Sunday, March 21, 2010

राजकुमार को लेना पड़ा व्यक्तित्व निखार कोर्स (एक क्लासिक वेताल कथा १९८१ की इन्द्रजाल कॉमिक्स से)

अपनी लोकप्रियता के शिखर दिनों में (यानि गुजरी शताब्दी के छठवें और सातवें दशक में) वेताल और मैण्ड्रेक की कथाएँ विश्व के एक सैकड़ा से भी अधिक देशों के हजारों समाचार पत्रों का नियमित हिस्सा हुआ करती थीं. ये या तो समाचार पत्र की दैनिक पट्टिका के रूप में या फ़िर साप्ताहिक कॉलम के रूप में अपने चाहने वालों पाठकों के सामने आती थीं और उनकी दिनचर्या का एक अनिवार्य अंग बन चुकी थीं.

भारत में भी इन चरित्रों की लोकप्रियता अपनी चरम सीमा पर थी. वेताल यहां का सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला चरित्र बन चुका था और उसके नए कारनामों का सांस रोक कर इंतजार करने वालों की तादात अच्छी खासी होती थी. आखिर वेताल में ऐसा क्या जादू था जो सात-आठ साल के बच्चों से लेकर पचास पार तक के पाठकों तक सभी को सहज और समान रूप से अपनी ओर आकर्षित कर लेता था?

तमाम अन्य विशेषताओं के बीच जो एक चीज़ मुझे नज़र आती है वह है उसके चरित्र का बेहद सरल होना. हालांकि उसका अपना एक विशिष्ट रहस्यलोक है और कभी-कभी उसके साहसिक कारनामे रोमांच की हद को पार कर जाते हैं, पर इसके बावजूद वेताल का चरित्र, नकाब के पीछे छुपे हुए एक आम आदमी का ही चरित्र है जिसने एक ध्येय दृष्टिगत रखते हुए कुछ असाधारण शारीरिक क्षमताओं को विकसित कर लिया है. इसके पीछे लम्बे समय से चली आती पारिवारिक परम्परा को आगे निभाने का संकल्प भी है तो अपने आसपास दिखती जुर्म और अत्याचार की दुनिया के प्रति व्यक्तिगत आक्रोश भी.  भावनात्मक स्तर पर भी देखें तो वह एक सामान्य इन्सान है जो अपने परिवार के प्रति भी उतना ही समर्पित है जितना अपने मूल सिद्धांतों के पालन के प्रति.

वेताल के चरित्र के कुछ अनछुए पहलुओं पर हम आगे कभी चर्चा करेंगे. फ़िलहाल आज की कॉमिक्स की ओर बढ़ते हैं. आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत कर रहा हूं जो वेताल के मानवीय पहलू को उजागर करती है. साथ ही ली फ़ॉक की कलम का लोहा मानने को एक बार फ़िर मजबूर करती है. एक कथाकार के लिये कहीं अधिक आसान होता है कि अपने रचे सुपरहीरो को दुनिया की कठिनाइयों से अपनी विशिष्ट शक्तियों की मदद से निपटते दिखा दिया जाए. लेकिन इस कहानी में वेताल जिस तरह अपने मित्र राजकुमार की मदद करता है वह अपने आप में एक अलग होकर वेताल के चरित्र को एक ह्यूमन टच देती है.

कहानी:

हजार मील तक फ़ैले जंगल में स्थित वेताल प्रदेश के पूर्वी किनारे पर कोहरा ढंके पर्वतों की एक लम्बी श्रंखला है. यहां अब भी मध्ययुग में जीने वाले राजाओं और राजकुमारों के साम्राज्य हैं. (यहां की एक कहानी हम इस पोस्ट में देख चुके हैं: इन्द्रजाल क्रमांक ००२ - अन्यायी की सेना). जहां अधिकांश राजा अब भी अपनी शक्ति के मद में चूर हैं वहीं मुश्किल से सही पर कुछ बेहतर कहलाने लायक भी मिल जाते हैं. ऐसा ही एक राजकुमार है - टेगों.

राजकुमार टेगों से वेताल की मुलाकात जंगल में उस वक्त होती है जब वेताल एक मुश्किल स्थिति में है. आड़े वक्त में टेगों वेताल की मदद करता है और बदले में वेताल की मित्रता हासिल करता है. टेगों वेताल के व्यक्तित्व से प्रभावित है और कल्पना करता है कि काश वह भी वेताल की तरह छरहरा और फ़ुर्तीला होता. तब वह नजदीक के राज्य की राजकुमारी सुंदरी मेलिन से अपने प्यार का इज़हार कर पाता. लेकिन थुलथुल, धीमे और  आत्मविश्वासहीन टेगों में स्वयं इतनी हिम्मत नहीं. वह वेताल को अपनी ओर से विवाह का प्रस्ताव लेकर मेलिन के पास भेजता है.

लेकिन पांसा उल्टा ही पड़ जाता है जब मेलिन ना सिर्फ़ टेगों से विवाह से साफ़ इन्कार कर देती है बल्कि स्वयं वेताल की ओर आकृष्ट हो जाती है. वह अपने सहायकों से वेताल के बारे में और जानकारी हासिल करने को कहती है और जैसे-जैसे उसके रहस्यलोक के बारे में जानती जाती है तो और भी अधिक उसके मोहपाश में बंधती जाती है. वेताल के लिये कठिन स्थिति बन जाती है. एक ओर उसका मित्र है जो मेलिन के प्रेम में सुध-बुध खो बैठा है और दूसरी ओर मेलिन स्वयं वेताल के लिये दीवानी हुई जा रही है.

