Tuesday, March 1, 2011

भारतीय कॉमिक्स का सफरः अतीत से अब तक

  • अमर चित्रकथा कॉमिक्स अब एंड्रायड एप्लीकेशंस के साथ मोबाइल पर इंटरनेलशन मार्केट में उपलब्ध है. एसीके मीडिया इन एनीमेशन फिल्में बनाने के लिए कई बड़ी कंपनियों से करार कर रहा है.

  • हर साल अमर चित्रकथा के जरिए इंट्रोड्यूस कैरेक्टर्स पर आधारित मोबाइल गेम्स रिलीज किए जा रहे हैं. इनमें से अर्जुन के कैरेक्टर पर आधारित मोबाइल गेम इस वक्त वियतनाम में नंबर वन चल रहा है.

  • अस्सी और नब्बे के दशक में पॉपुलर राज कॉमिक्स को हम अब ऑनलाइन परचेज कर सकते हैं. इसके कैरेक्टर डोगा पर अनुराग कश्यप जैसे सीरियस फिल्ममेकर बिग बजट मूवी प्लान कर रहे हैं.

  • सन 2010. आबिद सूरती (जी हां, वही ढब्बू जी वाले) के फेमस कैरेक्टर बहादुर का नया अवतार सामने आता है. इस बार आप उसे इंटरनेट पर पढ़ और डाउनलोड कर सकते हैं, और उसका फेसबुक फैन पेज भी है, जिसके अब तक हजार से ज्यादा फैन्स तैयार हो चुके हैं.

  • न्यू एज स्प्रिचुअलिटी गुरु दीपक चोपड़ा और इंटरनेशनल फेम के डायरेक्टर शेखर कपूर ने इंडियन माइथोलॉजिकल स्टोरीज पर इंटरनेशनल मार्केट के लिए करीब चार साल पहले वर्जिन ग्रुप के रिचर्ड ब्रान्सन के साथ करार किया था. इस वक्त लिक्विड कॉमिक्स से देवी, साधु, गणेश, बुद्धा, स्नेक वूमेन, मुंबई मैक्गफ जैसे कैरेक्टर्स ने पश्चिम में धूम मचा रखी है. कुछ कहानियों पर जॉन वू (फेस ऑफ वाले) जैसे डायरेक्टर फिल्म भी प्लान कर रहे हैं.

यह है इंडियन कॉमिक्स की मौजूदा तस्वीर. आइए जरा अतीत की तरफ चलते हैं...

फ्लैशबैक


यह बात है 1967 की, टेलीविजन ने भारत में कदम रखे ही होंगे, अनंत पई दिल्ली की एक शाम दूरदर्शन से टेलीकास्ट हो रहा क्विज शो देख रहे थे. शायद टॉपिक था, माइथोलॉजी. वे यह देखकर हैरान हो गए जब एक बच्चा भगवान राम की माता का नाम न बता सका. वहीं ग्रीक माइथोलॉजी से जुड़े कई सवालों का जवाब वे फटाफट देते गए. उसी साल अनंत ने टाइम्स आफ इंडिया की जॉब छोड़ दी और भारतीय पौराणिक कथाओं पर सरल भाषा और सुंदर चित्रों के साथ कॉमिक्स का प्लान किया. कई पब्लिकेशंस ने उनका आइडिया रिजेक्ट कर दिया. अंत में बात बनी इंडिया बुक हाउस के इनिशियेटिव से.

इसके बाद वही हुआ जो हर सफल इंसान की कहानी के साथ होता है. शुरुआत में स्ट्रगल के बाद अमर चित्रकथा बीस भारतीय भाषाओं में इंडिया की सबसे ज्यादा बिकने वाली कॉमिक्स बन गई. यह वो वक्त था जब इंडियन सोसाइटी का अरबनाइजेशन हो रहा था. ज्वाइंट फैमिली धीरे-धीरे न्यूट्रल फैमिली में शिफ्ट हो रही थी. दादा-नानी से सुनी-सुनाई जाने वाली कहानियों का चलन खत्म हो रहा था. घर में उस खाली स्पेस को धीरे-धीरे अमर चित्रकथा भरने लगा. यह एक ऐसी कॉमिक्स बन गया जिसे देखकर पैरेंट्स नाराज नहीं होते थे, स्कूलों की लाइब्रेरी में और बच्चों के स्कूल बैग में भी ये नजर आने लगे.

साइड स्टोरी


जिस वक्त अनंत पई ने टाइम्स आफ इंडिया की जॉब छोड़ी, वह ग्रुप इंद्रजाल कॉमिक्स के नाम से बच्चों के लिए एक नया पब्लीकेशन लांच कर रहा था. ली फॉक के कैरेक्टर्स फैंटम और मैन्ड्रेक लाखों बच्चों के लिए बन गए वेताल और जादूगर मैंन्ड्रेक. ‘द घोस्ट हू वाक्स’ बन गया ‘चलता फिरता प्रेत’. शानदार मुहावरेदार अनुवाद ने इन कैरेक्टर्स को घर-घर में पॉपुलर कर दिया.

