्वयं वेताल पर अपने हंटर से प्रहार करने का प्रयास करता है और जैसा कि होना ही था, बुरी तरह अपमानित होकर वहाँ से निकलने पर बाध्य होता है.
ओर्क वापिस अपने महल लौट आया है लेकिन जंगल में अपने सैनिकों के सामने एक नकाबपोश के हाथों हुए अपने अपमान को याद करके बुरी तरह तिलमिलाया हुआ है. किसी भी कीमत पर वेताल से बदला लेने पर आमादा ओर्क अपने सलाहकार से मशवरा कर राज्य के तीन खूंख्वार बदमाशों को इकठ्ठा करता है. ये तीनों छंटे हुए बदमाश हैं और पैसे के लिये कुछ भी करने के लिये तैयार हैं. इनमें शामिल हैं खतरनाक हत्यारा स्पाइक जो चाकू और बंदूक चलाने में उस्ताद है, ऊंची कद-काठी का बदमाश टिनी जो स्वयं अपने हाथों से ही किसी को भी मार सकता है, और तीसरा एक गाइड है जो जंगल की भली-भांति जानकारी रखता है. अपने विगत अपराधों की सजा-मुक्ति और बड़े इनाम के लालच में ये जंगल जाकर वेताल को पकड़ने के लिये तैयार हो जाते हैं.

तीनों हत्यारे घोड़ों पर सवार होकर जंगल पहुंचते हैं. मगर जंगल में वेताल से सम्बन्धित इतने सारे मिथक उनका इंतजार कर रहे हैं कि वे चकराकर रह जाते हैं. वेताल की तलाश में पूरे जंगल की खाक छानते फ़िर रहे तीनों बदमाशों को जंगल वासियों से पता चलता है कि वेताल गोरिल्ले को अपने हाथों से धराशायी कर देता है, शेरों को केवल एक भाले से खत्म कर सकता है, और कुछ कहते हैं कि वह बड़े-बड़े पेड़ों को अपनी भुजाओं से उखाड़ सकता है. एक कबीले वाला बताता है कि वेताल का निशाना इतना सटीक है कि वह जंगली सूअर के कान पर बैठी मक्खी को पिस्तौल से उड़ा सकता है, ऐसे कि सूअर को जरा भी चोट ना पहुचे.

तीनों भयभीत हो उठते हैं. और आगे बढ़ने पर एक अन्य अजीब बात सुनने को मिलती है. वेताल का रहस्यलोक और भी विस्मयकारी होकर उभरता है जब जंगलवासी बताते हैं कि वेताल एक साथ कई स्थानों पर देखा जा सकता है. इसी प्रकार की असम्भव बातों की श्रंखला में यह भी सुनने को मिलता है कि वेताल के घोड़े तूफ़ान के पंख हैं और वह उसपर उड़ान भरता है. पूरा जंगल वेताल के प्रति अनेक अंधविश्वासपूर्ण बातों से भरा पड़ा है.

आखिर वेताल रहता कहाँ है? जवाब मिलता है कि बीहड़बन में लेकिन साथ ही यह चेतावनी भी कि वहाँ जाना अपनी जान गंवाना है, क्योंकि पिग्मी बांडार बौने अपने अत्यन्त खतरनाक जहर बुझे तीरों के साथ घुसपैठियों का स्वागत करते हैं. इस जगह जाते तो बाकी जंगलवाले भी डरते हैं. यही होता है जब वे बीहड़बन के नजदीक पहूंचते हैं. बांडार उन्हें रोक लेते हैं और वेताल के कहने पर वहीं रुकने का आदेश देते हैं. बीहड़बन की सीमा पर डेरा डाले तीनों बदमाश वेताल के वहां पहूंचकर उनसे मिलने का इंतजार कर रहे हैं जब वेताल गुपचुप वहां पहुंचकर उनकी बातें सुनकर असलियत जान लेता है. आखिरकार बदमाशों की इच्छा पूरी होती दिखती है जब वेताल अकेला उनके सामने आता है. लेकिन अंत यह होता है कि तीनों बदमाश रस्सी से बांध कर अपने मालिक शहजादे ओर्क के महल की ओर रवाना कर दिये जाते हैं.
इधर ओर्क बेसब्री से इंतजार में है कि जंगल से कोई अच्छा समाचार आये. जंगल में वेताल के हाथों ओर्क के अपमान की खबर उसके पूरे राज्य में फ़ैल चुकी है और लोग पीठ पीछे उसका उपहास करने लगे हैं. जब ओर्क के तीनों किराये के हत्यारे भी अपने मिशन में असफ़ल रहकर वापिस फ़ेंक दिये जाते हैं तो प्रजा को अपने जिद्दी और सनकी शहजादे पर और भी हंसने का मौका मिल जाता है.



