Tuesday, September 30, 2008

इंद्रजाल कॉमिक्स पात्र परिचय - वेताल (परम्परा का प्रारम्भ)

३ अगस्त, सन १४९२. स्पेन के एक छोटे से बंदरगाह पलोस् डे ला फ्रोंतेरा से क्रिस्टोफर कोलंबस का जहाजी बेडा नयी दुनिया (अमेरिका) की खोज में रवाना हुआ. तीन पोतों के इस बेडे़ में सबसे बड़ा जहाज था सांता मरिया. इस फ्लेगशिप पर मौजूद ४० नाविकों के दल में क्रिस्टोफर वॉकर नामक एक नौजवान केबिन बॉय भी शामिल था. (पूर्व में नाम बताया गया था क्रिस्टोफर स्टेनडिश). अपनी मेहनत और लगन से जल्द ही क्रिस्टोफर सभी कामों में दक्ष होता चला गया और निरंतर तरक्की करता गया.

१७ फरवरी, सन १५३६. एक व्यापारिक जहाज अपनी यात्रा के दौरान बंगाला की खाड़ी के पास से होकर गुजर रहा था. इस जहाज का कप्तान था क्रिस्टोफर वॉकर नामक वही नौजवान जो कभी कोलंबस के बेडे पर अपने जौहर दिखा चुका था और अब एक अनुभवी कप्तान के रूप में रिटायरमेंट से पहले अपनी अन्तिम यात्रा पर था. साथ में उसका बीस वर्षीय बेटा भी था. केबिन बॉय की जिम्मेदारी निभाने वाले इस कप्तान के इस बेटे का नाम भी क्रिस्टोफर वाकर (जूनियर) ही था.

खाडी के समीप समुद्री लुटेरों के एक गिरोह ने जहाज पर हमला कर दिया. नाविक बहादुरी से लड़े पर उनके लिए इस खतरनाक जलदस्यु गिरोह से निपट पाना असंभव था. अंत में एक विस्फोट में दोनों जहाज नष्ट हो गए. सर पर लगी किसी चोट की वजह से स्मृति लोप होने से पहले क्रिस्टोफर वाकर (जूनियर) ने जो अन्तिम दृश्य देखा, वह अपने पिता का लुटेरों के सरदार के हाथों मारा जाना था.

समुद्री लहरों के थपेड़ों ने क्रिस्टोफर को किनारे पर ला पटका. अफ्रीका के जंगलों में (दुनिया के कुछ अन्य हिस्सों में भी) पिग्मी लोगों की कुछ प्रजातियाँ पायी जाती हैं. ये लोग कद में काफी बौने होते हैं. इनमें से एक बांडार नामक जाति बंगाला की खाडी के पास घने जंगल में रहती थी. इन बौने बांदारों को वसाका नामक ऊंचे कद के लोगों ने गुलाम बनाया हुआ था और वे उनके साथ बड़ी बदसलूकी किया करते थे. इस अत्याचार की मार सहते बांदारों के मन में आशा की एकमात्र किरण थी कि उनकी धार्मिक पुस्तक में एक ऐसे मसीहा का जिक्र था जो समुद्र के रास्ते उन तक पहुच कर उन्हें गुलामी की जंजीरों से मुक्ति दिलाएगा. ऊंचे कद के नौजवान क्रिस्टोफर वाकर को समुद्र किनारे पड़ा देखकर वे उत्साह से भर गए और उसे वही मसीहा मान कर उसकी सेवा में जुट गए.



बौने बांदारों की अच्छी देखभाल से क्रिस्टोफर जल्दी ही पूर्ण स्वस्थ हो गया. एक दिन समुद्र के किनारे उसे एक जलदस्यु की लाश पडी दिखी जो उसके पिता के कपड़े पहने हुए था. यही उसके पिता का हत्यारा था. इस समुद्री डकैत की खोपड़ी को हाथ में लेकर क्रिस्टोफर वाकर ने शपथ ली कि वह अपनी पूरी जिन्दगी भय और अन्याय, अत्याचार और दमन के खिलाफ लगायेगा. उसकी आने वाली पीढियां भी इस परम्परा को जारी रखेंगी.

वाकर ने वसाका लोगों से बांदारों को मुक्त कराने का प्रयास किया. पहले प्रयास में सफलता नहीं मिली, पर बांदारों से उसे एक अत्यन्त विषैले जंगली फल की जानकारी मिली. उसने सभी बौनों को एकत्रित किया और उनके तीरों को इस विष में डुबोकर प्राणघातक बना दिया. इन जहर बुझे तीरों के रूप में नए हथियारों को पाकर बांदार बौनों ने वसाका आतताइयों को खदेड़ दिया.

घने जंगल के बीचों-बीच वाकर ने एक और भी ज्यादा बीहड़ प्रदेश की खोज की. इस दुर्गम जगह पर आने से बाकी जंगल वाले तक डरते थे. यहाँ एक प्रकृति निर्मित विशाल खोपड़ीनुमा गुफा थी जिसे वाकर ने दुरुस्त करके अपने रहने लायक बना लिया.

तो इस तरह प्रारम्भ हुआ अन्याय के खिलाफ पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलने वाला एक सतत संघर्ष. हमारा आज का वेताल इस परम्परा में २१वीं पीढ़ी का है.