इंद्रजाल कॉमिक्स ने बहादुर नाम से एक भारतीय कैरेक्टर भी इंट्रोड्यूस किया. बहादुर के क्रिएटर थे हिन्दी-गुजराती के मशहूर लेखक और पॉपुलर स्ट्रिप ढब्बू जी के रचयिता आबिद सूरती. बाकायदा रिसर्च के बाद चंबल के बैकड्राप पर क्रिएट की गई स्टोरी और गोविंद ब्राहम्णिया के सिनेमा के स्टाइल में फ्रेम की गई तस्वीरों ने बहादुर को भारत की क्लासिक कामिक्स बना दिया.

यू टर्न

सन 1980 तक इसकी पॉपुलैरिटी अपने चरम पर थी. मगर आने वाले कुछ सालों में यह पब्लीकेशन बंद हो गया. कामिक्स घरों से लगभग गायब होने लगी. कागज की कीमतें और प्रोडक्शन कास्ट बढ़ने के कारण इंडिया बुक हाउस को भी कीमत बढ़ानी पड़ी नतीजा वे मिडल क्लास की पहुंच से बाहर हो गए. पल्प फिक्शन और पॉपुलर बुक्स छापने वाले कुछ पब्लिशर्स ने भारतीय कैरेक्ट्स इंट्रोड्यूस करने चाहे, मगर घटिया तस्वीरों, इमैजिनेशन का अभाव, बच्चों और टीनएजर्स की साइकोलॉजी न पकड़ पाना- कुछ ऐसे फैक्टर रहे, जिनके चलते वे बुरी तरह फ्लाप हो गए.

एक के बाद एक कॉमिक्स पब्लीकेशन खुले और साल-छह महीनों में बंद हो गए. कुछ तो पहले सेट से आगे बढ़ ही नहीं पाए. कुछ बड़े पब्लिशिंग हाउस ने इंद्रजाल कॉमिक्स की सक्सेस स्टोरी दुहराने की कोशिश की. अब तक सिर्फ एलीट क्लास को उपलब्ध एस्ट्रिक्स हिन्दी में आया, चंदामामा ने वाल्ड डिज्नी के कैरेक्टर्स इंट्रोड्यूस किए- मिकी माउस, डोनाल्ड और जोरो. उन्होंने दूसरी कोशिश की सुपरमैन और बैटमैन को लाने की. अनुवाद की दिक्कतों के चलते बच्चे उनसे दूर रहे.

राइजिंग


पॉकेट बुक्स पब्लिश करने वाले राज कॉमिक्स ने सुपर कमांडो ध्रुव, नागराज, परमाणु और डोगा जैसे कैरेक्टर इंट्रोड्यूस किए. देखते-देखते ये बच्चों में पॉपुलर हो गए. दूरदर्शन के विस्तार से स्पाइडरमैन, स्टार ट्रैक और स्ट्रीट हॉक पापुलर हो चुके थे. जमीन तैयार थी. एक बार फिर कॉमिक्स ने बच्चों की दुनिया रंगीन कर दी.

पहले से पॉपुलर चाचा चौधरी, राजन इकबाल, बांकेलाल, भोकाल, फाइटर टोड्स, भेड़िया जैसे अनगिनत कैरेक्टर सामने आए. इन पर टीवी सीरियल प्लान होने लगे. कार्टून नेटवर्क और पोगो जैसे चैनलों ने बच्चों के पढ़ने का स्पेस तो छीना मगर इंडियन कॉमिक्स इन छोटे-मोटे झटकों को झेलने के लिए मजबूती से खड़ा था.

क्लाइमेक्स

बंगलूरु में इंजीनियर और मैनेजमेंट के बैकग्राउंड वाले एक युवा श्रेयस श्रीनिवास ने अपने कुछ साथियों की मदद से लेवेल टेन कामिक्स स्टैबलिश किया. वे बतौर यंग इंटरप्रन्योर ब्लूमबर्ग के शो द पिच के विनर रहे और उन्हें पांच करोड़ की इन्वेस्टमेंट अपारचुनिटी मिली है. फेसबकु पर लेवेल टेन कामिक्स के दस हजार से ज्यादा फैन्स हैं.

और दोस्तों यह कहानी अभी जारी है...

नोटः यह आलेख आई-नेक्स्ट के भारतीय कॉमिक्स पर केंद्रित विशेष अंक के लिए लिखा गया था, जिसे अनंत पै के निधन पर उनको श्रृद्धांजलि स्वरूप तैयार किया गया था.

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