ओर्क की बौखलाहट की अब कोई सीमा नहीं. वह अपनी पूरी सेना को वेताल पर चढ़ाई करने का हुक्म दे देता है. सेना की तीन टुकड़ियों, इन्फ़ैन्ट्री (पैदल सेना), कैवेलरी (घुड़सवार सेना) और आर्टिलरी (तोपखाना) के पचास हजार सैनिक जंगल की ओर कूच करते हैं. जंगल वासी चिंतित हैं. इतनी बड़ी सेना का सामना अकेला वेताल शायद ना कर सके. वे अपनी ओर से प्रयास करने का प्रण करते हैं. मगर कैसे?
गहन जंगल में मार्गदर्शन के लिये सेना को पथप्रदर्शकों की आवश्यकता है. कुछ कबीले वाले अपने आप को इस कार्य के लिये प्रस्तुत करते हैं. इनका उद्देश्य है कि सेना को गलत मार्ग पर ले जाकर भटका दिया जाये. ठीक यही होता है जब एक टुकड़ी नदी की तेज धार में उलझ जाती है तो दूसरी दलदल में फ़ंस जाती है. एक अन्य टुकड़ी को मच्छरों से भरे प्रदेश में पहुंचा दिया जाता है. मच्छरों की परेशानी से रात भर अनिद्रा ग्रस्त सेना को दूसरे कहर का सामना करना पड़ता है जब मधुमक्खियाँ उनपर आक्रमण कर देती हैं.

ओर्क के सैनिक अब और सहने को तैयार नहीं हैं. एक अकेले इंसान को पकड़ने के लिये पूरी सेना भेजने के ओर्क के इस पागलपन के खिलाफ़ वे विद्रोह पर उतारू हो जाते हैं. सेना के जनरल्स भी ओर्क की आज्ञापालन करने से इंकार कर देते हैं. आखिरकार ओर्क को गद्दी से उतार फ़ेंका जाता है और राज्य में लोकतन्त्र का आगमन हो जाता है जब प्रजा अपने नेता का चुनाव करने का अधिकार पा लेती है.

इस सब में जंगलवासियों का सहयोग ही मुख्य कारण रहा होता है जिनके लिये वेताल उन्हें धन्यवाद देता है. आखिर एक भी गोली चलाये बिना एक पूरा युद्ध जीत लिया गया है. कम ही लोग हैं जो वास्तविकता से वाकिफ़ हैं. अधिकाँश के लिये तो वेताल से जुड़ी एक और नयी किंवदंती जन्म ले लेती है. जंगल में आग के किनारे गोल बांधकर कहानियाँ सुनाने वाले किस्सागो बढ़ा-चढ़ा कर सुनाते हैं कि कैसे वेताल ने अकेले दम पर पचास हजार सैनिकों की पूरी सेना को शिकस्त दे दी. ऐसा महान है वेताल.



कहानी - ली फ़ॉक
चित्र - विल्सन मकॉय
प्रथम प्रकाशन - सण्डे स्ट्रिप S048 "A Lesson for Prince Ork" (१४ अप्रैल १९५७ से १८ अगस्त १९५७ तक)

१. यह कहानी इन्द्रजाल कॉमिक्स में एक बार फ़िर प्रकाशित हुई सन १९८९ में (V26N39).
२. चित्रों के लिये बिनय, अजय, जोशुआ और आईसीसी का आभार.