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Monday, September 29, 2008

साँपों की देवी (भाग १) - एक शानदार वेताल कथा वर्ष १९८८ से

काफी लंबे अन्तराल के बाद आज मैं लेकर आया हूँ एक और वेताल कथा. ये इंद्रजाल कॉमिक्स के प्रकाशन के अन्तिम दिनों से है, यानी कि १९८८ से. कहानी दो भागों में है और आज इसका पहला भाग प्रस्तुत कर रहा हूँ.

घने जंगल में कई कबीले निवास करते हैं जो आपस में अविश्वास के माहौल में जीते हैं. अक्सर उनमें छोटी-मोटी तकरार होती रहती है जिसके कभी भी बड़ी लडाई में बदल जाने का अंदेशा बना रहता है. वेताल ने नियम बनाकर आपसी मतभेदों को बातचीत से सुलझाने का प्रावधान बनाया हुआ है जिसे वेताल शान्ति कहा जाता है लेकिन कभी कभी स्थिति इतनी गंभीर हो जाती है कि समूचे जंगल की शान्ति को खतरा पैदा हो जाता है.

कुछ ऐसी ही कहानी है प्रस्तुत कॉमिक्स में. कोई सौ वर्ष पूर्व जंगल में निवास करने वाले एक समृद्ध कबीले 'दोनैइ' के लोगों को बाकी जंगलवासियों ने ईर्ष्या के चलते रहस्यमय और खतरनाक दलदल की और धकेल दिया था. जंगलवासियों का ऐसा सोचना था कि दोनैइ लोग दलदल में धंस कर समाप्त हो गए. लेकिन असल में ऐसा हुआ नहीं. कुछ दोनैइ बचे रहे और उनके वंशज अब उस ज्यादती और अत्याचार का बदला लेने के लिए तैयार हैं. एक नायाब तरीके से वे अन्य कबीले वालों को आपस में लड़ाकर कमजोर करने का षड्यंत्र रचते हैं. वेताल के लिए इस रहस्य का पता लगाना और उसकी सच्चाई सामने लाना चुनौती भरा काम है. आगे आप ख़ुद पढ़िए.

इंद्रजाल कॉमिक्स V25N27 साँपों की देवी (भाग १) - वेताल कथा (वर्ष १९८८)
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Wednesday, September 3, 2008

पृथ्वी पर हुआ ब्रह्माण्ड भक्षियों का हमला (और उससे भी बढ़कर कुछ...) मैन्ड्रेक ने टाला संकट (इंद्रजाल कॉमिक्स से एक जबरदस्त कहानी)

[Update - 03/Sep/2008, 08:20 PM]
इस कॉमिक्स का डाउनलोड लिंक लगा दिया है ( कृपया इमेज थंबनेल्स के नीचे देखें). अब आप कॉमिक्स को अपने कंप्यूटर पर डाउनलोड करके भी पढ़ सकते हैं.

अरविन्द मिश्र जी ने पिछली पोस्ट में मैन्ड्रेक की मांग की थी. लीजिये एक और मैन्ड्रेक कथा का मजा लीजिये. इस बार की प्रस्तुति है वर्ष १९७९ से एक बेहद रोचक कथा "ब्रह्माण्ड भक्षी".

मैन्ड्रेक की कहानियो में विज्ञान गल्प का बड़ा ही मजेदार मिश्रण देखने को मिलता है, साथ ही कल्पना की ऊंची उड़ान भी. सम्राट मेगनान का दस लाख ग्रहों पर शासन है. वह और मैन्ड्रेक मित्र हैं और उन्हें एक-दूसरे की मदद की आवश्यकता पड़ती रहती है. तीस हजार प्रकाश वर्ष दूर स्थित एक गेलेक्सी में बसे इन लोगों का विज्ञान, धरती के विज्ञान से पचास हजार वर्ष आगे का है.

इस कहानी में मेग्नान शासित एक ग्रह पर अति विशालकाय जीव आक्रमण कर देते हैं. ये जीव पूरे ग्रह के खनिज पदार्थों को चूस कर उसे खोखला कर देने में सक्षम हैं. किसी तरह इन पर काबू पाया जाता है पर बड़ी मुश्किल तब आती है जब इनमें से कुछ जीव पृथ्वी की और रुख कर लेते हैं. पृथ्वी मेग्नान के साम्राज्य का अंग नहीं है लेकिन वह मैन्ड्रेक और उसके परिवार के लिए चिंतित होकर अपने एक केप्तेन नौर्क को पृथ्वी की रक्षा के लिए भेजता है.

होता यह है कि विशाल जीव तो पृथ्वी तक पहुँचने से पहले अपना रास्ता बदल लेते हैं और संकट अपने आप टल जाता है पर नौर्क ख़ुद एक समस्या बन जाता है. अपने अति आधुनिक हथियारों के बल पर वह पूरी पृथ्वी को जीत कर उसका शासक बन जाने का सपना देखने लगता है. चूंकि उसका विज्ञान (और हथियार) पृथ्वी से हजारों वर्ष आगे का है, संकट बड़ा रूप ले लेता है. आखिरकार मैन्ड्रेक उसे कैसे काबू करता है, ये आप पढिये.

इंद्रजाल कॉमिक्स न. ३३४ (वर्ष १९७९)

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