समय है टेगों के लिये एक व्यक्तित्व सुधार कोर्स का. वेताल अंदाजा लगाता है कि मेलिन असल में टेगों को उतना नापसन्द नहीं करती, वह केवल टेगों की बेडौल और भद्दी आकृति और उसकी चारित्रिक दृढ़ता के अभाव के चलते उससे चिढ़ती है. शुरु होती है वेताल की देखरेख में राजकुमार टेगों की कठिन ट्रेनिंग. आखिरकार टेगों की मेहनत रंग लाती है और उसका व्यक्तित्व निखर उठता है. मेलिन को भी टेगों का नया रूप भाता है. लेकिन कहानी में एक ट्विस्ट आ चुका है. अब बदले हुए टेगों के पास और भी कई विकल्प हैं. पर आखिरकार मेलिन और टेंगो एक हो ही जाते हैं.


(१६०० px wide, १४ MB)

या फ़िर कुछ कम रिसोल्यूशन (१२०० px width, ८.७५ MB) वाला वर्ज़न डाउनलोड करें यहां से.

इस कहानी का पहला प्रकाशन हुआ था - सन १९५५ में अमरीकी समाचार पत्रों में दैनिक पट्टिका के रूप में.

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9 टिप्पणियां:

Arvind Mishra said...

मस्तिष्क में खुदी हुयी है यह कहानी -काश मुझे भी कोई वैताल मिल गया होता !

Vedha said...

शुक्रिया डेविल भाइ

L.Goswami said...

डाउनलोड कर लिया है ..धन्यवाद

Rafiq Raja said...

शिक्र भाय्, वेताल कि एक और अद्बुध कहानि कि प्रशन्शालायक भेट । ड्वुन्लोड के लिये भि धन्य्वाद प्रिय मित्र ।

Comic World said...

ली फाल्क की कलम से जन्मी और एक अद्भुत कहानी है यह.वेताल के चरित्र की विशेषताओं में से एक यह भी है की वो इंसानी जज़्बातों का भी भरा-पूरा ख्याल रखते हुए उनको मनोबल को गिरने नहीं देता था.ऐसी कई कहानियां है जहा फाल्क ने चारित्रिक विकास पर ज़ोर दिया हैं और जहा वेताल ने एक कुशल मानव संसाधन विकास प्रबंधक की भूमिका बखूबी निभाई है.
ये कहानी 'The Slimming Of Prince Tagon'(1955,D-56) का इंद्रजालिक संस्करण है.
उस दौर में अमेरिका में स्थूलकाय लोगो पर चुटकुले एवं लतीफों का काफी ज़ोर था व मोटा होना एक हास्य और शर्मिन्दिगी की वजह मानी जाती थी जिसकी वजह से अमेरिका में slimming salons की अचानक बाढ़ सी आ गई थीं जो पतले होने का दावा चंद दिनों में दवा के द्वारा करती आई थीं.
फाल्क ने प्रस्तुत कहानी उन तथाकथित slimming salons पर कटाक्ष स्वरुप लिखी थी क्यूकि फाल्क का हमेशा से ये मानना था की पतले होने के लिए सिवाय मज़बूत इच्छाशक्ति एवं संतुलित खान-पान के दूसरी किसी 'चीज़' की ज़रूरत नहीं.आलोचकों ने फाल्क पर यहाँ तक आरोप लगाये की पतले होने के लिए कंद-मूल और बेर खाने की वकालत जो वेताल ने की है दरअस्ल उससे स्वास्थ पर प्रतिकूल असर पड़ता है.और फाल्क का जवाब था की वेताल एक काल्पनिक चरित्र है और उसकी बात को एक कहानी के स्वरुप में ही लेना चाहिए ठीक उसी तरह जिस तरह और एक दुसरे मशहूर चरित्र 'Popeye' के सिर्फ पालक का साग खाने की आदत को गंभीरता से नहीं लिया जाता.

दीपक 'मशाल' said...

aapka abhar

वेताल शिखर said...

आप सभी का हार्दिक धन्यवाद. जहीर के पास हमेशा जानकारियों का खज़ाना छुपा रहता है जो वे वक्त पर ही अपने वृहद कोषागार से निकालते हैं और हम सभी को लाभान्वित करते हैं. वेधा हमेशा की तरह जल्दी में रहीं और मुझे डेविल समझ कर कमेन्ट कर गयीं. सुधार करो वेधा, मैं हूं वेताल शिखर यानि Phantom Head (TPH). रफ़ीक एक बार फ़िर हिन्दी में लिखने का प्रयास कर रहे हैं,बहुत आभार. अरविंद जी तो वेताल की कमी महसूस भी करने लगे. लेकिन उन्हें कहानी याद आयी, जरूर अच्छा लगा होगा. लवली जी और दीपक जी आप दोनों का भी आभार.

तिरुमिशि said...

jankariyon ka khajana.

मोहम्मद कासिम said...

ये कॉमिक्स ६-७ महिने पहले मैने पढी थी
कॉमिक्स बेहतरीन है.
आपने बहुत अच्छा लिखा है.

कासिम
sim786.blogspot.com