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Wednesday, January 7, 2009

वेताल की मेखला (इन्द्रजाल कॉमिक्स अंक - ००१, मार्च १९६४)

बड़े से आंगन के एक कोने में बने हुए छोटे और पुराने दरवाजे से ललित ने तेजी से दौड़ते हुए प्रवेश किया. उसकी सांस फ़ूली हुई थी जिसमें इस तेज दौड़ का कम और उस उत्तेजना का ज्यादा हाथ मालूम होता था जो एक बड़ी ख़बर अपने साथ लाने की वजह से पैदा हुई थी.

अखिल! अखिल! मित्र को पुकारते हुए ललित के स्वर में अधीरता साफ़ झलक रही थी.

अखिल उस वक्त अपने घर के बाहर वाले कमरे में बैठा किसी बाल पत्रिका के 'चित्र में रंग भरो' स्तम्भ में अपनी कला की बारीकियाँ उभारने में तल्लीन था. मित्र की आवाज सुनते ही किसी चिर-अपेक्षित समाचार की कल्पना कर तुरन्त उठ खड़ा हुआ. ललित अब तक उसके घर में प्रवेश कर चुका था.

दोनों मित्रों की नजरें मिलीं. ललित के चेहरे पर एक गर्वीली और विजयी मुस्कान ने स्थान पाया. "आ गयी"

"सच? कहाँ देखी?" पूरी तरह यकीन करने से पहले अखिल अभी भी ख़बर की ठीक से पड़ताल कर लेना चाहता था.

सरिता के यहाँ.

"तो फ़िर चलो." दोनों मित्र तुरन्त ही फ़िर बाहर की ओर लपक लिये.

सरिता पुस्तक भण्डार के स्टॉल पर एक नयी पत्रिका "इन्द्रजाल कॉमिक्स" का प्रथम अंक एक सुतली और क्लिप की मदद से लटक रहा था. दोनों अल्पवय बालक, जिनकी उम्र अभी दूसरे दशक मे प्रविष्ट होने की ओर अग्रसर ही थी, उस अंक को अपलक निहार रहे थे. नयी पत्रिका के आवरण पृष्ठ पर एक शानदार श्वेत अश्व पर दृढ़तापूर्वक सुशोभित उस सवार के चित्र में कुछ ऐसा विशेष आकर्षण था जो इन बालकों को वहाँ खींच लाया था. इन्द्रधनुषी रंगों की छठा बिखेरते उस चित्र ने मार्च १९६४ के बसन्त में इन बालकों के लिये एक नया ही रंग भर दिया था.

समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में कुछ समय पहले से इस नये* चरित्र की कहानियाँ भारत में पहली बार पुस्तकाकार में छपने की घोषणा होने लगी थी, और तभी से देश के असंख्य बच्चों (और बड़ों) में वेताल के प्रति कौतूहलमिश्रित उत्साह आकार लेने लगा था. आखिर विश्व के अनेक देशों में प्रकाशित होने वाले इन कॉमिक्स को पहली बार अपनी स्वयं की भाषा में पढ़ने का अवसर जो मिलने वाला था. ऐसा क्या था इन कहानियों में जो दुनिया भर के बच्चों और बड़ों को एक समान रूप से अपने मोहपाश में बांधे हुए था?

६० नये पैसे कीमत का यह अंक खरीद लिया गया. दोनों बाल मित्रों की प्रतीक्षा का अंत हुआ. लेकिन प्रारम्भ हो चुका था एक ऐसा सिलसिला जो आने वाले अगले कई वर्षों तक अपने रोमांचक जादुई संसार में इन मुग्ध बालकों को जकड़े रहने वाला था.

अखिल और ललित का यह किस्सा कोई कल्पना की उपज नहीं है बल्कि मेरे बड़े भाईसाहब द्वारा कई बार सुनाई हुई आपबीती है. इन दोनों बालकों में से एक वे स्वयं हैं.

अमेरिका में १९३० की महामंदी के दौर में ऐसे कई कॉमिक चरित्र गढ़े गये (मसलन वेताल, मैण्ड्रेक, सुपरमैन फ़्लैश गोर्डन आदि) जो लम्बे समय तक मशहूर रहे और कुछ तो आज भी छ्प रहे हैं. शायद समस्याओं के बोझ से दबी जनता के मानस को यह चरित्र कुछ ढांढस बंधाते होंगे और कहीं ये रूमानी कहानियाँ एक नवीन आशा का संचार करती होंगी. तुलना यदि भारत से करें तो १९६२ के युद्ध में चीन के हाथों बुरी गत होने और उससे उपजी देशव्यापी निराशा से उबारने में इन्द्रजाल का क्या रोल रहा हो सकता है?

* वेताल कॉमिक चरित्र का जन्म तो १९३६ में हो चुका था लेकिन भारत में हिन्दी पाठकों के लिये ये नया ही चरित्र था.
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इन्द्रजाल कॉमिक्स अंक - ००१ "वेताल की मेखला" (मार्च १९६४)

श्रंखला के पहले अंक के लिये टाइम्स ऑफ़ इन्डिया ने एक सही अर्थों में क्लासिक वेताल कथा को चुना. यह कहानी १९५४ में पहली बार एक सण्डे स्ट्रिप के रूप में प्रकाशित हुई थी और वेताल के रहस्यमय संसार का अंदाजा देती है. वेताल परम्परा में कुछ प्रतीकों का इस कहानी में बड़े जबरदस्त अंदाज में प्रयोग किया गया है.

कहानी

बुराई और अन्याय के विरुद्ध वेताल की लड़ाई एक पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलने वाला संघर्ष है. जब कभी कोई एक वेताल इस युद्ध में हताहत होता है तो उसका बेटा उसका स्थान ले लेता है और इस प्रकार लड़ाई निरन्तर जारी रहती है. आज का वेताल इस परम्परा में इक्कीसवें क्रम का है.

वर्ष का वो दिन जिस दिन वर्तमान वेताल के पिता की मृत्य हुई थी, आज भी उसे शोक से भर देता है. यह दस वर्ष पूर्व की घटना है जब क्रूर सिंगा डाकुओं से मुठभेड़ में २०वें वेताल ने डाकुओं के पूरे बेड़े को नष्ट कर दिया था, लेकिन वापिस लौटते समय एक विश्वासघाती हमलावर ने उसे धोखे से मार दिया था. वही हत्यारा २०वें वेताल की पिस्तौलें और बेल्ट भी अपने साथ ले गया था. वर्तमान वेताल के मन में इस बात की बड़ी कसक है कि वह अपने पिता के हत्यारे का पता नहीं लगा सका और पिता की यादगार बेल्ट और पिस्तौलों को उनके उचित सम्मानजनक स्थान तक नहीं पहुंचा सका.

जंगल के किनारे बसे शहर डेंकाली में एक खोजी क्लब है जहाँ अनेक सदस्यगण एकत्र होते हैं और अपनी पुरानी खोज यात्राओं का विवरण सुनाकर पुरानी यादें ताज़ा करते हैं. एक शाम क्लब में कैल्डर नामक एक सदस्य एक ऐसा ही किस्सा सुनाता है जब समुद्री तूफ़ान की चपेट में उलझा उसका जहाज मजबूरी में कुख्यात 'गुलिक' द्वीप पर जा पहुंचा था. दो देशों के मध्य विवादित क्षेत्र बना हुआ 'गुलिक' एक ऐसा स्थान है जहाँ कोई सरकार नहीं है. इसी वजह से यह हर किस्म के अपराधियों की शरणस्थली बन चुका है. इन अपराधियों में भी 'रामा' नामक तस्कर सबसे ऊंची हैसियत रखता है और अन्य उचक्के उसे अपना सरदार मानते हैं.

रामा के अड्डे पर कैल्डर को एक अजीब सी चीज दिखाई देती है जो रामा ने किसी ट्रॉफ़ी की तरह एक शो-केस में सजाई हुई है. यह एक चौड़े पट्टे और खोपड़ी के निशान वाली बेल्ट है जिसके साथ दो होल्स्टर जुड़े हुए हैं. रामा कैल्डर के सामने शान बघेरते हुए कहता है कि यह उसके जीवन का सबसे बड़ा शिकार था जब उसने चलता-फ़िरता-प्रेत कहलाने वाले वेताल को अपने हाथों से मारा था.

कैल्डर के इस किस्से को खोजी क्लब का एक वेटर सुन लेता है और इस बारे में वेताल को सूचित करता है. वेताल अपने चिर-परिचित रहस्यपूर्ण अंदाज में (रात के अंधेरे में खिड़की के रास्ते) कैल्डर के घर पहुंचता है और स्वयं उससे इस घटना की तस्दीक करता है. इसके बाद वेताल (अपने भेड़िये शेरा के साथ) गुलिक द्वीप पर पहुंचता है.

कहानी में इस स्थान पर ली फ़ॉक ने शानदार तरीके से वेताल से सम्बन्धित एक मिथक का समावेश किया है. गुलिक वासियों का एक पुराना विश्वास है कि यदि कभी वेताल गुलिक द्वीप को नष्ट करने के लिये पहुंचेगा तो उस रोज़ आकाश में दो इन्द्रधनुष एक साथ बनते दिखाई देंगे. ये एक ऐसा ही अवसर है और लोग इस बात की चर्चा करते हैं कि क्या वो दिन आ गया है?

गुलिक द्वीप पर वेताल हर ओर बिखरी अव्यवस्था का नजारा करता है. एक गुन्डा वेताल को आम पर्यटक समझकर लूटने का प्रयास करता है और वेताल के घूंसे के एक वार से धराशायी होकर गिरता है. यह गुन्डा जब अपने आका रामा को इस शक्तिशाली पर्यटक के बारे में बताने के लिये पहुंचता है तो रामा उसके जबड़े पर खोपड़ी का निशान देखकर चौंक जाता है. ये तो वेताल का निशान है और वेताल को तो वह बहुत पहले खुद अपने हाथों से खत्म कर चुका है. उधर आकाश में दोहरा इन्द्रधनुष उसके डर को और बढ़ा रहा है. घबराहट में रामा अपने सभी साथियों को वेताल को गोली मारने का आदेश देता है. लेकिन उसके साथी रामा की इस हड़बड़ाहटपूर्ण मुद्रा से सशंकित हो उठते हैं. जिस वेताल को मारने के रौब में रामा ने इन अपराधियों के सरदार की पदवी हासिल की थी, आज वही एक बार फ़िर सामने आकर खड़ा हो गया है. तो क्या रामा आज तक झूठ बोलता रहा कि वो वेताल को खत्म कर चुका है?

रामा अपने गुर्गों के सामने एक बार फ़िर से अपनी झूठ-सच मिश्रित साहस कथा बखानता है, लेकिन वेताल अचानक वहाँ प्रकट होकर उसके साथियों के समक्ष यह राज खोल देता है कि रामा दरअसल दोनों ओर से डबल-क्रॉस करने वाला विश्वासघाती है और वही इन लोगों के विनाश के लिये भी परोक्ष रूप से जिम्मेदार है. इस रहस्योदघाटन से हत्प्रभ सभी अपराधी रामा के खून के प्यासे हो उठते हैं. लेकिन तभी अचानक छत के रास्ते से रामा के वफ़ादार दो गुन्डे गोलियाँ दागते हुए दाखिल होते हैं. वेताल को वहाँ से निकलना पड़ता है.

पूरे गुलिक द्वीप पर अफ़रा-तफ़री का माहौल बन जाता है. रामा के लिये स्थिति बड़ी जटिल है. एक ओर वेताल है तो दूसरी ओर उसके अपने साथी जो अब उसके दुश्मन बन गये हैं. बचने का कोई रास्ता ना देखकर रामा एक खतरनाक निर्णय लेता है. वह पूरे द्वीप को उन बमों से उड़ा देना तय करता है जो ऐसी ही किसी स्थिति में इस्तेमाल करने के लिये उसने पूरे द्वीप पर बिछा रखे थे. उसका सोचना है कि अगर वह जीवित नहीं बचेगा तो और किसी को भी जीवित नहीं रहने देगा. द्वीप पर विस्फ़ोटों की श्रंखला प्रारम्भ हो जाती है. अंततः समूचा द्वीप नष्ट हो जाता है.

समुद्र से गुजरता हुआ एक नेवल शिप, गुलिक द्वीप पर इन विस्फ़ोटों को देखकर वहाँ पहुंचता है
और कुछ लोगों को बचा लेता है. रामा के अड्डे पर अवशेषों के मध्य वेताल को अपने पिता की बेल्ट और पिस्तौलें मिल जाती हैं जिन्हें लेकर वह बीहड़ बन की ओर वापिस लौटता है, दिल में इस बात का सुकून साथ लेकर कि आखिरकार उसके पिता के धोखेबाज़ हत्यारे को अपने किये की उचित सजा मिल ही गयी.

कथा - ली फ़ॉक
चित्र - विल्सन मकॉय
प्रथम प्रकाशन - एक सण्डे स्ट्रिप (S037) के रूप में, ०७ फ़रवरी १९५४ से ०६ जून १९५४ तक



छुट-पुट

१. जब फ़ॉक और मकॉय ने इस स्ट्रिप पर काम करना शुरू किया था तो उनके सामने डेडलाइन की कुछ समस्या थी, यानि समय पर स्ट्रिप समाचार पत्रों में देने में वे थोड़े पिछड़ रहे थे. इस स्ट्रिप के दौरान ही इन लोगों ने अगली सण्डे और डेली स्ट्रिप्स पर काम लगभग समाप्त कर लिया. अब मौका था कि इस कहानी को जल्दी समाप्त कर डेडलाइन की तलवार से मुक्ति पायी जा सके. फ़ॉक ने मकॉय से कहा कि वे इस कहानी को तेजी से समाप्त करना चाहते हैं और इसके लिये कथानक में कुछ बदलाव चाहते हैं. जो मूल कहानी फ़ॉक ने लिखी थी उसमें वेताल के भेड़िये शेरा की एक मुख्य भूमिका होनी थी. शेरा वेताल के साथ ही गुलिक द्वीप पर पहुंचा था और उसे वेताल को बदमाशों से बचाने में अहम रोल निभाना था. लेकिन जल्दी कहानी खत्म करने के लिये बेचारे शेरा के रोल पर कैंची चला दी गयी. कहानी को यूं मोड़ दिया गया कि चूंकि द्वीप पर सभी बदमाश एक कुत्ते वाले आदमी को खोज रहे हैं, इसलिये परेशानी से बचने के लिये वेताल अकेले ही काम करने का निर्णय लेता है और शेरा को शांत रहने के निर्देश के साथ छोड़ देता है. मजे की बात यह है कि बाद में मकॉय शेरा को वापिस कहानी में लाना भूल ही गये. बाद में इसका ध्यान आने पर उन्होंने दो पैनल्स में शेरा को अलग से जोड़ा, और ये साफ़ नजर भी आता है.

२. ली फ़ॉक ने अपने बहुत बाद के एक साक्षात्कार में कहा कि उन्हें इस बात का पछतावा हुआ था कि इस कहानी में उन्होंने गुलिक द्वीप को बम विस्फ़ोटों से नष्ट किया बतला दिया, अन्यथा यह द्वीप कुछ और रोचक वेताल कथानकों का हिस्सा बन सकता था.

३. यह कहानी इस मायने में भी अनूठी कही जा सकती है कि इसमें एक वेताल (२०वें वेताल) की मृत्यु का बारीकी से वर्णन है. आम तौर पर ऐसे घटनाक्रम का जिक्र वेताल कहानियों में कम ही आता है, और यदि आता भी है तो बड़ी सरसरी तौर पर.

४. दोहरे इन्द्रधनुष का विचार इस कहानी का एक मुख्य अंग है. वेताल के रहस्यलोक से जुड़े अनेक मिथकों में से एक इस अंधविश्वासपूर्ण मिथक का प्रयोग पाठक के मन में एक झुरझुरी पैदा करता है. फ़ॉक ने बाद में बताया कि यह उनका अपना सृजन नहीं था बल्कि बहुत पहले उन्होंने ऐसा ही कुछ एक युद्ध कथा में कहीं पढ़ा था और वहाँ से इस विचार को गृहण किया था.
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विशेष आभार - बिनय, अजय मिश्रा एवम आईसीसी पोस्ट में प्रयुक्त चित्रों के लिये.

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